जिस समय में हम बाघों की संख्या बढ़ने की खुशी मना रहे हैं। उत्तराखंड में भी बाघ बढ़ गए हैं, उसी समय में हरिद्वार रेंज में तीन गुलदारों की जहर दिए जाने से मौत की प्राथमिक तौर पर पुष्टि हो गई है। जहर दिए जाने का मकसद क्या है, ये अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। इसके अलावा ऋषिकेश डिवीजन में भी आपसी संघर्ष में एक गुलदार की मौत हुई है। इस तरह 24 घंटे के भीतर राज्य में चार गुलदार मारे गए।
मुख्य वन संरक्षक पीके पात्रो ने बताया कि इस घटना के बाद राज्य में वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए अलर्ट जारी किया गया है। जंगल में गश्त बढ़ा दी गई है। शिकारियों पर निगाह रखने के लिए कहा गया है।
हरिद्वार रेंज के डीएफओ आकाश वर्मा ने बताया कि तीनों गुलदारों की प्राथमिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है। जिसमें जहर की वजह से मौत की आशंका बतायी गई है। जहर के असर से जानवरों की खाल के रोएं झड़ने शुरू हो गए थे, साथ ही शरीर के दूसरे अंग भी खराब होने लगे थे। उन्होंने बताया कि तीनों गुलदारों के विसरा के नमूने बरेली के इंडियन वैटनरी रिसर्च इंस्ट्टीयूट में टॉक्सिकल रिपोर्टिंग के लिए भेजे गए हैं। जिससे जहर से मौत की पुष्टि हो जाएगी। इस रिपोर्ट के आने में अभी कुछ दिनों का समय लगेगा।
2 अगस्त को हरिद्वार वन रेंज में तीन गुलदारों के शव मिले। रवासन नदी हरिद्वार डिवीजन, राजाजी टाइगर रिजर्व और लैंसडाउन डिवीजन की बाउंड्री बनाती है। नदी के उत्तर में राजाजी टाइगर रिजर्व है, पश्चिम में हरिद्वार डिवीजन और पूरब में लैंसडाउन डिवीजन आता है। तीनों डिवीजन के मिलान बिंदु के 5 से 7 सौ मीटर के दायरे में तीनों गुलदार के शव पाए गए। इनमें दो मादा और एक नर गुलदार है। आकाश वर्मा के मुताबिक टाइगर रिजर्व को छोड़कर बाकी दोनों गुलदारों के शव घने जंगल में नहीं बल्कि रिहायशी आबादी के नज़दीक मिले हैं। रवासन नदी के किनारे लालढांग गांव है। इसलिए गांव के लोगों से भी बातचीत की गई लेकिन उनसे कोई अहम जानकारी नहीं मिल सकी।
एक दिन में तीन गुलदारों की ज़हर से मौत की आशंका से अधिकारी भी सकते में आ गए। इसके बाद जंगल की कॉम्बिंग भी करायी जा रही है। हालांकि लगातार बारिश से कॉम्बिंग में दिक्कतें आ रही हैं।
डीएफओ आकाश वर्मा कहते हैं कि प्रारंभिक जांच में ऐसा लगता है कि रीवेंज कीलिंग यानी बदला लेने की नीयत से मारने की गुंजाइश दिखती है। वहां गुलदारों की आवाजाही है और लोगों की आबादी भी है। तो हो सकता है कि लोगों ने अपनी सुरक्षा के लिए या किसी बहकावे में आकर किसी मृत जानवर के शहीर में जहर मिलाकर छोड़ दिया है, जिसे गुलदार ने खाया और उसकी वजह से उनकी मौत हुई। लेकिन अभी ये सिर्फ आशंका भर है जिसकी जांच की जा रही है।
डीएफओ के मुताबिक शिकार के लिहाज से जहर देने की आशंका कम लगती है। क्योंकि शिकारी जानवर के खाल और शरीर के अंगों के लिए शिकार करते हैं। जहर देने के बाद से गुलदारों की खाल के रोएं झड़ गए। इस सूरत में ये शिकार के इरादे से जहर देने का मामला नहीं लगता।
मुख्य वन संरक्षक पीके पात्रो भी कहते हैं कि शिकारी रिहायशी इलाकों के नज़दीक शिकार नहीं करते। उन्होंने भी परिस्थितियों को देखकर लोगों पर ही ज़हर देने की आशंका जतायी है लेकिन जब तक पूरी रिपोर्ट नहीं आती, ये नहीं पता चलता कि किस किस्म का ज़हर दिया गया है, अभी पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।
जिस क्षेत्र में गुलदारों के शव मिले हैं वहां मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बेहद कम है। हालांकि हरिद्वार वनक्षेत्र से ठीक पहले देहरादून के पास रायवाला क्षेत्र में जरूर मानव-वन्यजीव संघर्ष बेहद तेज़ है। यहां गुलदारों के हमले में कई लोगों की जानें जा चुकी हैं। 3 अगस्त को ही गुलदार ने जंगल में मवेशी चराने ले गई एक वृद्ध महिला को अपना शिकार बनाया। कॉम्बिंग के बाद जंगल के अंदर से उसका शव बरामद किया गया।
इसी दौरान हरिद्वार में ही राजाजी टाइगर रिजर्व के चीला रेंज में चार वर्ष की हथिनी की भी अचानक मौत हो गई। हाथियों के बाड़े में रह रही जूही नाम की इस हथिनी को घास चरने के लिए जंगल ले जाया गया था। वहां से देर शाम बाड़े में लौटने के बाद उसकी तबियत अचानक खराब हुई और थोड़ी देर में उसकी मौत हो गई। उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी नहीं आई है।
मुख्य वन संरक्षक इस मामले को गुलदारों की मौत से जोड़कर नहीं देख रहे। उनके मुताबिक सामान्य तौर पर भी ऐसी घटना हो सकती है। लेकिन राज्यभर में वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर अलर्ट जरूर जारी कर दिया गया है।