उत्तराखंड-हिमाचल की सीमा पर बनी आसन झील में विदेशी पक्षियों ने डाला डेरा

देहरादून से करीब 38 किलोमीटर आगे धालीपुर गांव के पास यमुना नदी और आसन नदी के पास बनी झील में हजारों विदेशी पक्षी अक्टूबर माह में ही पहुंच गए हैं, जो फरवरी तक यहां रहेंगे
उत्तराखंड-हिमाचल की सीमा पर बनी आसन झील में डेरा डाले प्रवासी पक्षी। फोटो: वर्षा सिंह
उत्तराखंड-हिमाचल की सीमा पर बनी आसन झील में डेरा डाले प्रवासी पक्षी। फोटो: वर्षा सिंह
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राजस्थान की सांभर झील में प्रवासी पक्षियों की मौत की खबर विचलित करती है। उसी समय में, उत्तराखंड-हिमाचल की सीमा पर आसन झील राहत भरी ठंडी सांस देती है। दूर दिखते पहाड़ और शहर के कोलाहल से दूर आसन झील में विदेशी परिंदे सुकून के साथ सर्दियों का समय बिता रहे हैं। परिंदों के लिए झील में घेरबाड़ कर अलग जगह निर्धारित की गई है। पानी का एक छोटा सा हिस्सा पर्यटकों के लिए छोड़ा गया है। जहां वे नाव की सैर कर सकते हैं। शहर से बाहर इस जगह बेहद शांति है, जो इन पक्षियों के लिए बहुत जरूरी है।  

देहरादून से करीब 38 किलोमीटर आगे धालीपुर गांव के पास यमुना नदी और आसन नदी आपस में मिलते हैं। करीब 444 हेक्टेअर क्षेत्र में फैले आसन वेट लैंड को वर्ष 2005 में देश का पहला वेटलैंड कंजर्वेशन रिजर्व घोषित किया गया था। ताकि यहां यमुना और आसन नदी के साथ वेटलैंड यानी आर्द्रभूमि का संरक्षण किया जा सके, जहां हजारों विदेशी परिंदें हर साल अक्टूबर से फरवरी तक अपना डेरा जमाते हैं।

आसन कंजर्वेशन रिजर्व के रेंज ऑफिसर जवाहर सिंह तोमर बताते हैं कि आसन झील में पानी गहरा भी है और कुछ जगहों पर उथला भी। इसके चलते यहां एक साल में करीब आठ हज़ार तक की संख्या में पानी के पास रहने वाले पक्षी आ चुके हैं। इनमें 251 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां रिकॉड की जा चुकी हैं। इस बार नवंबर के तीसरे हफ्ते में चकराता वन प्रभाग की गणना में 22 से अधिक प्रजाति की साढ़े चार हज़ार  पक्षियों की मौजूदगी का आंकलन किया गया। हालांकि जनवरी के दूसरे हफ्ते में वन्यजीव संस्थान और पक्षी विशेषज्ञ बेहतर तकनीक की मदद से पक्षियों की गिनती का काम करेंगे। उस समय तक चिड़ियों की तादाद में भी इज़ाफ़ा हो जाता है।

आसन की आर्द्रभूमि की अहमियत को देखते हुए इंटरनेशनल बॉडी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर और बर्ड इंटरनेशनल ने इसे भारत में एक अहम पक्षी स्थल घोषित किया है। अलग-अलग किस्म के पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश में जुटी उत्तराखंड सरकार बर्ड वॉचिंग के लिए आसन झील को प्रोत्साहित कर रही है। 30 नवंबर को यहां बर्ड फेस्टिवल भी आयोजित किया गया। स्कूली बच्चों के साथ विदेशी सैलानी भी चिड़ियों का संसार देखने के लिए पहुंचे।

सुनहरे परों वाले सुर्खाब पक्षी या ब्राह्मणी बत्तखों को ये जगह ख़ास पसंद है। वर्ष 2003 में उत्तराखंड वन विभाग की ओर से कराए गए अध्ययन के मुताबिक राज्य में चिड़ियों की 623 प्रजातियां हैं। देश में पायी जाने वाली चिड़ियों की 1303 प्रजातियों में से 50 फीसदी से अधिक उत्तराखंड में पायी जाती हैं। इसलिए यहां बर्ड वॉचिंग की संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। आसन झील की देखरेख का जिम्मा संभाल रहे गढ़वाल मंडल विकास निगम के मैनेजर विश्वनाथ बेनिवाल कहते हैं कि बर्ड वॉचिंग विदेशों का मूल विचार है। हमारे यहां अभी इस तरह के पर्यटक कम आते हैं। लेकिन हमारी लगातार कोशिश है कि लोगों को चिड़ियों के बारे में जानकारी दी जाए, जिससे वे इनकी तरफ आकर्षित हो सकें।

झील में इस समय सुनहरे रंग के परों वाले रूडी शेलडक यानी सुर्खाब पक्षी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। इसके साथ करीब 24 प्रजातियों के चार हज़ार प्रवासी परिंदे मौजूद हैं। इनमें मलार्ड (जंगली बतख), कॉमन टील (कलहंस), रेड-क्रेस्टेड पोचर्ज (लाल चोंच वाली बत्तख) समेत अलग-अलग रंग, आकार की बत्तखें और हंस शामिल हैं। जिनके अंग्रेजी नाम नॉर्दन शोवेलर, ग्रे लेग गूज, बार हेडेड गूज, गैडवॉल, यूरेशियन विगन, नॉर्दन पिनटेल, टफ्टेड डक, पर्पल हेरन, रेड नैप्ड इबिस, वूली नेक्ड स्टॉर्क, पेन्टेड स्टॉर्क, कॉम्ब डक, कॉमन कूट, ब्राउन  हेडेड गल, रेडशैंक, ग्रीनशैंक, फैरुजिनस डक, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, ग्रेट कॉरमोरैंट पक्षी हैं। 

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