भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) द्वारा किए गए एक नए अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत में काले हिरण अपने अस्तित्व के लिए प्राकृतिक और मानवजनित चुनौतियों का सामना कैसे कर रहे हैं।
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और नदियों पर बांध बनाने जैसी मानवीय गतिविधियों में वृद्धि ने प्राकृतिक परिदृश्य को खत्म कर दिया है। ये बदलते परिदृश्य जानवरों की प्रजातियों को छोटे क्षेत्रों तक सीमित कर रहे हैं और उन्हें नए साथी खोजने के लिए दूर के क्षेत्रों में जाने से रोक रहे हैं, यह एक ऐसा कारक है जो उनकी आनुवांशिक विविधता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
काला हिरण केवल भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। नरों में कॉर्कस्क्रू के आकार के सींग और काले से गहरे भूरे रंग के आवरण होते हैं, जबकि मादाएं हलके रंग की होती हैं। जानवरों को मुख्य रूप से पूरे भारत में तीन व्यापक समूहों में देखा जाता है जो उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्रों से संबंधित हैं।
भारतीय विज्ञान संस्थान ने कहा कि इस भौगोलिक विभाजन के साथ-साथ समूहों के बीच लोगों के घने आवासों से उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना मुश्किल हो जाता है।
जेनेटिक प्रोफाइलिंग
यह अध्ययन सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज (सीईएस), आईआईएससी के प्रोफेसर प्रवीण कारंत और सीईएस की पूर्व पीएचडी छात्रा अनन्या जाना द्वारा किया गया है। अध्ययन में देश भर में पाए जाने वाले काले हिरण या ब्लैकबक के आनुवांशिक प्रोफाइल का विश्लेषण किया गया है।
प्रमुख अध्ययनकर्ता कारंत और जाना ने भारत के आठ राज्यों में फैले 12 अलग-अलग इलाकों से काले हिरण के मल के नमूने एकत्र किए। शोधकर्ताओं ने नमूने एकत्र करने के लिए जानवरों को पैदल और वाहनों द्वारा ट्रैक किया। लैब में, उन्होंने काले हिरण के आनुवांशिक ढांचे का अध्ययन करने के लिए मल के नमूनों से डीएनए को निकाला और उसे अनुक्रमित किया।
शोधकर्ताओं ने आनुवांशिक आंकड़ों के साथ भौगोलिक स्थानों का खाका बनाने के लिए कम्प्यूटेशनल टूल का उपयोग किया। टीम ने सिमुलेशन का उपयोग यह पता लगाने के लिए भी किया कि तीन वर्तमान झुंड अपने सामान्य पूर्वज से कैसे विकसित हो सकते हैं।
उन्होंने जो पाया वह यह था कि एक पुश्तैनी काले हिरण की आबादी पहले दो समूहों में विभाजित हो गई, जो उत्तरी और दक्षिणी झुंड में शामिल थे। पूर्वी झुंड- भले ही भौगोलिक रूप से उत्तरी झुंड के करीब हो, लगता है कि वह दक्षिणी झुंड से निकला है।
नरों का बहुत अधिक इलाकों में फैलाव
इसके बाद, टीम ने पाया कि सभी बाधाओं के बावजूद, नर काले हिरण अपेक्षा से अधिक इलाकों में फैलते दिखाई देते हैं, इस प्रकार इस प्रजाति में जीन प्रवाह में योगदान करते हैं। दूसरी ओर, मादाएं अपनी मूल आबादी की सीमाओं के भीतर काफी हद तक रहती हैं, जो शोधकर्ताओं ने प्रत्येक आबादी में अनोखे माइटोकॉन्ड्रियल निशान से हासिल की हैं। आईआईएससी ने कहा कि आंकड़ों ने हाल के दिनों की तुलना में काले हिरण की आबादी में बढ़ोतरी भी दिखायी है।
कारंत कहते हैं कि ऐसा लगता है कि यह प्रजाति मानव-वर्चस्व वाले परिदृश्य में जीवित रहने में कामयाब रही है। भविष्य के अध्ययनों में, शोधकर्ताओं ने डीएनए और आंत माइक्रोबायोम में बदलावों का अध्ययन करके, अपने परिदृश्य के लिए मानवजनित खतरों के सामने जीवित रहने के लिए काले हिरण के रहस्यों को उजागर करने की योजना बनाई है।
इस तरह के अध्ययन काले हिरणों के संरक्षण की बेहतर जानकारी प्रदान कर सकते हैं। यह अध्ययन कंजर्वेशन जेनेटिक्स में प्रकाशित हुआ है।