कैसे कूड़ा और सड़कें बनी लुप्तप्राय आर्कटिक लोमड़ी की जान के लिए आफत

ऊंचे पहाड़ों पर रहने वाले जानवरों की प्रजातियों के आवास, सड़कों के निर्माण के कारण लगातार कम और खत्म हो रहे हैं
Photo: wikimedia commons
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ऊंचे पहाड़ों पर रहने वाले जानवरों की प्रजातियों के आवास, सड़कों के निर्माण के कारण लगातार कम और खत्म हो रहे हैं। इसके अलावा इन प्रजातियों को पहाड़ों में इनके रास्ते में पड़ने वाले, निचले उत्तरी क्षेत्रों में अवशेष खाने वाले जानवरों (स्कवेंजर्स) से मुकाबला करना पड़ता हैं।

शोधकर्ता लार्स रोर्ड-एरिकेन कहते हैं घरों का अधिक बनना, अधिक पर्यटन और बढ़ता हुआ यातायात का मतलब है सड़को पर अधिक कूड़ा होगा, जिससे सड़क दुर्घटनाओं में अधिक जानवरों की जाने जाएंगी। इनमें लाल लोमड़ी (रेड फॉक्स), कौवा और अन्य अवशेष खाने वाले जानवर शामिल है, जो सड़को पर फेंके गए कूड़े की ओर खाना ढूंढने के लिए आकर्षित होते हैं। लार्स रोर्ड-एरिकेन, नॉर्वेजियन इंस्टीट्यूट फॉर नेचर रिसर्च के एनआईएनए में स्थलीय पारिस्थितिकी में एक शोधकर्ता के रूप में कार्यरत हैं।

रोर्ड-एरिकेन ने नॉर्वे के विभिन्न सड़क क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया ताकि यह पता चल सके कि वन्यजीव राजमार्गों से कैसे प्रभावित होते हैं। यह शोध जर्नल ऑफ एप्लाइड इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

सड़कें मतलब अवशेष खाने वाले जानवरों के लिए भोजन

रोर्ड-एरिकेन कहते हैं हमने पाया कि रेड फॉक्स भोजन खोजने के लिए और एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए सड़क का उपयोग करती है। विशेष रूप से सर्दियों में, बर्फीले इलाके में यात्रा करने की तुलना में सड़क का उपयोग करना आसान है।

हम बर्फ और गेम कैमरों की मदद से, यह जानने में सफल रहे कि रेड फॉक्स का घनत्व सड़क के करीब बढ़ता है। जितने अधिक कूड़े और भोजन की बर्बादी होती है, उतनी ही अधिक संख्या में लाल लोमड़ियों (रेड फॉक्स) की पहुंच होती है जो इस क्षेत्र में अपना रास्ता तलाशते हैं।

शोधकर्ता ने बताया कि पैटर्न आर्कटिक लोमड़ियों के लिए विपरीत है। बहुत सारा कचरे का मतलब है आर्कटिक लोमड़ियों की संख्या में कमी होना है। हमने पाया कि आर्कटिक लोमड़ी सड़क पर नहीं रहती है। यह शायद इसलिए नहीं कि वे सड़क की ओर आकर्षित नहीं होते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि वहां रेड फॉक्स की उपस्थिति होती है। जहां आर्कटिक लोमड़ियां रेड फॉक्स से दूरी बनाए रखते हैं।

कमजोर प्रजातियां हो रही हैं विस्थापित

आर्कटिक लोमड़ी छोटे कुतरने वाले जीवों जैसे चूहे, गिलहरी, हैम्स्टर, साही आदि का शिकार करती है। लेकिन ये कचरा खाने के लिए उधम नहीं मचाते हैं। हालांकि आर्कटिक लोमड़ी का लाल लोमड़ी (रेड फॉक्स) के साथ प्रतिस्पर्धा कम है।

रोर्ड-एरिकेन कहते हैं आर्कटिक लोमड़ी भी सड़कों की ओर आकर्षित होती है, लेकिन लाल लोमड़ी (रेड फॉक्स) बड़ी है और प्रजातियों के बीच प्रतिस्पर्धा में हावी है। लाल लोमड़ियों के ऐसे उदाहरण भी हैं जिन्होंने आर्कटिक लोमड़ियों को मारा है। भोजन की बढ़ती पहुंच लाल लोमड़ी को उच्च अल्पाइन क्षेत्र में स्थापित करने में सक्षम बनाती है।

कौवा और दोनों एक दूसरे के प्रतियोगी है, फिर भी यह लोमड़ी के लिए एक उपयोगी सहायक है। अक्सर कौवे सबसे पहले खाने की खोज करते हैं, लेकिन लोमड़ी बड़ी चालाक होती है, वह कौवे द्वारा खोजे गए खाने तक पहुंच जाती है।

पहाड़ों में अनचाहा मेहमान

रोर्ड-एरिकेन कहते हैं लाल लोमड़ी (रेड फॉक्स) पहले पहाड़ों में मौजूद रही है। लेकिन यह एक आक्रामक प्रजाति है और प्राकृतिक अल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। यदि यह खुद को स्थायी रूप से यहां स्थापित करती है, जैसे कि अब ऐसा लग रहा है, इससे भविष्य में पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर रूप से प्रभावित होगा। आर्कटिक लोमड़ी पहले से ही एक लुप्तप्राय प्रजाति है अब आशंका है कि लाल लोमड़ी (रेड फॉक्स) इसके साथ-साथ अन्य अल्पाइन प्रजातियों को प्रभावित कर रही है। जैसे कि पीटर्मिगन जो कि जमीन में घोंसले बना कर रहते हैं। जब कई प्रजातियां प्रभावित होती हैं तो हम इसे कास्केड प्रभाव कहते हैं।

जगह-जगह कूड़ा फेंकने के खिलाफ बने कड़े कानून

अधिक सड़कों और बढ़े हुए ट्रैफिक का मतलब अधिक सड़क दुर्घटनाएं भी है। रोर्ड-एरिकेन का मानना है कि जानवरों के सड़क दुर्घटनाओं में मरने से निपटने की तुलना में कूड़े की समस्या से निपटना आसान है।

रोर्ड-एरिकेन कहते हैं सूचना, जागरूकता अभियानों से लोगों को कचरा फेंकने और भोजन छोड़ने के परिणामों के बारे में बताया जा सकता हैं। बहुत सारे लोग शायद इस बात को तवज्जो नहीं देते हैं कि किस तरह से वन्यजीवों पर इनका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। अन्य देशों में कूड़े फैंकने के खिलाफ सख्त कानून हैं। शायद नॉर्वे को भी इस पर विचार करना चाहिए।

कौवा बना शोध में मुसीबत

सर्दियों के दौरान लाल लोमड़ियों (रेड फॉक्स) और आर्कटिक लोमड़ियों की गतिविधि को रिकॉर्ड करने के लिए, रोर्ड-एरिकेन ने ट्रैकिंग का इस्तेमाल किया, सड़क से अलग-अलग दूरी पर चारे के साथ एक गेम कैमरा लगया गया। इन तरीकों से अच्छे और विश्वसनीय निष्कर्ष निकले।

शोध के लिए ग्रीष्म ऋतु अधिक कठिन साबित हुई। कौवे ने चारे को लोमड़ी से पहले देखा और अक्सर लोमड़ी के पास पहुंचने से पहले ही वह उसे खाने में कामयाब रहा। रोर्ड-एरिकेन ने कृत्रिम पक्षी घोंसले भी रखे, जिसमें असली बटेर का अंडा और नकली अंडे को मिट्टी से बनाया गया था।

यह सोचा गया था कि नकली, मुलायम अंडे में काटने के निशान से पता चल सकता है कि लोमड़ी या कौवे ने इसे खाने की कोशिश की थी या नहीं। यहां भी कौवे ने समस्याएं पैदा की, जिसने गर्मियों के दौरान परिणामों को कम विश्वसनीय बना दिया।

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