उत्तराखंड में आग का तेजी से बढ़ता दायरा

वन्य जीवों के साथ-साथ, जंगल से सटे रिहायशी इलाकों तक पहुंची आग मुश्किलें बरपा रही है। जिससे अब तक राज्य को 21,80,165 रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया है।
नैनीताल में वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएं हो रही हैं। Photo : Varsha Singh
नैनीताल में वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएं हो रही हैं। Photo : Varsha Singh
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सूरज गर्मी बरसा रहा है और उत्तराखंड के जंगलों में आग का दायरा बढ़ता जा रहा है। वन्य जीवों के साथ-साथ, जंगल से सटे रिहायशी इलाकों तक पहुंची आग मुश्किलें बरपा रही है। जिससे अब तक राज्य को 21,80,165 रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया है। लेकिन पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा है, हवा में जो कार्बन डाई ऑक्साइड घुल रहा है, जंगल में बना चिड़िया का घोसला और उसके अंडे जिस आग की चपेट में आकर नष्ट हो रहे हैं, छोटे-छोटे जीव-जंतु जिस आग में मारे जा रहे हैं, उस नुकसान का हम आंकलन ही नहीं करते, जो ज्यादा बड़ी समस्या है।

उत्तराखंड वन विभाग के मुताबिक 21 मई तक गढ़वाल मंडल में आग लगने की कुल 344 घटनाएं दर्ज की गईं, जिसमें 96 घटनाएं रिहाय़शी इलाकों और वन पंचायतों में आने वाले जंगल में लगीं। जिससे कुल 328.73 हेक्टेअर क्षेत्र प्रभावित हुआ है। गढ़वाल में आग से 4,77,785 रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया। गढ़वाल की तुलना में कुमाऊं के जंगलों में लगी आग ज्यादा विकराल है। यहां आगजनी की कुल 575 घटनाएं दर्ज की गईं। जिसमें रिहयशी क्षेत्र और वन पंचायतों के जंगलों में आग लगने की 96 घटनाएं हुईं। इससे जंगल का 712.6 हेक्टेअर क्षेत्र प्रभावित हुआ है। जिससे 16,34,011 रुपये नुकसान का आंकलन किया गया।

नैनीताल के जंगल में सबसे ज्यादा लगी आग

आग के लिहाज से नैनीताल के जंगल सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। यहां अब तक आग लगने की 223 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। जबकि अल्मोड़ा में 131 घटनाएं और देहरादून में आग लगने की 120 घटनाएं सामने आई हैं। नैनीताल में ही आग की चपेट में आने से पेड़ जले और पौधरोपण वाले क्षेत्रों में भी आग ने काफी नुकसान किया। यहां कुल 9.66 हेक्टेअर पौधरोपण वाले क्षेत्र आग से प्रभावित हुए। नैनीताल और अल्मोड़ा दोनों के ही जंगलों में ज्यादातर चीड़ और बलूत के पेड़ हैं। चीड़ की पत्तियां ज्वलनशील होती हैं। राज्य के जंगल में 16 प्रतिशत पेड़ चीड़ के हैं।

वनाग्नि के समय अधिकारियों के विदेश दौरे से नाराजगी

जिस समय राज्य के जंगल आग से धधक रहे थे, उसी समय वन विभाग के चार जिम्मेदार अधिकारियों के विदेश दौरे को लेकर राजनीति भी खूब गर्मायी। वन मंत्री हरक सिंह रावत को इसकी जानकारी ही नहीं थी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वन महकमे के अधिकारियों को छुट्टी दी थी। विदेश दौरे पर जाने वाले अधिकारियों में राज्य के प्रमुख वन संरक्षक जय राज भी शामिल रहे। वन मंत्री हरक सिंह रावत ने उन्हें तत्काल लौटने को कहा। उन्होंने कहा जिस समय राज्य के जंगलों की रक्षा करना हमारी सबसे बड़ी चुनौती है, उस समय आला अधिकारी विदेश दौरे पर कैसे जा सकते हैं।

मौसम नहीं देगा साथ

फिलहाल मौसम विभाग की ओर से भी जंगल की आग में कमी के लिहाज से अनुकूल संदेश नहीं मिल रहे। राज्यभर में औसत तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र ने वनाग्नि को लेकर औरेंज अलर्ट (तैयार रहें) जारी किया है कि अगले 3-4 दिनों के दौरा राज्य में अधिकतम तापमान में सामान्य से दो से 4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। इसके साथ ही 25 मई से 30 मई के बीच राज्य के मैदानी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान सामान्य से 4 से 6 डिग्री सेल्यिसय अधिक रह सकता है। इस स्थिति में जंगल में आग लगने की घटनाओं में इजाफा हो सकता है। वन विभाग को सेटेलाइट और अन्य माध्यमों से आग लगने की सूचना तो जल्दी मिल जा रही है। लेकिन आग को फैलने से रोकने के लिए विभाग के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। इसीलिए बारिश के इंतज़ार के साथ ही, ज्यादातर वन महकमा जंगल से सटे इलाकों में रहने वाले लोगों पर ही निर्भर करता है। ग्रामीणों के साथ मिलकर विभाग ने टीमें भी बनायी है। इसके साथ ही 90 फीसदी मामलों में आग लगने के लिए जिम्मेदार लोग ही माने जाते हैं

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