पैंगोलिन के अवैध शिकार के हॉटस्पॉट का चलेगा पता, घटती आबादी पर लगेगी लगाम

अवैध वन्य जीवों का वैश्विक व्यापार 20 बिलियन डॉलर का व्यवसाय है जो अंतर्राष्ट्रीय उत्पादक संघ या कार्टेल द्वारा संचालित होता है।
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, मैनिस क्रैसिकौडाटा
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, मैनिस क्रैसिकौडाटा
Published on

वैज्ञानिकों ने दुनिया में सबसे अधिक तस्करी किए जाने वाले स्तनपायी पैंगोलिन का आनुवंशिक स्रोत से लेकर आखिरी मंजिल तक का मानचित्रण किया है। जिसकी मदद से जीवित सफेद पेट वाले पैंगोलिन के त्वचा के नमूनों और अवैध बाजारों से जब्त किए गए जानवरों के बारे में पता लगाया जा सकता है।

अब तक पैंगोलिन के अवैध व्यापार को रोकना चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है, 23 देशों में पाई जाने वाली आठ अलग-अलग प्रजातियों की सीमा 23 लाख वर्ग मील तक फैली है। उन्हें  पारंपरिक चिकित्सा के रूप में बिक्री के लिए दुनिया भर में ले जाया जाता है। सफेद पेट वाली अफ्रीकी प्रजाति आमतौर पर चीन और अन्य एशियाई देशों में भेजी जाती है।

अब, शोधकर्ताओं ने एक नया तरीका विकसित किया है जो अवैध शिकार और तस्करी के हॉटस्पॉट की पहचान करने के लिए जीनोमिक्स का उपयोग करता है। जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन के  निष्कर्षों और शोध के तरीकों का उपयोग करके, कानून प्रवर्तन एजेंसियां ​​अब अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला से अफ्रीका के उन स्थानों तक सफेद पेट वाले पैंगोलिन उत्पादों का पता लगा सकती हैं जहां जानवरों का अवैध शिकार किया गया था।

विकासवादी जीवविज्ञानी और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स (यूसीएलए) के सेंटर फॉर ट्रॉपिकल रिसर्च के निदेशक, अध्ययनकर्ता थॉमस स्मिथ ने कहा, आनुवंशिक जांच में कुछ दिन लगते हैं और यह लगभग 125 मील के भीतर किसी जानवर की उत्पत्ति का सटीक पता लगा सकता है।

बाजार से निवास स्थान तक पैंगोलिन के व्यापार को ट्रैक करने के लिए, अध्ययनकर्ताओं ने सफेद पेट वाले पैंगोलिन के जीनोम का मानचित्रण किया और आनुवंशिक रूप से विशिष्ट भौगोलिक आबादी का मानचित्रण करने के लिए मध्य अफ्रीका के ज्ञात इलाकों से इस प्रजाति के 111 नमूने एकत्र किए।

इसके बाद शोधकर्ताओं ने पैंगोलिन की त्वचा से आनुवंशिक सामग्री के हिस्से लिए लगभग 10 लाख जानवरों से नमूने लिए गए, जिन्हें हांगकांग के बाजारों में दूसरी जगहों को भेजने के दौरान जब्त किया गया था। दोनों स्रोतों का मिलान करके, वे यह निर्धारित करने में सक्षम थे कि सबसे तीव्र अवैध शिकार कहां हो रहा है और एक नक्शा तैयार किया जो व्यापार के मार्गों का पता लगता है।

उन्होंने पाया कि पैंगोलिन को पहले वितरण के प्रमुख क्षेत्रीय केंद्र नाइजीरिया भेजा जाता है। वहां से, उन्हें चीन, थाईलैंड, वियतनाम, लाओस और सिंगापुर सहित देशों के बाजारों में ले जाया जाता है। अध्ययनकर्ताओं ने कहा उनके निष्कर्ष अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार को रोकने और तस्करी विरोधी उपाय करने के नए अवसर पैदा करते हैं।

शोधकर्ता स्मिथ ने कहा कि नाइजीरिया लंबे समय से एशिया में निर्यात के केंद्र के रूप में जाना जाता है, जबकि अध्ययन से पता चलता है कि केवल चार फीसदी जानवर ही वहां पैदा होते हैं।

अफ्रीका में अवैध शिकार 2012 से 2018 के बीच पूर्व की ओर बढ़ गया, यह अवधि शोध के आंकड़ों के द्वारा कवर की गई है। 2012 में एकत्र किए गए त्वचा के नमूने अक्सर सिएरा लियोन, लाइबेरिया और घाना जैसे पश्चिमी अफ्रीकी देशों से मेल खाते थे। 2018 तक, इसमें से अधिकतर कैमरून से आए, विशेष रूप से दक्षिणी सीमा, जो इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन और कांगो गणराज्य के पड़ोसी हैं। माध्यमिक हॉटस्पॉट की पहचान उत्तर-पश्चिमी कैमरून, नाइजीरिया की सीमा के पास और पूर्वी कैमरून, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य की सीमा के पास की गई थी।

स्मिथ ने कहा अवैध वन्य जीवन का वैश्विक व्यापार 20 बिलियन डॉलर का व्यवसाय है जो परिष्कृत अंतर्राष्ट्रीय कार्टेल द्वारा संचालित होता है।

अफ्रीका में पैंगोलिन के शिकारी एक जानवर को 250 डॉलर में बेच सकते हैं, कई अवैध शिकार वाले इलाकों में लाभ का अधिकांश हिस्सा तस्करी संगठनों के पास जाता है। शोधकर्ताओं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों का मानना है कि इसका उपयोग अवैध हथियारों के व्यापार जैसी गतिविधियों को वित्त पोषित करने के लिए किया जाता है।

मुख्य अध्ययनकर्ता और सेंटर फॉर ट्रॉपिकल रिसर्च के शोधकर्ता, जेन टिन्समैन ने कहा, सिंगापुर में हाल ही में हुई एक जब्ती में 18 टन पैंगोलिन बरामद हुए, जो मारे गए जानवरों की वास्तव में अकल्पनीय संख्या है।

टिन्समैन ने कहा, हम नहीं जानते कि कितने सफेद पेट वाले पैंगोलिन बचे हैं क्योंकि जंगल में उनका अध्ययन करना वास्तव में कठिन है।  

सभी आठ पैंगोलिन प्रजातियां, चार अफ्रीका में और चार एशिया में, लुप्तप्राय हैं और उनकी त्वचा,  मांस और अन्य भागों की मांग ने तीन एशियाई प्रजातियों - सुंडा, फिलीपींस और चीनी पैंगोलिन को विलुप्त होने के कगार पर धकेल दिया है। प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ने उन्हें गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया है। एक बार जब ये एशियाई प्रजातियां दुर्लभ हो गई, तो तस्करों ने अपना रुख अफ्रीका और सफेद पेट वाले पैंगोलिन की ओर कर लिया है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि पैंगोलिन का उपयोग मुख्य रूप से पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है, जिसके प्रभावी होने का कोई सबूत नहीं है, इसका एक छोटा हिस्सा विदेशी भोजन में उपयोग के लिए बेचा जाता है।

वर्तमान अध्ययन के लिए, यूसीएलए के वैज्ञानिकों ने दुनिया भर की सरकारी एजेंसियों और शोध संगठनों के साथ भागीदारी की, जिनमें प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ, यूएस फिश एंड वाइल्डलाइफ सर्विस और चीन, गैबॉन, नाइजीरिया, कैमरून और चेक गणराज्य जैसे देशों के विश्वविद्यालय शामिल हैं।

टिन्समैन ने कहा, नया शोध सफेद पेट वाले पैंगोलिन की हत्या और व्यापार पर लगाम लगाने के उद्देश्य से किए जा रहे अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के लिए आशा की किरण है।

उन्होंने कहा, पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में भारी विकास हुआ है। अब हम अपने नजर रखने के तरीकों को उन देशों के प्रवर्तन अधिकारियों के हाथों में दे सकते हैं जहां पैंगोलिन सबसे अधिक खतरे में हैं, तो इससे अवैध व्यापार की वास्तविक समय पर निगरानी की जा सकेगी और इसे रोकने में मदद मिलेगी।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in