उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग, 30 घटनाओं में 54 हजार का नुकसान

उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं शुरू हो गई हैं, लेकिन इन घटनाओं में होने वाले नुकसान के आंकलन पर सवाल उठ रहे हैं
Photo : Vikas choudhary
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उत्तराखंड के एक ओर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी हो रही है, तो दूसरी तरफ राज्य के जंगल भी सुलगने लगे हैं। आग और पानी का ये संगम, दोनों ही तरह से राज्य पर कहर ढा रहा है। इस साल अब तक राज्य में जंगल में आग लगने की 30 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इन घटनाओं में कुल 54087 रुपए का ही नुकसान हुआ है। इससे एक बार फिर नुकसान के आकलन पर सवाल खड़े हो गए हैं। इससे पहले भी एक आरटीआई के जवाब में पिछले 18 साल के नुकसान की जो जानकारी दी गई थी, उस पर विशेषज्ञ सवाल उठा चुके हैं।  

राज्य में फायर सीजन 15 फरवरी से 15 जून तक माना जाता है। इस वर्ष फायर सीजन में अब तक जंगल में आग लगने की 30 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। गढ़वाल क्षेत्र के जंगलों में 17 आगजनी की घटनाएं हुईं, जबकि इस क्षेत्र में रिहायशी इलाकेवन पंचायत में 2 जगह जंगल में आग की घटना सामने आई है। इससे कुल 20.9 हेक्टेअर क्षेत्र प्रभावित हुआ है और 22,025 रुपए के नुकसान का आंकलन किया गया है। 

इसी तरह कुमाऊं में अब तक 7 जगहों पर जंगलों में आग लग चुकी है, इसमें 3 रिहायशी क्षेत्रवन पंचायत के मामले शामिल हैं। इससे कुल 19.25 हेक्टेअर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ और 32062.5 रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया। इस तरह राज्य में इस वर्ष के फायर सीजन में आग लगने के कुल 30 मामलों में 54087.5 रुपए का नुकसान हुआ है।

वर्ष 2016 में राज्य के 4,433.75 हेक्टेयर जंगल में आग लगी। कई दिनों तक सुलगती रही ये आग इतनी भयावह थी कि इसे बुझाने के लिए राज्य सरकार के संसाधन नाकाफी पड़ गए थे और सेना के हेलिकॉप्टर की मदद से आग बुझायी जा सकी। वन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक  इस आग से राज्य को करीब 4.65 लाख रुपए का नुकसान हुआ। वहीं, वर्ष 2017 में 1,244.64 हेक्टेयर जंगल में आग से करीब 18.34 लाख रुपए नुकसान का आंकलन किया गया। वर्ष 2018 में फायर सीजन में राज्य के जंगल भीषण तौर पर सुलगने लगे, कुल 4,480.04 हेक्टेयर जंगल में आग से करीब 86.05 लाख रुपए के नुकसान का आंकलन किया गया। पिछले तीन वर्षों के, जंगल की आग के ये इतने अलग-अलग आंकड़े हैं।

राज्य बनने के बाद से अब तक जंगल की आग से नुकसान

 - 2000 में 925 हेक्टेयर जंगल की आग से 2.99 लाख रुपए का नुकसान

- 2001 में 1393 हेक्टेयर जंगल जले और 1.17 लाख रुपए का नुकसान

- 2002 में 3231 हेक्टेयर जंगल और 5.19 लाख रुपए का नुकसान

- 2003 में 4983 हेक्टेयर में 10.12 लाख का नुकसान

- 2004 में 4850 हेक्टेयर में 13.14 लाख रु. का नुकसान

- 2005 में 3652 हेक्टेयर, 10.82 लाख रु. का नुकसान

- 2006 में 562.44 हेक्टेयर, 1.62 लाख रु. का नुकसान

- 2007 में 1595.35 हेक्टेयर, 3.67 लाख रु. का नुकसान

- 2008 में 2369 हेक्टेयर, 2.68 लाख रु. का नुकसान

- 2009 में 4115 हेक्टेयर, 4.79 लाख रु. का नुकसान

- 2010 में 1610.82 हेक्टेयर, 0.05 लाख रु. का नुकसान

- 2011 में 231.75 हेक्टेयर, 0.30 लाख रुपए का नुकसान

- 2012 में 2826.30 हेक्टेयर, 3.03 लाख रुपए का नुकसान

- 2013 में 384.05 हेक्टेयर, 4.28 लाख रुपए का नुकसान

- 2014 में 930.33 हेक्टेयर, 4.39 लाख रुपए का नुकसान

- 2015 में 701.36 हेक्टेयर, 7.94 लाख रुपए का नुकसान

- 2016 में 4433.45 हेक्टेयर, 4.65 लाख रुपए का नुकसान

- 2017 में 1244.64 हेक्टेयर में 18.34 लाख रुपए का नुकसान

- 2018 में 4480.04 हेक्टेयर में 86.05 लाख रुपए नुकसान का अनुमान लगाया गया।

मुख्य वन संरक्षक, सतर्कता और विधि प्रकोष्ठ, हल्द्वानी कार्यालय से ये आंकड़े आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत गौनिया की आरटीआई के जवाब में दिए गए। हेमंत गौनिया इन आंकड़ों को लेकर सहज नहीं हैं। वे कहते हैं कि चीड़ और देवदार के एक पेड़ की कीमत एक लाख रुपए से अधिक बैठती है, यहां हजारों हेक्टेयर जंगल में आग लगी, जिसे बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर लगाने पड़े और नुकसान चार-पांच लाख रुपए रहा। 

कैसे करते हैं जंगल में आग से नुकसान का आंकलन

वनविभाग के राज्य स्तरीय प्रवक्ता (वनाग्नि) रहे आरके मिश्रा ( फिलहाल प्रशासन, वन्य जीव संरक्षण और आसूचना) कहते हैं कि जंगल में आग के नुकसान के आंकलन के कई आधार होते हैं। जैसे चीड़ के जंगल में लीसा की कीमत का आंकलन किया जाता है। पीरूल की कीमत का आंकलन किया जाता है। यदि ऐसे क्षेत्र में आग लगी है जहां पौधरोपण किया गया है तो वहां नुकसान की कीमत अलग होगी। एक वर्ष पुराना पौधा जलने पर और पांच साल पुराना पौधा जलने पर अलग रेट लगाया जाता है। उनका कहना है कि हमार जंगलों में आग के दौरान अमूमन सूखे पत्ते ही जलते हैं, क्राउन फायर जैसी स्थिति नहीं होती, इसलिए नुकसान भी कम ही होता है। हालांकि वे मानते हैं कि जंगल की आग से पैसों में हुआ नुकसान तो दूसरे स्थान पर आता है, ज्यादा दिक्कत तो आग में झुलसने वाले जीव-जंतुओं का होता है, उनकी कीमत का हम आंकलन नहीं करते। फिर पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचता है, वो भी आंकलन के दायरे से बाहर होता है।

वन संरक्षण, वनाग्नि और आपदा प्रबंधन मामलों में राज्य के मुख्य वन संरक्षक प्रमोद कुमार सिंह के मुताबिक पौधरोपण वाले क्षेत्र में एक वर्ष के पौधे के जलने पर 15 रुपए का नुकसान माना जाता है। इसी तरह दो वर्ष का पौधा 16.80 रुपए, तीन वर्ष का पौधा 18.72 रुपए, चार वर्ष का पौधा 21 रुपए, पांच वर्ष का पौधा 24 रुपए का माना जाता है।सरफेस फायर यानी जंगल में नीचे लगी आग के मामले में चीड़ के जंगल में 2,250 रुपए प्रति हेक्टेयर का नुकसान माना जाता है, साल के जंगल में 1500 रुपए प्रति हेक्टअर और मिश्रित वन में 750 रुपए प्रति हेक्टेयर।

क्राउन फायर के मामले में चीड़ के जंगल में 900 रुपए प्रति हेक्टेयर नुकसान का आंकलन किया जाता है। साल के जंगल में 498 रुपए प्रति हेक्टेयर और मिश्रित वन में 252 रुपए प्रति हेक्टेयर नुकसान माना जाता है। क्राउन फायर में हुए नुकसान के मूल्यांकन में सरफेस फायर के नुकसान को भी जोड़ा जाता है। यदि आधे से ज्यादा पेड़ जल गया है तो बाजार दर के हिसाब से मूल्यांकन किया जाता है। इसी तरह लीसा की कीमत भी तय है।

फिर जैसे कि हेमंत गौनिया तंज करते हैं ये आंकड़े दफ्तरों में तैयार किये गये हैं। अधिकारी जंगलों का दौरा नहीं करते। यदि वे जंगल जाते भी हैं तो अपने गेस्ट हाउस में रहकर वापस लौट आते हैं। नहीं तो 2016 में चार हज़ार से अधिक हेक्टेयर में लगे जंगल में आग से महज पौने पांच लाख का नुकसान हुआ, वहीं वर्ष 2018 में इतने ही क्षेत्र में 86 लाख का नुकसान कैसे हो गया।

देहरादून में हेस्को संस्था के अनिल जोशी कहते हैं कि हम जंगलों के प्रति ईमानदार नहीं हैं, खासतौर पर जंगल में आग जैसे मुद्दों पर। वन विभाग के आंकड़ों पर उनका कहना है कि इन आंकड़ों को तैयार करने में ईमानदारी नहीं बरती गई है, ये सारा आंकलन नौकरी की तरह किया गया है और ये नौकरीनुमा आंकड़े हैं। जबकि जंगल को बचाने के लिए जंगल से रिश्ता बनाना होता है।

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