एशियाई हाथियों की आबादी में रक्तस्रावी रोग जिसे हेमोरेजिक डिजीज -एचडी भी कहते हैं, इसकी जांच के लिए एक नए अध्ययन में रोग में हाल में हुई वृद्धि के साथ-साथ इस बीमारी को फैलाने वाले एलीफैंट एंडोथिलियोट्रोपिक हर्पीसवायरस (ईईएचवी) के एक प्रकार के प्रसार का आकलन किया गया है।
पैथो-एपिमियोलॉजी पर शोध अथवा इस रोग की उत्पत्ति और इसके प्रसार के अध्ययन से इस रोग के खिलाफ रक्त-सीरम के अध्ययन एवं निदान (सीरो-डायग्नोस्टिक्स), टीके और इसके उपचार को विकसित करने में सहायता मिल सकती है।
भारत के संरक्षित क्षेत्रों के साथ-साथ खुले जंगलों में देखे गए इस रक्तस्रावी रोग के कारण हाथी के बच्चों की बढ़ती मौतें चिंता का कारण बनी हुई हैं। हाथी हमारे देश के राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत वाले जीव हैं और दुनिया भर के कुल हाथियों की आबादी का 55 फीसदी हिस्सा भारत में रहता है। ईईएचवी-एचडी के बढ़ते प्रकोप के कारण इनकी आबादी घट रही है। इसलिए, उन्हें इस घातक बीमारी से बचाना जरूरी है।
ऐसा प्रतीत होता है कि अन्य हर्पीसवायरस की तरह, ईईएचवी ने अपने आश्रयदाताओं के साथ सफलतापूर्वक अपना विकास कर लेने के साथ ही ये अच्छी तरह से संतुलित अनुकूलन भी स्थापित कर लेते हैं। शोधकर्ता ने कहा, हाल के वर्षों में कई वैज्ञानिक अध्ययनों ने विभिन्न ईईएचवी वेरिएंट की आणविक पहचान और लक्षण पर हमारी जानकारी को काफी बढ़ाया है।
लेकिन भारत में एलीफैंट एंडोथिलियोट्रोपिक हर्पीसवायरस (ईईएचवी) के कुछ मामलों की रिपोर्ट को छोड़कर ज्यादा मामले सामने नहीं आए हैं। खुले जंगलों और साथ ही संरक्षित क्षेत्रों में इस रोग की स्थिति की पुष्टि के लिए और अधिक गहन जांच की आवश्यकता है। उपचार पूर्व या प्री-क्लिनिकल चरण में इस घातक वायरस की पुष्टि करने के लिए देखभाल निदान संबंधी समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता पड़गी।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) से जुड़ा संस्थान, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा समर्थित बरेली के इज्जतनगर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईवीआरआई), द्वारा किए गए एक अध्ययन में भारत में एशियाई हाथियों की आबादी के बीच फैल रहे ईईएचवी और इसके उप-प्रकारों की सटीक स्थिति का पता लगाया गया है।
जर्नल माइक्रोबियल पैथोजेनेसिस में प्रकाशित एक शोध में भारतीय हाथियों की आबादी में फैल रहे इस वायरस के जीनोम की विशेषता बताई गई है। साथ ही इस रोग से जुड़ी एंडोथेलियल कोशिकाओं की शिथिलता के आणविक तंत्र का भी पता लगाया गया। इस कार्य के आधार पर अब नैदानिक किट और टीके विकसित करने की सुविधा के लिए काम शुरू किया गया है।
इस परियोजना के लिए शोध से एकत्रित जानकारी से एक ऐसी मानक संचलन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने में सहायता मिली है जिससे महावतों और हाथी संरक्षणवादियों के बीच बीमारी की जानकारी का प्रबंधन किया जा सकता है।