माधव शर्मा
राजस्थान सरकार ने सांभर झील के प्रबंधन के लिए एक स्टेंडिंग कमेटी का गठन किया है। ये कमेटी ओडिशा की चिलिका झील की तर्ज पर सबसे प्रदूषित सांभर झील को बचाने के तरीके बताएगी। बता दें कि ओडिशा सरकार ने 1991 में चिलिका डेवलपमेंट अथॉरिटी का गठन किया था। देश में झीलों के संरक्षण के लिए चिलिका एक उदाहरण के तौर पर ली जाती है।
इससे पहले 26 नवंबर को वन विभाग ने जयपुर जिला एनवायरमेंट कमेटी को सांभर झील की हर रोज निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी थी। ये कमेटी राजस्थान स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी को सांभर झील के संरक्षण और प्रबंधन रिपोर्ट्स सौंपेगी।
नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल ने भी 20 नवंबर को राजस्थान सरकार, नेशनल वेटलैंड अथॉरिटी, स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी, स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और जयपुर जिला कलेक्टर को तथ्यात्मक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था। एनजीटी 22 जनवरी 2020 को अगली सुनवाई करेगा।
सांभर झील में 10 नवंबर से अब तक एवियन बोट्यूलिज्म बीमारी के कारण 21 हजार से ज्यादा पक्षियों की मौत हो चुकी है। इसमें नागौर जिले में 11,631 और जयपुर जिले में 10 हजार पक्षी मृत पाए गए हैं। हालांकि विशेषज्ञों मे झील के प्रदूषित होने, अवैध नमक कारोबार, पानी में नमक की मात्रा बढ़ने जैसे तमाम अन्य कारण भी गिनाए थे। अब सरकार ने झील के संरक्षण के लिए इस कमेटी का गठन किया है।
क्या है चिलिका मॉडल?
चिलिका झील भारत की पहली रामसर साइट है। चिलिका डेवलपमेंट अथॉरिटी ओडिशा सरकार ने साल 1991 में बनाई थी। ये संस्था झील के इको-सिस्टम, झील के संरक्षण-प्रबंधन, रिसर्च, झील में आने वाले प्रवासी देशी-विदेशी पक्षियों की सुरक्षा, इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के साथ-साथ ओडिशा राज्य में स्थिति अन्य झीलों का भी संरक्षण करती है।
झील में 150 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा है। झील में 22 प्रजातियों की बतख और करीब 52 प्रजाति की प्लोवर पक्षी रहते हैं। ये वही पक्षी हैं जिनकी सांभर झील में सबसे ज्यादा मौत हुई है। चिलिका में 52 नदी और बरसाती नाले गिरते हैं, लेकिन झील का प्रबंधन ऐसा है कि इसे झील संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण कहा जाता है। झील की गवर्निंग बॉडी में कुल 25 सदस्य हैं और राज्य के मुख्यमंत्री इसके चेयरमैन हैं।