नीलगिरी रिजर्व में लुप्तप्राय एशियाई हाथियों का अधिकांश निवास स्थानों का हुआ नुकसान: अध्ययन

यदि हाथियों के इधर-उधर जाने की गतिविधि पर पाबंदी लग जाती है और जीन प्रवाह कम हो जाता है, तो प्रजनन अधिक होता जिससे बीमारी की आशंका बढ़ जाती है
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, क्लिंटन पीटर
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नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व (एनबीआर) दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट के नीलगिरि पहाड़ियों में फैला हुआ है। यह भारत का सबसे बड़ा संरक्षित वन क्षेत्र है, जो तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल तक फैला हुआ है।

नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व (एनबीआर) में हरी-भरी पथरीली पहाड़ियों पर अपना रास्ता बनाते हुए हाथियों की सुंदर तस्वीरें सामने आती हैं। लेकिन हाल के एक अध्ययन में कहा गया है कि लुप्तप्राय एशियाई हाथियों ने अपने अधिकांश निवास स्थान खो दिए हैं, यह वह समतल भूभाग जिसको आसानी से बदला जा सकता है।

पारिस्थितिकीविदों, संरक्षणवादियों और वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा इस बात का अवलोकन किया गया कि,बाड़ लगाने से संरक्षित क्षेत्रों के भीतर एशियाई हाथी आबादी के जीन प्रवाह बदल सकता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि पश्चिमी घाट भारत के पश्चिमी तट के साथ-साथ उत्तर दक्षिण में फैला एक ढलान है। यह दक्षिण की ओर निचले पालघाट गैप से कटा हुआ है जो उत्तर और  दक्षिण के हाथियों की आबादी को अलग करता है।

यह अंतर कई शताब्दियों से कृषि के लिए बदल दिया गया है, यह भाग सबसे कम तीन  किमी और सबसे चौड़ा 40 किमी तक फैला है। पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व (एनबीआ) और इसके आसपास के संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें जंगली हाथियों की सबसे बड़ी बची हुई आबादी रहती है।

पालघाट गैप घाटों में एक हिस्सा है जो अपेक्षाकृत समतल है और परिणामस्वरूप हाथियों द्वारा आसानी से पार किया जा सकता है। हालांकि, लोगों की बस्तियों और खेती और फसल ने हाथियों के इधर-उधर जाने को रोक दिया है, उन्हें सबसे अच्छे निवास स्थान माने जाने वाले पहाड़ी क्षेत्रों तक ही सीमित रखा है।

हाथियों के इधर-उधर  जाने की गतिविधि पर रोक

अध्ययनकर्ता प्रिया डेविडर ने कहा यह महत्वपूर्ण क्यों है? इसका जवाब है इन सामान्य आवासों में, इस आकार के जानवरों के लिए खतरनाक इलाके होने के  कारण उनके जीवित रहने के आसार कम हैं। अध्ययन से पता चलता है कि जब रुकावटें पैदा की जाती है, खासकर ढलान वाले क्षेत्रों में, उनकी इधर-उधर जाने की गतिविधि अवरुद्ध हो जाती है और जीन प्रवाह कम हो जाता है। आखिरकार यह इस लुप्तप्राय प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे को बढ़ा सकता है।

यदि आने-जाने पर रोक लग जाती है तो जीन प्रवाह कम हो जाता है, तो प्रजनन अधिक होता है और आनुवंशिक विविधता कम होती है, जिससे बीमारी की आशंका बढ़ जाती है तथा प्रजनन दर कम हो जाती है।

एक अन्य अध्ययन के मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी हाथियों की आबादी के बीच आनुवंशिक भेदभाव के मध्यम स्तर पाए गए, जो दोनों क्षेत्रों के बीच सीमित जीन प्रवाह की ओर इशारा करते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि, हजारों वर्षों से, हाथी दक्षिण-पूर्व एशिया में खुलेआम घूमते रहे हैं, लेकिन "मानवजनित दबाव" ने उन्हें पर्वत श्रृंखलाओं तक सीमित कर दिया है। विडम्बना यह है कि भारत में अधिकांश हाथियों के अभ्यारण्य पहाड़ी आवासों में पाए जाते हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा हाथियों के लिए गलियारों को बनाए रखने के माध्यम से कनेक्टिविटी सुनिश्चित किए बिना संरक्षित क्षेत्रों को घेरना आबादी के बीच गंभीर जीन प्रवाह से गुजरना है। इलाके को कैसे बांटा जाता है, यह देखे बिना भंडार को घेरने से विखंडन होता है। यदि हाथी अपेक्षाकृत समतल भूभाग पर एक घाटी से दूसरी घाटी में नहीं जा सकते हैं, तो आबादी का संपर्क टूट जाता है। यह शोध ओपन-एक्सेस जर्नल ग्लोबल इकोलॉजी एंड कंजर्वेशन में प्रकाशित किया गया है।

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