धधकता हिमालय: हिमाचल के जंगलों में सर्दी के मौसम में सात गुणा बढ़ी आग की घटनाएं, ये हैं कारण

पिछले एक सप्ताह में देश में वनाग्नि की बड़ी घटनाओं में शीर्ष पांच राज्यों में हिमाचल पहले स्थान पर है
हिमाचल के शिमला जिले में धूं धूं कर जलते जंगल
हिमाचल के शिमला जिले में धूं धूं कर जलते जंगल
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सर्दियों के दिनों में बर्फ से ढकी रहने वाली हिमाचल की खूबसूरत वादियों से इस बार बर्फ पूरी तरह गायब है और जिन वादियों में कई फुट तक बर्फ देखने को मिलती थी, वहां इन दिनों धुंआ देखने को मिल रहा है। पिछले तीन महीनों से अधिक समय से मौसम की बेरुखी झेल रहे हिमाचल में इस बार न ही तो बारिश हुई है और न ही बर्फबारी देखने को मिली है।

यही वजह है कि जंगलों में नमी न होने से इस बार प्रदेश में वनाग्नि यानी जंगलों में आग की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली है।

भारतीय वन सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 16 अक्टूबर 2023 से 16 जनवरी 2024 तक के समय में वनाग्नि की 2050 घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं। पिछले साल के इन्हीं महीनों में महज 296 घटनाएं हुई थी। यानी कि इस साल लगभग 7 गुणा वृद्धि दर्ज की गई है।

प्रदेश के सभी जिलों में आग की घटनाएं हुई। पिछले तीन सप्ताह में किन्नौर, मनाली, कुल्लू, चंबा और शिमला जिला में आग की बड़ी घटनाओं में हजारों हैक्टेयर वन भूमि को नुकसान पहुंचा है और रिहायशी मकान भी आग की चपेट में आए हैं।

भारतीय वन सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार पिछले एक सप्ताह में देश में वनाग्नि की बड़ी घटनाओं में शीर्ष पांच राज्यों में हिमाचल पहले स्थान पर है। हिमाचल प्रदेश में पिछले एक सप्ताह में 36 बड़ी आग की घटनाएं देखने को मिली हैं।

वर्ष 2022-23 में बड़ी आग की घटनाओं में शीर्ष में रहने वाले पांच राज्यों में हिमाचल 123 घटनाओं के साथ पहले स्थान पर था और उत्तराखंड दूसरे, आंध्र प्रदेश तीसरे और जम्मू एवं कश्मीर चौथे स्थान पर था। वहीं 2023-24 में फायर अलर्ट के मामलों में शीर्ष के पांच राज्यों में हिमाचल दूसरे स्थान पर और उत्तराखंड पहले स्थान पर है।

हिमाचल प्रदेश के अग्निशमन विभाग के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर माह में आग की कुल 369 घटनाएं हुई जिसमें 275 वनाग्नि की घटनाएं थी। इन घटनाओं में 10 करोड़ रुपए की संपत्ति का नुकसान हुआ और विभाग की मुस्तैदी की वजह से 177 करोड़ की संपदा को बचाया गया। वहीं 1 जनवरी से 12 जनवरी तक के आंकड़ों में प्रदेश में 149 आग की घटनाएं दर्ज की गई हैं।

मौसम विभाग के अनुसार जनवरी माह में अभी तक सामान्य से 100 फीसदी कम बारिश हुई है। वनाग्नि की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में से 8 जिले संवेदनशील माने जाते हैं। यहां का सबसे अधिक संवेदनशील समय अप्रैल के दूसरे सप्ताह से जून तक है, लेकिन इस बार आग की घटनाएं सर्दियों के दिनों में भी अधिक देखने को मिल रही हैं।

हिमाचल प्रदेश में 37,033 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है, जिसमें से 15 प्रतिशत पर चीड़ वन हैं जो आग के लिए सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।

प्रदेश में वन विभाग की कुल 2026 बीटें हैं जिनमें से 339 अति संवेदनशील श्रेणी में आती हैं। इसके अलावा 667 मघ्यम और 1020 बीटें कम संवेदनशील की श्रेणी में आती हैं। ऐसे में इन संवेदनशील बीटों में आग की घटनाओं पर नजर रखने के लिए वन विभाग को ज्यादा मुस्तैदी बरतने की जरूरत है।

हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक डॉ. पवन राणा ने डाउन टू अर्थ से कहा कि वनों में आग की वजह से वन संपदा के नुकसान के साथ वन्य प्राणियों और मिट्टी की गुणवत्ता पर बहुत बुरा असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि लंबे समय से बारिश न होने की वजह वनों में नमी नहीं बची हुई है जिससे आग की घटनाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं। भविष्य में भी ऐसी परिस्थितियां बन सकती हैं इसके लिए पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए तैयारियां करने की आवश्यकता है।

शिमला निवासी अमित राठौर ने डाउन टू अर्थ से कहा कि हिमाचल प्रदेश में इस बार अजीब सा मंजर देखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि आग की बढ़ती घटनाओं की वजह से चारों ओर धुंआ देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि वैसे तो धुएं के अंबार अक्टूबर में मैदानी इलाकों में पराली जलाने के दौरान देखे जाते थे, लेकिन आजकल ऐसा देखना अपने आप में नई घटना है।

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