अध्ययन के मुताबिक, अफ्रीका के पहाड़ों पर रहने वाले 20 प्रतिशत से भी कम लुप्तप्राय गोरिल्लाओं के इबोला वायरस से संक्रमित हो जाने पर इनके मात्र 100 दिनों तक जीवित रहने के आसार हैं।
अध्ययन के अनुसार रवांडा, युगांडा और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में रहने वाले पर्वतीय गोरिल्लाओं के बीच इबोला वायरस के प्रकोप का सिमुलेशन किया है। इसके प्रभावों को जानने के लिए कंप्यूटर मॉडलिंग का उपयोग किया गया।
अध्ययन में पाया गया कि इस तरह के घातक प्रकोप लुप्तप्राय गोरिल्लाओं की आबादी को कम कर सकता है, वर्तमान में इनकी संख्या 1,000 से कुछ ही अधिक है।
यह अध्ययन स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन से जुड़े शोधकर्ताओं के साथ-साथ गोरिल्ला डॉक्टर्स के वैज्ञानिकों द्वारा आयोजित किया गया था, जो कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस पर आधारित है।
अध्ययन में कहा गया कि, जांच की गई कोई भी टीकाकरण रणनीति बढ़ते संक्रमण को तेजी से नहीं रोक पाएगी। मॉडल ने पता लगाया कि पहले संक्रमित होने वाले गोरिल्ला का पता लगने के तीन सप्ताह के भीतर, कम से कम आधे गोरिल्लाओं का टीकाकरण करके 50 फीसदी या उससे अधिक के जीवित रहने की दर हासिल की जा सकती है।
इबोला अत्यधिक घातक संक्रमण
साल 2005 के बाद से जंगली गोरिल्ला में इबोला वायरस के कोई मामले नहीं आए हैं, जबकि इबोला मौजूद है और पूर्व-मध्य अफ्रीका में घूम रहा है और तेजी से मानव-वन्यजीव सम्पर्क वाले इलाकों में इसके फैलने की चिंता बढ़ गई है।
अध्ययनकर्ता और गोरिल्ला डॉक्टर्स के कार्यकारी निदेशक कर्स्टन गिलार्डी ने कहा, हम बहुत भाग्यशाली रहे हैं कि आज तक इबोला वायरस ने पर्वतीय गोरिल्लाओं को प्रभावित नहीं किया है। लेकिन पहाड़ों पर रहने वाले गोरिल्ला की आबादी में प्रवेश करने वाले इबोला वायरस के खतरों को कम करने के लिए सतर्क रहने, निगरानी और आकस्मिक योजना की जरूरत है।
हम इन निष्कर्षों को रवांडा, युगांडा और कांगो के वन्यजीव अधिकारियों से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के साथ तैयार करने में सफल रहे।
पहाड़ों में रहने वाले गोरिल्ला समूहों में रहने वाले सामाजिक प्राणी हैं जो कभी-कभी अन्य समूहों के संपर्क में आते हैं। इबोला वायरस के कारण इनकी मृत्यु दर 98 फीसदी तक होने की आशंका जताई गई है, यह संक्रमण बड़े वानरों के लिए अत्यधिक घातक है।
प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉन जिम्मरमैन ने कहा, विरुंगा मासिफ क्षेत्र के पहाड़ों पर रहने वाले गोरिल्लाओं की आबादी राष्ट्रीय उद्यानों, वन 'द्वीपों' में अलग-अलग है, जो अफ्रीका में कुछ भारी मानव जनसंख्या घनत्व से घिरे हैं। हम जानते हैं कि गोरिल्ला मानव रोगजनकों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।
मनुष्यों से गोरिल्लाओं में संक्रमण के फैलने का बहुत बड़ा खतरा है। यह अध्ययन पहाड़ों में रहने वाले गोरिल्लाओं के 50 फीसदी का पहले से टीकाकरण करने या आबादी में इबोला के पहले पता लगाने पर टीकाकरण के लिए तैयारी करने के लिए अहम है। जिससे व्यापक संक्रमण को रोकने के लिए तथा यह आबादी के जीवित रहने की दर को 50 फीसदी तक बढ़ा सकता है।
रोग के प्रभाव का पूर्वानुमान लगाना
अध्ययन में आउटब्रेक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया, जो एक ओपन-सोर्स टूल है जो वन्यजीव संरक्षणवादियों को आबादी या पारिस्थितिकी तंत्र में बीमारी के प्रभावों का पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है। वैज्ञानिकों ने होने वाले खतरों का आबादी पर प्रभाव की जांच की, इसमें देखा गया कि यदि एक अकेला गोरिल्ला इबोला वायरस से संक्रमित होता है तो बाकियों पर इसका कितनी तेजी से कितना असर पड़ेगा।
प्रजाति संरक्षण के अध्ययनकर्ता रॉबर्ट लेसी ने कहा, सीमित आंकड़ों के कारण वन्यजीवों के रोग मॉडलिंग में मानव या पशुधन आबादी की तुलना में अलग तरह की चुनौतियां हैं। इस प्रकार के अभ्यास बीमारी से होने वाले खतरों के प्रति हमारी समझ बढ़ा सकते हैं और आबादी प्रबंधन रणनीतियों और हस्तक्षेपों को जानकारी दे सकते हैं।
यह विशेष रूप से तब उपयोगी होता है जब एक छोटी सी आबादी वाले लुप्तप्राय प्रजातियों का प्रबंधन किया जाता है जो उच्च मृत्यु दर वाले रोगों के खतरों में होते हैं।
यह अभ्यास संक्रामक रोग का पता लगाने के लिए तैयारियों के महत्व और वन्यजीव आबादी की निरंतर निगरानी करने के लिए जरुरी है। जैसे-जैसे लोगों की जनसंख्या बढ़ रही है और भूमि उपयोग के पैटर्न में बदलाव हो रहा है यह वन्यजीवों पर दबाव और खतरों को बढ़ाते जा रहे हैं।
इस तरह के भविष्य का अनुमान लगाने वाले मॉडल वन्यजीवों को विनाशकारी बीमारी के प्रकोप से बचाने के लिए मौजूदा रणनीतियों और सहयोग को मजबूत करने में मदद कर सकते हैं। यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।