उत्तराखंड में हाथियों की संख्या बढ़ी, 6 से 8 जून तक की गई थी गणना

उत्तराखंड में 6 से 8 जून तक हाथियों की गिनती की गई थी, 29 जून को आंकड़े जारी किए गए
उत्तराखंड के तराई वृत्त में हाथियों का काफिला। फोटो: वर्षा सिंह
उत्तराखंड के तराई वृत्त में हाथियों का काफिला। फोटो: वर्षा सिंह
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उत्तराखंड में इस समय कुल 2026 हाथियों की मौजूदगी दर्ज की गई है। वयस्क नर और मादा हाथी का लैंगिक अनुपात 1:2.50 पाया गया है जो कि एशियन हाथियों की आबादी में बेहतर माना जाता है। वर्ष 2012 में 1,559, 2015 में 1797 और 2017  में 1,839 हाथी थे। वर्ष 2017 से हाथियों की संख्या में 10.17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 

उत्तराखंड में 6 से 8 जून तक हाथियों की गिनती की गई। आज मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में राज्य वन्य जीव सलाहकार बोर्ड की बैठक हुई।

22 से 24 फरवरी तक जलीय जीवों की गणना में पाया गया कि राज्य में 451 मगरमच्छ, 77 घड़ियाल और 194 ऊदबिलाव हैं। वर्ष 2020 से 2022 तक राज्य में स्नो-लैपर्ड की जनसंख्या का आंकलन भी किया जाएगा। राज्य के 23 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में स्नो-लैपर्ड हैं।

कार्बेट टाईगर रिजर्व और राजाजी टाईगर रिजर्व में बाघों और जंगली हाथियों की धारण क्षमता का अध्ययन कराने का प्रस्ताव भी रखा गया। भारतीय वन्यजीव संस्थान ये अध्ययन करेगा। कार्बेट में गैंडे को दोबारा लाने की साइट सुटेबिलिटी रिपोर्ट भी रखी गई। मुख्यमंत्री ने कहा कि कार्बेट रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व में गैण्डे को लाने के लिए समय सीमा तय की जाए।

इसके साथ ही राज्य के आरक्षित वन क्षेत्रों में टोंगिया ग्रामों को राजस्व ग्रामों का दर्जा देने और संरक्षित क्षेत्रों से गांवों के विस्थापन के बाद वन भूमि पर बसाये गए नए स्थलों के नवीनीकरण और डि-नोटिफिकेशन का काम जल्द करने के निर्देश दिए।

राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड में गंगोत्री राष्ट्रीय पार्क में सुरक्षा की दृष्टि से अहम मार्गों के निर्माण का प्रस्ताव भेजा जाएगा। सौंग बांध परियोजना के निर्माण से जुड़ी वन भूमि हस्तांतरण और जौलीग्रान्ट हवाई अड्डे के विस्तार के लिए वन भूमि हस्तांतरण की अनुमति का प्रस्ताव भी राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड को भेजा जाएगा।

देहरादून-हरिद्वार के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग-72 को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ पूरा कराने को कहा गया। इस सड़क के निर्माण कार्य में हो रही देरी के चलते वन्यजीवों के रास्ते में मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। निर्माण कार्य और उससे होने वाले शोर की वजह से हाथियों के दल अपने रास्ते बदल रहे हैं। पिछले वर्ष दो हाथियों की मौत ट्रेन की टक्कर से हुई थी। जिसके पीछे की एक वजह एनएच-72 के निर्माण में हो रही देरी थी। 

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