10 लाख प्रजातियों पर खतरा, इंसान है जिम्मेवार : रिपोर्ट

जैव-विविधता और पारिस्थितिकी सेवाओं के अंतर सरकारी विज्ञान नीति मंच (आईपीबीईएस) ने अपनी वैश्विक आकलन रिपोर्ट जारी कर दी है, जो काफी डराने वाली है।
Photo : IPBES
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जैव-विविधता और पारिस्थितिकी सेवाओं के अंतर सरकारी विज्ञान नीति मंच (आईपीबीईएस) ने अपनी वैश्विक आकलन रिपोर्ट जारी कर दी। इस रिपोर्ट में ग्रह की जैव विविधता पर खतरों से आगाह किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, "अब तक के मानव इतिहास में प्रकृति को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा है और प्रजातियों के विलुप्त होने की दर भी काफी तेज हुई है, जिससे दुनिया भर के लोगों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

वैश्विक आकलन के अनुसार, पशुओं और पौधों की लगभग 10 लाख प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इनमें से हजारों प्रजातियां आने वाले दशकों में ही विलुप्त हो जाएंगी। आकलन रिपोर्ट में विलुप्त होने की इस दर को अब तक के मानव इतिहास में सबसे अधिक बताया गया है।

पिछली शताब्दी (1900) की शुरुआत के बाद से, जमीन पर मिलने वाली देशी प्रजातियों की उपलब्धता में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसी तरह, पानी में रहने वाली 40 प्रतिशत प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।

यदि 16 वीं शताब्दी में एक प्रजाति को बचाया गया तो 680 कशेरुक (हड्डी वाले) प्रजातियों को विलुप्त होने के लिए धकेल दिया गया है, जबकि खाद्य और कृषि के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घरेलू नस्लों के 9 प्रतिशत प्रजातियां साल 2016 तक लुप्त हो चुकी हैं।  

साथ ही, लगभग 1,000 और ऐसी नस्लों को भी विलुप्त होने के खतरे की श्रेणी में डाल दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, "लगभग 33% रीफ़ॉर्मिंग कोरल (मूंगा बनाने वाली चट्टानें) और एक तिहाई समुद्री स्तनधारियों पर भी विलुप्ति का खतरा है”।

इस आकलन की सह अध्यक्षता करने वाले जर्मनी के जोसेफ सेटेले ने कहा, “पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियां, जंगली आबादी, स्थानीय किस्मों, पालतू पौधों और जानवरों की नस्लें कम हो रही हैं, बिगड़ रही हैं या लुप्त हो रही हैं। इस नुकसान की वजह मनुष्य की गतिविधियां हैं और ये नुकसान मनुष्य के लिए खतरा साबित होने वाले हैं।

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट पहली व्यापक रिपोर्ट है। जो 15,000 से अधिक वैज्ञानिक और सरकारी दस्तावेजों के आधार पर 50 देशों के 145 विशेषज्ञ लेखकों के समूह ने तीन साल में तैयार की है।

रिपोर्ट में प्रकृति और पारिस्थितिक तंत्र पर आर्थिक विकास के प्रभाव को विशेष रूप से विश्लेषण किया गया है। यह रिपोर्ट 6 मई, 2019 को जर्मनी में जारी की गई। 

आईपीबीईएस के चेयरमैन रॉबर्ट वॉटसन ने कहा,  "पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य जिस पर हम और अन्य सभी प्रजातियां निर्भर हैं, पहले से कहीं अधिक तेजी से खराब हो रहा है। हम अपनी अर्थव्यवस्था, आजीविका, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता की नींव को ही मिटा रहे हैं”।

आकलन रिपोर्ट में इंसान की वजह से पारिस्थितिक तंत्र को हो रहे नुकसान का सटीक ब्यौरा है। रिपोर्ट के अनुसार, तीन चौथाई भूमि-आधारित पर्यावरण और लगभग दो-तिहाई समुद्री पर्यावरण को इंसानों के इस्तेमाल के लिए बदल दिया गया है। ताजे पानी के संसाधनों का लगभग 75 प्रतिशत अब फसल और पशुधन पालन गतिविधियों के लिए उपयोग किया जा रहा है।

आकलन रिपोर्ट सबके लिए डरावनी है। उदाहरण के लिए, रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि क्षरण की वजह से दुनिया की कुल जमीन में 23 फीसदी हिस्से की उत्पादकता कम हो गई है। साथ ही, परागकणों की वजह से दुनिया की सालाना फसल उत्पादन पर लगभग 577 बिलियन डॉलर के नुकसान का खतरा है। इसके अलावा 10 से 30 करोड़ लोगों पर बाढ़ एवं तूफान का खतरा मंडरा रहा है। आकलन रिपोर्ट कहती है कि यह गिरावट साल 2050 तक जारी रहेगी।

यूनेस्को के महानिदेशक ऑड्रे अज़ोले का कहना है कि रिपोर्ट ने दुनिया को चिंता में डाल दिया है। “इस ऐतिहासिक रिपोर्ट को आने के बाद, कोई भी यह दावा नहीं कर सकेगा कि वे खतरों के बारे में नहीं जानते थे। हम अब जीवन की विविधता को नष्ट करना जारी नहीं रख सकते। आने वाली पीढ़ियों के प्रति यह हमारी  जिम्मेदारी है”। यह रिपोर्ट बताती है कि हमें जैव विविधता और हमारी वैश्विक पर्यावरण विरासत के लिए तुरंत काम शुरू कर देना चाहिए। हम सभी को अपने ग्रह और मानवता को बचाने के लिए तत्काल और एक साथ जुट जाना चाहिए। जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए जैव विविधता की रक्षा करना बहुत महत्वपूर्ण है।”

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