ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश हिस्सों में लगी आग से न केवल मानवीय एवं आर्थिक नुकसान हुआ है, बल्कि इससे जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को भी काफी नुकसान हुआ है। वैज्ञानिक पहले से ही जानवरों और पौधों के विनाशकारी तरीके से विलुप्त होने की चेतावनी दे रहे हैं। मानव को कभी-कभी ही इस तरह की आग का सामना करना पड़ता है, लेकिन हम जानते हैं कि जंगल की आग से बड़े पैमाने पर नुकसान होता है और इसने कम से कम एक बार पहले भी धरती पर जीवन को नया आकार दिया है। उस समय एक एस्टोरॉएड (ग्रहिका या क्षुद्र ग्रह) धरती से टकराया था और भयानक आग लगी थी, जिसके कारण डायनासोर की प्रजाति का अंत हो गया था।
ऑस्ट्रेलिया की जैव विविधता
ऑस्ट्रेलिया दुनिया के केवल 17 वृहद-जैव विविधता वाला देशों में से एक है। हमारी अधिकांश प्रजातियों की समृद्धि उन क्षेत्रों में संकेंद्रित है, जहां पर अभी आग लगी हुई है। हालांकि कुछ स्तनधारियों और पक्षियों के सामने विलुप्त होने के जोखिम अधिक हैं, लेकिन इस समय पशु जैव विविधता को बनाए रखने वाले कई प्रजातियों को इस तरह की चुनौतियों का सामना करना होगा।
उदाहरण के तौर पर देखें तो ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड के गोंडवाना वर्षावन आग से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। विश्व धरोहर की सूची वाले ये जंगल कुछ विशेष प्रकार के कीटों, घोंघा, जोंक आदि की विविधता के लिए जाने जाते हैं, जिसमें कुछ बहुत थोड़े से इलाकों में पाए जाते हैं।
ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग को अभूतपूर्व बताया गया है और इसे बुझाने में अपेक्षा से ज्यादा समय लगने की संभावना है। इसके कारण इससे होने वाली पूरी तबाही को अभी स्पष्ट तौर पर बताया जाना मुश्किल है।
पहले भी आग से विनाश किया है
गहरे अतीत में भी भयावह आग लगी है, जिसके बारे में हम जीवाश्म के रिकॉर्ड से जान सकते हैं। ये जानकारियां इस बात के काफी पुख्ता सबूत देते हैं कि आग ने किस तरह पृथ्वी के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। लगभग 6.6 करोड़ वर्ष पहले क्रेटेशियस-पेलोजीन विलुप्त होने की घटना को डायनासोर के काल की समाप्ति के तौर पर जाना जाता है। इस घटना ने धरती की 75 प्रतिशत प्रजातियों को मिटा दिया था। वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है कि यह घटना करीब दस किमी चौड़े क्षुद्र ग्रह के वर्तमान मैक्सिको के पास टकराने से घटी थी, जिसके विस्फोट से तस्मानिया के आकार 68,401 वर्ग किमी़ का गड्डा हो गया था। इसके कारण लंबे समय तक परमाणु सर्दी का मौसम रहा क्योंकि इसके कणों के वातावरण में फैल जाने के कारण सालों तक सूर्य की रोशनी आनी बंद हो गई। सालों तक अंधेरा रहने के कारण इसने पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म कर दिया था और पेड़-पौधे की कई प्रजातियां नष्ट हो गई थीं। हाल के शोध से पता चलता है कि धरती पर जीवन को बदलने और कई प्रजातियों के विलुप्त होने का एक महत्वपूर्ण कारण वैश्विक स्तर पर लगी भयानक आग थी। क्षुद्र ग्रह ने पूरे वातावरण में धधकते मलबे को नष्ट कर दिया। जीवाश्म रिकॉर्ड में पाई गई कालिख की भारी मात्रा से पता चलता है कि पृथ्वी के अधिकांश जंगल जलकर राख हो गए थे। हालांकि, प्रलय संबंधित यह गणना अब तक विवादित है।
केवल आग से बच सकने वाले ही जीवित रहे
विशेष रूप से सरीसृप, पक्षियां और स्तनधारी जैसे भूमि पर रहने वाले जानवरों के जीवाश्म रिकॉर्ड यह बताते हैं कि इस आग से डायनासोर कैसे विलुप्त हो गए। पीड़ितों और जीवित रहने वालों की प्रकृति वर्तमान घटनाओं के लिए बहुत प्रासंगिक है।
जमीन पर रहने वाले वही जानवर बच पाए जो या तो गर्मी बर्दाश्त करने में सक्षम थे या पानी में अंदर तक जाकर जीवित रह सकते थे या जो तेजी से उड़ान भरके आग की तपिश से दूर चले गए।
सरीसृप, मगरमच्छ और मीठे पानी के कछुए (दोनों उभयचर) जीवित रह गए। कृमि-छिपकली और जमीन के नीचे रहने वाले सांप बच गए, लेकिन सतह पर रहने वाली छिपकलियों और सांपों के सामने जीवित रह पाने की कठिन चुनौती आ गई।
मोनोट्रीम्स (जलीय और बुरोइंग) जैसे प्लैटिपस और स्तनधारी जीव, जो ऊंचाई पर चढ़ने की क्षमता रखता है और गहरे दरारों में छुप जाने में सक्षम अपरा स्तनधारी ही बच पाए, जबकि बड़े स्तनधारी जीवों की मौत हो गई। उस समय कुछ पक्षी बच गए, जबकि धरती पर रहने वाले डायनासोर जैसे बड़े जीव खत्म हो गए। वास्तव में ऐसा लगता है कि एक घरेलू बिल्ली से बड़े आकार के जानवरों की ऐसी प्रजातियां खत्म हो गई, जो न तैर सकते थे, न छुप सकते थे और न ही उड़ सकते थे।
हालांकि, इस तरह की क्षमता वाले जीवों को थोड़ा बेहतर मौका मिला, लेकिन इनके भी जीवित रहने की कोई गारंटी नहीं थी। उदाहरण के लिए, टेरोसारस अच्छी तरह से उड़ सकते थे, लेकिन फिर भी अधिकांश पक्षी प्रजातियों के साथ वे भी विलुप्त हो गए। हाल के शोधों से पता चलता है कि जिन पक्षियों के रहने के लिए पेड़ों की जरूरत होती है, वे सब उस समय खत्म हो गए, जब दुनिया से अधिकांश पेड़ खत्म हो गए थे। इसमें मुर्गियों और नेल्स की तरह के कुछ पक्षी ही जीवित रह पाए और आधुनिक समय में चहकने वाली पक्षियों को फिर से पैदा होने में लाखों साल लग गए।
वैश्विक स्तर पर लगी भयानक आग ने कुछ चुनिंदा प्रजातियों को छोड़कर ज्यादातर प्रजातियों को नष्ट कर दिया और पृथ्वी के जीव मंडल को पूरी तरह से बदल दिया।
वर्तमान आग
हाल में बड़े पैमाने पर जंगल में लगी आग वैश्विक (जैसे ऑस्ट्रेलिया, अमेजन, कनाडा, कैलिफोर्निया, साइबेरिया) के बजाय क्षेत्रीय हैं और सबसे खराब स्थिति वाली उस आग, जिसमें डायनासोर का खात्मा हो गया था, से कम भूमि में फैली है।
इसके बावजूद प्रजातियों के विलुप्त होने का दीर्घकालिक प्रभाव गंभीर हो सकते हैं, क्योंकि हमारे ग्रह (पृथ्वी) ने मनुष्यों के कारण पहले ही अपना आधा जंगल खो दिया है। यह आग पहले से ही प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन आदि जैसे कारकों के कारण सिकुड़ चुकी जैव विविधता को गंभीर क्षति पहुंचा रही है।
प्राचीन काल में मची तबाही पत्थरों पर लिखे हुए पुख्ता सबूत प्रदान करते हैं कि जंगल की आग के कारण कई प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। इसके अलावा इससे यह भी पता चलता है कि कुछ जीवों को इसके प्रभाव का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। समान प्रजातियों की पूरी नस्ल ही समाप्त हो सकती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
एक क्षुद्र ग्रह के पृथ्वी से टकराने के बाद जिस तरह के प्रभाव दिखाई पड़े थे, उससे हमारे ग्रह के जीवमंडल को फिर से बनने और विकास करने में लाखों वर्ष लग गए। इसके बाद जब एक नई वैश्विक व्यवस्था उभरकर आई, तो यह पहले से बिल्कुल अलग थी। डायनासोर के काल ने स्तनधारियों और पक्षियों के काल के लिए रास्ता दिखाया।
(लेखक फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी में इवोल्युशनरी बायोलॉजी (दक्षिण ऑस्ट्रेलियाई संग्रहालय के साथ संयुक्त रूप से नियुक्त) के प्रोफेसर हैं। यह लेख द कन्वरसेशन से विशेष समझौते के तहत प्रकाशित)