उत्तराखंड के जंगलों में पिछले साल 15 अक्टूबर से शुरू हुआ आग का सिलसिला एक दिन भी नहीं थमा। प्रदेश में लगातार जंगलों में आग लग रही। नवंबर से शुरू हुए विंटर सीजन (सर्दी का मौसम) की बात हो या मार्च-अप्रैल का प्री मानसून (मानसून पूर्व) की, हर दिन कहीं न कहीं जंगलों में आग लगी रही। इसकी बड़ी वजह है कि न तो 2020 के मानसून सीजन में प्रदेश में पर्याप्त बारिश हुई और ना ही मानूसन के बाद बारिश हुई। सर्दी के सीजन में भी बारिश नहीं हुई।
उत्तराखंड में अमूमन 15 फरवरी से जंगलों में आग लगना शुरू होती है और मई के अंत तक आग लगती रहती है। वन विभाग इसे फोरेस्ट फायर सीजन कहता है। विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 2020 के फायर सीजन में जंगलों में आग लगने की घटनाएं कम हुई। सूत्र बताते हैं कि इस फायर सीजन में 37 दिन जंगलों में आग लगी।
फायर सीजन बीतने के बाद मानसून सीजन शुरू हो गया। यह ज्यादा दिन नहीं चला। सितंबर में तो बारिश का सिलसिला बिल्कुल थम ही गया। ऐसे में फायर सीजन बीतने और 15 अक्टूबर 2020 के दौरान 25 दिन जंगलों में आग रही।
लेकिन 15 अक्टूबर 2020 से लेकर 5 अप्रैल 2021 के दौरान उत्तराखंड में कहीं न कहीं जंगलों में आग लगी रही। यानी कि राज्य में लगातार 170 दिन से अधिक समय हो चुका है, जब जंगलों में आग लगी हुई है। विभाग का कहना है कि इस दौरान वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1 अक्टूबर 2020 से लेकर 4 अप्रैल, 2021 की सुबह तक राज्य के जंगलों में आग लगने की 989 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 1297.43 हेक्टेअर जंगल जल चुके हैं। आंकड़े बताते हैं कि नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के दौरान राज्य के जंगलों में 470 आग लगने की घटनाएं हुई, जबकि नवंबर 2019 से लेकर जनवरी 2020 के दौरान केवल 39 घटनाएं हुई थी।
जनवरी 2020 में आग की घटनाओं को देखते हुए राज्य के वन मंत्री हरक सिंह रावत को कहना था कि राज्य में अब 12 महीने का फोरेस्ट सीजन हो गया है।
फोरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 5 अप्रैल को जंगलों में बड़ी आग की एक्टिव घटनाओं के मामले में उत्तराखंड का नंबर मध्यप्रदेश के बाद दूसरा था। एक्टिव घटना से आशय है कि आग लगी हुई है। मध्य प्रदेश में 93 घटनाएं एक्टिव थी, जबकि उत्तराखंड में 71 जगहों पर आग लगी हुई थी।
उल्लेखनीय है कि साल 2020 को जहां अब तक का दूसरा गर्म वर्ष माना गया था, वहीं साल 2021 के शुरुआती तीन महीने भारत के लिए खासे गर्म रहे हैं। खासकर हिमालयी राज्यों के लिए यह तीन माह काफी चुनौती भरे रहे हैं। इन तीन महीनों के दौरान जहां सामान्य से कम बारिश रिकॉर्ड की गई है, वहीं अधिकतम तापमान भी सामान्य से काफी अधिक रिकॉर्ड किया जा रहा है। हिमालयी राज्यों के कई इलाकों में तो अधिकतम तापमान ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
मौसम विभाग के अनुसार इस बार जनवरी से मार्च तक उत्तराखंड में केवल 10.9 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि सामान्य तौर पर इस अवधि में 54.9 मिमी बारिश होती है। यानी सामान्य से 80 प्रतिशत कम बारिश हुई। आग से सबसे ज्यादा प्रभावित पौड़ी जिले में 92 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई। इस अवधि में पौड़ी जिले में सामान्य रूप से 36.6 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस बार मात्र 3.1 मिमी बारिश हुई।
दरअसल, हिमालयी राज्यों में बारिश के पैटर्न में बदलाव और बढ़ती गर्मी के लिए काफी हद तक जलवायु परिवर्तन का असर माना जा रहा है। अगर जंगलों में लगने वाली आग को रोकने का प्रबंध ठीक नहीं किया गया तो इसके परिणाम काफी नुकसानदायक साबित हो सकते हैं।