पक्षियों को बिजली की लाइनों से बचाएगा 'फ्लैपर'

इस उपकरण की मदद से बिजली की लाइनों के सामने से उड़ने वाले पक्षियों की जान बचाई जा सकती है
बिजली की लाइनों की वजह से पक्षियों की जान चली जाती है। Photo: Needpix
बिजली की लाइनों की वजह से पक्षियों की जान चली जाती है। Photo: Needpix
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दुनिया भर में बिजली की लाइनों से टकराने से बड़ी संख्या में पक्षियों की जान चली जाती है। पक्षियों को बचाने को लेकर अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन के साथ- साथ एक उपकरण भी बनाया है। यह एक ऐसा उपकरण है जो तारों के चारों ओर घूमता है जिसे " फ्लैपर" के रूप में जाना जाता है। इस उपकरण की मदद से बिजली की लाइनों के सामने से उड़ने वाले पक्षियों की जान बचाई जा सकती है।  

ओएसयू कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज में शोधकर्ताओं द्वारा निकाले गए निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि दुनिया भर में बिजली की लाइनों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ इनसे टकराने से पक्षीयों की मृत्यु दर चिंता बढ़ा रही है। यह अध्ययन ग्लोबल इकोलॉजी एंड कंजर्वेशन में प्रकाशित हुआ है।

शोध में बिजली की लाइनों से टकराकर मरने वाली 300 से अधिक प्रजातियों की पक्षियों का दस्तावेजीकरण किया गया है। एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि अमेरिका में प्रति वर्ष 17 करोड़ से अधिक पक्षियां मर जाती हैं वहीं दूसरी ओर दुनिया भर में प्रति वर्ष 100 करोड़ पक्षियों की मृत्यु का अनुमान है। जहां कहीं भी बिजली की लाइनें लगी होती है वहां पक्षियां सबसे अधिक प्रभावित होती हैं।

पक्षियों का संरक्षण करने वाले लोगों ने कई साल पहले पक्षियों के उड़ान का मार्ग बदलने वाले 'डायवर्टर' बनाए, मूल रूप से ये उपकरण इस तरह के थे जो लाइनों को अधिक दृश्यमान (विजिबल) बनाते हैं, जो लाइनों के सामने से उड़ने वाले पक्षियों की संख्या को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम था।

पक्षियों को टकराने से बचाने के लिए सामान्य प्रकार के पीवीसी चक्राकार (सर्पिल) का उपयोग किया जाता है, जो टिकाऊ और लगाने में भी आसान हैं, लेकिन वे वास्तव में कितनी अच्छी तरह काम करते हैं, इसे अच्छी तरह से समझा नहीं गया है। हालांकि वे लगभग चार दशकों से उपयोग में हैं।

ओएसयू के शोधकर्ता वर्जीनिया मोरन्दिनी और रयान बॉम्बुश ने तीन प्रकार के फ्लाइट डायवर्टरों की प्रभावशीलता की तुलना की: पीला पीवीसी चक्राकार (सर्पिल), नारंगी पीवीसी सर्पिल, और एक फ्लैपर मॉडल जिसे परावर्तक स्टिकर के साथ तीन नारंगी और लाल पॉलीप्रोपाइलीन ब्लेड के साथ लगाया गया था।

फ्लैपर एक विद्युत लाइन से लटका होता है और इसके ब्लेड, 21 सेंटीमीटर/ 6.2 सेंटीमीटर के, एक ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घूमते हैं।

तीन साल का यह अध्ययन दक्षिणी स्पेन में किया गया और शोध में लगभग 54 किलोमीटर बिजली लाइनों पर विभिन्न प्रकार के डायवर्टरों को आजमाया गया।

जिसमें दस किलोमीटर पर पीले चक्राकार पीवीसी लगाए गए थे, 13 किलोमीटर पर नारंगी, अन्य 13 में फ्लैपर्स थे, और 16 किलोमीटर में कोई मार्कर नहीं लगाए गए थे। सभी तीन उड़ान डायवर्टर के प्रकारों को हर 10 मीटर में फैलाया गया था।

फील्ड कर्मचारियों ने बिजली लाइनों द्वारा मारे गए पक्षियों के साक्ष्य के लिए हर 40 दिनों में लाइनों के नीचे क्षेत्र को छाना और 32 प्रजातियों के कुल 131 पक्षी मरे पाए गए।

शोध में बताया गया है कि अन्य नियंत्रण की तुलना में फ्लैपर से 70% औसत मृत्यु दर कम हुई थी। निष्कर्षों से यह भी पता चला कि सर्पिल भी डायवर्टर से बेहतर थे, लेकिन फ्लैपर की तुलना में काफी कम प्रभावी थे।

मोरन्दिनी ने कहा रंगीन पीवीसी सर्पिल अब तक का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला पक्षियों का उडान डायवर्टर है, लेकिन फ्लैपर डायवर्टर एक था जो विभिन्न बिजली लाइनों, आवासों और अलग-अलग पक्षियों में सबसे कम मृत्यु दर के लिए पहचाना गया। अध्ययनकर्ताओं ने कहा हम फ्लाइट डायवर्टर को लगाते समय फ्लैपर को पहली पसंद के रूप में लगाने का सुझाव देते हैं।

फ्लैपर और पीवीसी सर्पिल की अलग-अलग सामग्री और उत्पादन लागत होती है, अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि फ्लैपर को आसानी और तेजी से लगाया जा सकता है। बिजली कंपनियों को डायवर्टर लगाने की प्रक्रिया के दौरान लाइन के कंरट को बंद कर देना चाहिए।

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