किसानों ने पेश की मिसाल, पक्षियों के लिए दी अपनी जमीन

इस पक्षी अभयारण्य 140.29 एकड़ जमीन में फैले इस पक्षी अभयारण्य की देख रेख का जिम्मा भी समुदाय के हाथ में ही होगा
कटिहार में किसानों की जमीन पर बना पक्षी अभ्यरण्य। फोटो: पुष्यमित्र
कटिहार में किसानों की जमीन पर बना पक्षी अभ्यरण्य। फोटो: पुष्यमित्र
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समय के इस दौर में जब लोग जमीन के लालच में झील और तालाब पर कब्जा कर रहे हैं, उसे भरवाकर खेत और मकान बनवाने में जुटे हैं, कटिहार के किसानों ने अपनी जमीन पर पक्षी अभयारण्य बनवाने की अनुमति बिहार सरकार को दे दी है। इस तरह कटिहार का गोगाबिल झील बिहार का पहला सामुदायिक आरक्ष बन गया है। इस पक्षी अभयारण्य 140.29 एकड़ जमीन में फैले इस पक्षी अभयारण्य की देख रेख का जिम्मा भी समुदाय के हाथ में ही होगा और इसका भू-स्वामित्व भी किसानों का ही होगा। 2 अगस्त, 2019 को बिहार सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने इसे सामुदायिक आरक्ष का दर्जा दे दिया. साथ ही इस झील के 73.78 एकड़ जमीन को संरक्षण आरक्ष का दर्जा दिया गया है।

गोगाबिल झील बिहार के कटिहार जिले के अमदाबाद प्रखंड में स्थित एक गोखुर झील है। इस झील के उत्तर में महानंदा नदी और दक्षिण और पूरब में गंगा नदी बहती है। 88 हेक्टेयर में फैले इस झील में 90 से अधिक प्रजाति के पक्षियों की आवाजाही दर्ज की गयी है, जिनमें 30 प्रजाति प्रवासी पक्षियों की है। इसमें चार पक्षी विलुप्तप्राय श्रेणी में आते हैं, जिनमें गरुड़ प्रजाति के भी पक्षी हैं। हालांकि इस झील के बड़े हिस्सा पर जमीन का स्वामित्व स्थानीय किसानों का रहा है, फिर भी यह झील लगभग पूरे साल जल प्लावित रहता है।

1990 में स्थानीय पर्यावरण विदों की मांग पर इसे वन विभाग ने प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया था, मगर 2002 में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन के बाद प्रतिबंधित क्षेत्र का प्रावधान खत्म हो गया। इसके बाद यह झील बिहार की संरक्षित क्षेत्र की सूची से बाहर हो गया और यह आम जमीन की तरह हो गया। इस स्थिति में यहां नजर आने वाले पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा। ऐसे में फिर से स्थानीय पर्यावरणविद सक्रिय हुए।

खासकर भागलपुर स्थित मंदार नेचर क्लब के अरविंद मिश्रा जो इंडियन बर्ड कंजरवेशन नेटवर्क के बिहार स्टेट समन्वयक भी हैं, ने लोगों को इस दिशा में जागरूक करना शुरू किया। उनके साथ कटिहार के जनलक्ष्य के सचिव डॉ पीसी दास, कोषाध्यक्ष डॉ राज अमन सिंह, पर्यावरणविद प्रो टीएन तारक, गोगा विकास समिति के प्रो राम कृपाल कुमार आदि ने मिल कर स्थानीय किसानों को समझाया कि इस क्षेत्र को पक्षियों के लिए संरक्षित करना ही सबसे हित में है।

2013 में स्थानीय समुदाय की एक सभा ने प्रस्ताव बनाकर प्रतिवेदन तत्कालीन वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव को भेज दिया कि वे अपनी जमीन पर पक्षियों का सामुदायिक आरक्ष बनाने के लिए तैयार हैं. 2015 में स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों ने गोगाबिल झील का भ्रमण और निरीक्षण किया। 2 नवंबर, 2018 में राज्य वन्यप्राणी परिषद की बैठक में इसे मंजूरी दे दी गयी और 2 अगस्त, 2019 को इससे संबंधित अधिसूचना भी जारी कर दी गयी। इस तरह यह बिहार का पहला सामुदायिक पक्षी आरक्ष बन गया।

इस झील को सामुदायिक आरक्ष बनाने के अभियान में जुटे अरविंद मिश्रा कहते हैं, इस इलाके के आरक्ष बन जाने के बावजूद भू-स्वामित्व स्थानीय किसानों के नाम पर ही रहेगा। इस सामुदायिक आरक्ष के प्रबंधन के लिए बनी समिति में भी स्थानीय किसानों का ही बड़ा प्रतिनिधित्व होगा, हालांकि उसमें वन विभाग के अधिकारी भी होंगे। यह समिति ही स्वविवेक से और पक्षियों के हित को प्राथमिकता देते हुए इस झील में मछली पकड़ने और अन्य गतिविधियों के लिए लोगों को इजाजत देगी।

अरविंद मिश्रा कहते हैं, इस झील से सटे बगार बील को भी इसी तरह सामुदायिक आरक्ष बनाये जाने की जरूरत है, क्योंकि बगार बील में भी पक्षियों की विविधता और संख्या गोगाबील झील से कम नहीं। यहां पक्षियों का एक झील से दूसरे झील में आना जाना लगा रहता है।

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