समुद्र में लीक तेल की थोड़ी मात्रा भी समुद्री पक्षियों के लिए है बड़ा खतरा

समुद्र में तेल की पतली परत जिसकी मोटाई 0.1 से 3 माइक्रोमीटर के बीच हो वो भी समुद्री पक्षियों के पंखों की संरचना पर व्यापक असर डाल सकती है
आयल लीक का शिकार पेलिकन पक्षी; फोटो: विकीमीडिया
आयल लीक का शिकार पेलिकन पक्षी; फोटो: विकीमीडिया
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समुद्र की सतह पर कच्चे तेल की थोड़ी सी मात्रा भी समुद्री पक्षियों के पंखों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। यहां तक कि यदि इस परत की मोटाई बाल की एक फीसदी भी हो तो भी वो इन पक्षियों के लिए संकट की वजह बन सकती है।

दुनिया में आए दिन कहीं न कहीं तेल रिसाव के मामले सामने आते ही रहते हैं। इस तरह की घटनाएं समुद्री पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालती हैं। विशेष रूप से समुद्र और उसपर निर्भर रहने वाले जीवों के लिए तो इस तरह की घटनाएं तो किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है।

आमतौर पर तेल रिसाव की छोटी-मोटी घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन तेल की थोड़ी मात्रा भी समुद्री जीवों के लिए बड़ा खतरा है।

इस बारे में हाल ही में यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क (यूसीसी) द्वारा किए एक नए अध्ययन में सामने आया है कि समुद्र में तेल की पतली परत जिसकी मोटाई 0.1 से 3 माइक्रोमीटर के बीच हो वो भी समुद्री पक्षियों के पंखों की संरचना पर व्यापक प्रभाव डाल सकती है। इसकी वजह से इनके पंखों की जलरोधक क्षमता पर असर पड़ता है।

पक्षियों पर किए शोधों से पता चला है कि जो पक्षी तेल के संपर्क में आते हैं उन्हें पानी में डूबने, ठंड लगने और उत्साह में कमी आने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। देखा जाए तो इस तेल प्रदूषण के संपर्क में आने से पक्षियों के पखों की संरचना के साथ-साथ, उनकी जलरोधक क्षमता, फड़फड़ाहट और थर्मोरेग्यूलेशन यानी तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित अपने इस अध्ययन में यूसीसी के शोधकर्ताओं ने मैंक्स शीयरवाटर नामक पक्षी के पंखों को एकत्र किया है। यह एक ऐसा समुद्री पक्षी है जिसके बारे में यह माना जाता है कि इसे बढ़ते तेल प्रदूषण के कारण खतरा है।

पखों की संरचना के साथ-साथ, जलरोधक क्षमता पर भी पड़ता है असर

शोधकर्ताओं ने यह देखने के लिए पंखों की जांच की है कि तेल के संपर्क में आने के बाद कितनी जल्दी इन पक्षियों के पंखों को भिगो देता है। शोधकर्ताओं ने पंखों की संरचना में आने वाले बदलावों के अध्ययन के लिए उच्च क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी की मदद ली है। शोधकर्ताओं के मुताबिक तेल के संपर्क में आने के बाद पंख के भीतर का माइक्रोस्ट्रक्चर एक साथ चिपक जाता है, जिससे पानी उसके आर-पार अधिक आसानी से निकल जाता है।

गौरतलब है कि एक्सॉन वाल्डेज और सी एम्प्रेस स्पिल जैसी आपदाओं के चलते भारी मात्रा में अपरिष्कृत या कच्चा तेल समुद्र में फैल गया था। इतना ही नहीं इनके निष्कर्षण और परिवहन के कारण नियमित रूप से कम-ज्यादा मात्रा में यह तेल पर्यावरण में फैल रहा है। देखा जाए तो यह तेल प्रदूषण पहले से ही खतरे में पड़ी कई समुद्री प्रजातियों के लिए गंभीर खतरा है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता एमा मर्फी का कहना है कि आमतौर पर समुद्रों में पुराने छोटे पैमाने पर हुए तेल प्रदूषण को अनदेखा कर दिया जाता है। हालांकि यह समुद्री पक्षियों के स्वास्थ्य और अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। देखा जाए तो कई प्रजातियां समुद्र में जीवित रहने के लिए अपनी जलरोधक क्षमता पर निर्भर करती हैं।

वहीं जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के हवाले से पता चला है कि समुद्रों में 90 फीसदी से ज्यादा ‘आयल स्लीक्स’ के लिए हम इंसान जिम्मेवार हैं। जो समुद्री इकोसिस्टम और वहां रहने वाले जीवों के लिए बड़ा खतरा है। पता चला है कि ज्यादातर आयल स्लीक्स तटों के पास पाए गए हैं। इनमें से करीब आधे तटों के लगभग 25 मील के दायरे में थे, जबकि 90 फीसदी का दायरा 100 मील से ज्यादा नहीं था।

इस अध्ययन के मुताबिक समुद्र में फैले तेल की छोटी से छोटी मात्रा भी प्‍लैंकटनों पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है। यह अति-सूक्ष्‍म जीव समुद्री खाद्य प्रणाली का आधार हैं, जिनपर मछलियों से लेकर कई जीवों का जीवन निर्भर है। वहीं गहराई में रहने वाले अन्य समुद्री जीव जैसे व्हेल और कछुए जब सांस लेने के लिए सतह पर आते हैं तो वो भी इस आयल स्लीक्स का शिकार बन जाते हैं।

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