
हाथियों को सामाजिक और दिमागी रूप से व्यवहार करने के लिए जाना जाता है, जिसमें साथ में किए जाने वाले कार्यों को समझने, दूसरों की भावनात्मक स्थिति का आकलन करने की क्षमता शामिल होती है। इस तरह, कहा जा सकता है कि हाथियों में सामाजिक और सहायता करने वाला व्यवहार आश्चर्यजनक नहीं है। वैसे भी हाथी सबसे शक्तिशाली और बुद्धिमान जानवर हैं इसलिए हाथी मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी माना गया हैं।
क्या जंगली हाथी इस तरह का व्यवहार अपने साथी हाथियों के लिए भी करते हैं? इस बात का पता लगाने के लिए, वन्यजीव वैज्ञानिकों की एक टीम के द्वारा एक अध्ययन किया गया है। अध्ययन में पूर्वोत्तर भारत में जंगली हाथियों के बीच सामाजिक व्यवहार के मजबूत सबूत मिले हैं। दो अलग-अलग मौकों पर, वयस्क नर हाथियों ने वयस्क मादा हाथियों को बचाया, जिन्हें शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के हिस्से के रूप में उनकी सामाजिक बुद्धिमत्ता और दिमागी क्षमताओं पर प्रकाश डाला है।
यह अध्ययन भारत के विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ), असम वन विभाग, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की एशियाई हाथी विशेषज्ञों की टीम और कई अन्य गैर सरकारी और सरकारी निकायों के शोधकर्ताओं ने मिलकर किया है।
बायोट्रोपिका नामक पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन लंबे समय से चले आ रहे सवाल को परिप्रेक्ष्य से जोड़ता है कि क्या पशु समाज में परोपकारी व्यवहार मौजूद हैं? शोधकर्ताओं ने इन दुर्लभ और बेहद चुनौतीपूर्ण घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया है। पारंपरिक धारणा यह है कि जानवर एक-दूसरे की मदद तभी करते हैं जब वे एक-दूसरे से संबंधित हों या भविष्य में वे मदद कर सकें, हालांकि हमेशा ऐसा होना जरूरी नहीं है।
जंगली हाथियों को जीपीएस कॉलर लगाने और उनकी गतिविधि के पैटर्न और मानव-हाथी संघर्ष के कारणों का अध्ययन करने की परियोजना के हिस्से के रूप में, शोधकर्ताओं ने असम के सोनितपुर में यह काम किया। उनके अध्ययन वाली जगहों में सोनाई रूपाई वन्यजीव अभयारण्य और अड्डाबरी चाय बागान शामिल थे।
शोध में कहा गया है कि दोनों जगहों पर, शोध टीम ने एक बड़े झुंड से एक वयस्क मादा हाथी को शांत किया और उसे सुरक्षित रूप से ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) कॉलर पहनाया। जब झुंड के बाकी हाथी शोध दल से दूर चले गए, तो एक वयस्क नर हाथी बेहोश मादा के पास पहुंचा।
असम के सोनाई रूपाई वन्यजीव अभयारण्य में, यह एक बिना दांत वाला नर हाथी था, जिसे 'मखना' के रूप में जाना जाता है और अड्डबारी चाय बागान में, यह एक दांतों वाला जिसे टस्कर कहते हैं, वह था। अध्ययन टीम की उपस्थिति से उत्पन्न खतरे के बावजूद, दोनों नरों ने मादा को बेहोशी से बाहर निकालकर टीम से दूर कर दिया, जिसे शोधकर्ता एक पूरी तरह से अप्रत्याशित कार्रवाई मानते हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि यह प्रति-सहज व्यवहार बचाव करने वाला व्यवहार के लिए जरूरी माने जाने वाले मानदंडों पर खरा उतरता है और उनके व्यवहारिक पारिस्थितिकी के एक बहुत कम किए गए अध्ययन के पहलू को सामने लाता है।
अध्ययन में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि इस तरह की परोपकारी काम भावनात्मक या सहानुभूतिपूर्ण चिंता से उत्पन्न हो सकती हैं, एक ऐसी घटना जिसमें हर एक जानवर अन्य जानवरों की भावनात्मक या शारीरिक स्थिति पर प्रतिक्रिया करते हैं। यहां तक कि पारस्परिक परोपकार एक ऐसा व्यवहार जहां तुरंत फायदे के बिना मदद की जाती है।
यह अध्ययन पशु जगत में सांस्कृतिक व्यवहार के बारे में एक अहम जानकारी प्रदान करता है, जो बदले में हमें वन्यजीवों के प्रबंधन के कामों को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, यह हाथियों के संरक्षण के लक्ष्यों को तैयार करते समय न केवल संख्याओं को देखने की जरूरत को सामने लाता है, बल्कि उनके जीवन की गुणवत्ता को सुरक्षित करने की भी आवश्यकता है।
अध्ययन में कहा गया है कि ये निष्कर्ष उनके संरक्षण प्रबंधन को तैयार करते समय उनकी सामाजिक और भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर विचार करने की आवश्यकता को सामने लाते हैं। अध्ययन के अवलोकन इस बात के पर्याप्त सबूत देते हैं कि हाथी और कई अन्य जानवर सोचने वाले, महसूस करने वाले हैं।
अध्ययन में पाए गए ये सबूत हमें संवेदनशील जानवरों के साथ व्यवहार करने के तरीके को बदलने के लिए प्रेरित करता है, उन्हें मशीन या संपत्ति के रूप में नहीं, बल्कि ऐसे जानवरों के रूप में, जिनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ावा देने और यथासंभव सुरक्षा प्रदान करने लायक है।