नए युग में धरती : कहानी हमारे अत्याचारों की

मौजूदा समय को भले ही हम कलयुग का नाम दें लेकिन वैज्ञानिक भाषा में इसे मानव युग यानी एंथ्रोपोसीन कहा जा रहा है। यह हमारे लिए खुश होने की बात नहीं है। दरअसल यह युग 450 करोड़ साल पुरानी धरती पर हमारे अत्याचारों का परिणाम है। धरती पर कोई भी जड़ या चेतन ऐसा नहीं है जिसे हमने नुकसान न पहुंचाया हो
मेघालय के चेरापूंजी में उमशिआंग नदी के ऊपर पेड़ों की जड़ों से बना दोहरा पुल
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डाउन टू अर्थ, हिंदी मासिक पत्रिका के चार साल पूरे होने पर एक विशेषांक प्रकाशित किया गया है, जिसमें मौजूदा युग जिसे एंथ्रोपोसीन यानी मानव युग कहा जा रहा है पर विस्तृत जानकारियां दी गई है। इस विशेष लेख के कुछ भाग वेबसाइट पर प्रकाशित किए जा रहे हैं। पढ़ें, पहली कड़ी-

हमारी पृथ्वी जल्द ही एक नए भूवैज्ञानिक युग में प्रवेश करने वाली है और इसके गवाह बनने वाले हम पहले होमो सेपियंस यानी मानव प्रजाति होंगे। मजे की बात है कि इस युग का नाम भी हमारे ऊपर ही रखा गया है। यह हमारे जीवन का कोई गौरवशाली क्षण हो, ऐसी बात तो नहीं है लेकिन यह वह समय अवश्य है जब हमें धरती के पारिस्थितिक तंत्र में मानवों द्वारा किए गए अपरिवर्तनीय बदलावों पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। वैज्ञानिकों ने आपसी सहमति से मई, 2019 में इस युग को एंथ्रोपोसीन अथवा मानव युग घोषित करने के पक्ष में मतदान किया था। भूवैज्ञानिक घटनाक्रम की देखरेख करने वाले अंतरराष्ट्रीय स्ट्रेटिग्राफी आयोग के अंतर्गत आने वाली क्वाटर्नेरी स्ट्रैटिग्राफी उपसमिति ने एंथ्रोपोसीन वर्किंग ग्रुप (एडब्ल्यूजी) नामक वैज्ञानिकों का एक 34 सदस्यीय पैनल गठित किया है। यह पैनल जल्द ही नए युग की शुरुआत की घोषणा का औपचारिक प्रस्ताव समिति के सामने रखने वाला है।

होलोसीन (अभिनव युग) नामक वर्तमान युग का अंत बस होने ही वाला है। यह युग 12,000 से 11,500 साल पहले शुरू हुआ था और वर्तमान वैज्ञानिकों ने बाद में इसे सूचीबद्ध किया था। यही वह समय था जब धरती की जलवायु में परिवर्तन हुए और उसके बाद मनुष्यों ने एक जगह टिककर खेती करना शुरू कर दिया था। बढ़ते तापमान के साथ पैलियोलिथिक आइस एज (पुरापषाण युग) भी अपनी समाप्ति पर था और पृथ्वी का भूगोल, जनसांख्यिकी और पारिस्थितिकी तंत्र, सब कुछ एक बदलाव की ओर अग्रसर था। ग्लेशियर पिघलते गए और मैमथ एवं बालदार गैंडे नई गर्म जलवायु में विलुप्त हो गए। धरती के बहुत बड़े इलाके में जंगल उग आए और मनुष्यों ने घूम-घूम कर शिकार एवं भोजन इकट्ठा करने की बजाय एक जगह टिककर रहना शुरू कर दिया। बढ़ते तापमान के साथ हिमयुग की कड़कती ठंड में भी कमी आई। इससे इंसानों की आबादी भी बढ़ी। शायद यह युग मनुष्यों के लिए ही बना था।

आज हजारों वर्षों बाद मनुष्यों ने पूरी धरती पर कब्जा करके इसके भूगोल एवं पारिस्थितिकी तंत्र को इस हद तक प्रभावित किया है कि अब एक नए युग की घोषणा करनी पड़ रही है। 34 में से 29 सदस्यों ने 20वीं शताब्दी के मध्य को युग की शुरुआत घोषित करने के प्रस्ताव का समर्थन किया। इस कालखंड को लेकर हुई बहसों में वैज्ञानिकों ने कहा कि इस नए युग की शुरुआत औद्योगिक क्रांति (सन 1760) के साथ हुई। इस दौरान उत्पादन में वृद्धि के अलावा ऐसे कई नए रसायनों की खोज भी हुई जिनका दुष्प्रभाव धरती के प्राकृतिक तंत्र पर पड़ा। वैज्ञानिक पहले से ही ऐसी साइटें ढूंढ रहे हैं जहां पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्रों में हम मानवों द्वारा किए गए हस्तक्षेप के ऐसे सबूत मिलने की संभावना है। ये सबूत एंथ्रोपोसीन अथवा मानव युग की शुरुआत की घोषणा करने में सहायक होंगे। विशेष रूप से, वे 1945 में हुए पहले परमाणु हथियार परीक्षण से निकले रेडियोन्यूक्लाइड कणों की खोज में लगे हैं। ये कण दुनियाभर में फैलकर पृथ्वी की मिट्टी, पानी, पौधों और ग्लेशियरों का हिस्सा बन गए हैं।

इस क्रम में हम मानवों ने धरती पर अपनी अमिट छाप अनंतकाल तक के लिए छोड़ दी है। ब्रिटेन के लीसेस्टर विश्वविद्यालय में कार्यरत पुरातत्वविद् और एडब्ल्यूजी के सदस्य मैट एजवर्थ ने कहा, स्तरित शैलविज्ञान अथवा स्ट्रैटिग्राफिक साक्ष्य काफी हद तक एक काल अतिक्रमी (टाइम-ट्रांसग्रेसिव) एंथ्रोपोसीन की ओर संकेत करते हैं जिसकी शुरुआत एक बार में न होकर कई बार में हुई हो। वह कहते हैं कि केवल एक रेडियोन्यूक्लाइड सिग्नल के आधार पर एक नए युग का नामकरण करना पृथ्वी की प्राकृतिक प्रणालियों में हुए परिवर्तन में मानव भागीदारी की वैज्ञानिक समझ को बढ़ाने की बजाय इसमें बाधा ही डालेगा। केपटाउन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय भूविज्ञान कांग्रेस में इस नए युग की घोषणा के लिए 2016 में पहली बार अनौपचारिक रूप से मतदान हुआ।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपने बेहतरीन दिमाग की बदौलत होमो सेपियंस पृथ्वी पर सबसे सफल प्रजाति है। पिछले 12 हजार सालों में हमने पूरी धरती को अपने अधीन कर लिया है और यह हमारे वर्चस्व का अच्छा उदाहरण है। अपने कौशल और उद्यम की हम चाहे जितनी तारीफ कर लें लेकिन हम इस सच को झुठला नहीं सकते कि धरती को इस प्रगति की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। जलवायु परिवर्तन और लगातार विलुप्त होती प्रजातियां इस समस्या के दो सबसे खतरनाक पहलुओं में से हैं।

एंथ्रोपोसीन विचार के जनक डच रसायनशास्त्री पॉल क्रुटजेन और अमेरिकी जीवविज्ञानी यूजीन पी स्टोरमर थे जिन्होंने वर्ष 2000 में इसे दुनिया के सामने रखा था। लेकिन इसको लोकप्रियता दो साल बाद मिली जब क्रुटजेन का लेख “द जियोलॉजी ऑफ मैनकाइंड” नेचर पत्रिका में छपा। कुछ ही समय में यह लेख शिक्षाविदों के बीच चर्चा का विषय बन गया और इसे काफी मीडिया कवरेज भी मिली।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस नए युग की शुरुआत 1950 में हुई थी। ठीक इसी समय पृथ्वी पर “ग्रेट एक्सेलेरेशन” नामक एक घटना हुई। आर्थिक विकास और उसके फलस्वरूप लगातार बढ़ती आबादी ने धरती को पूरी तरह से बदलकर रख दिया और वर्ष 2007 में क्रुटजेन ने ही इसे “ग्रेट एक्सेलेरेशन” के नाम से परिभाषित किया था। वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण, अंधाधुंध कटते जंगल, विलुप्त होती प्रजातियां, जलवायु परिवर्तन और ओजोन परत में छेद इन बदलावों में से प्रमुख हैं। रेडियोन्यूक्लाइड्स, परमाणु परीक्षणों के अवशेष होते हैं और ये हजारों वर्षों तक वातावरण में बने रह सकते हैं। अतः ये एंथ्रोपोसीन के आगमन को दर्शाने वाले सबसे अहम संकेत हैं। हालांकि एडब्ल्यूजी अन्य विकल्पों की तलाश में है। प्लास्टिक प्रदूषण, कृत्रिम उर्वरकों से मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस का बढ़ा स्तर और दुनियाभर के हजारों लैंडफिलों में दफन बॉयलर मुर्गों की हड्डियां कुछ मुख्य उदाहरण हैं।

हालांकि, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इंसानों की वजह से जीवमंडल में कई मूलभूत बदलाव आए हैं लेकिन वे बदलाव आने वाली सहस्राब्दियों को भी प्रभावित करेंगे या नहीं, यह अब तक साफ नहीं हो पाया है। यह भूवैज्ञानिकों के लिए दुविधा की स्थिति है क्योंकि वे किसी युग का नामकरण “गोल्डन स्पाइक” के आधार पर करते हैं। “गोल्डन स्पाइक” दरअसल धरती की परतों में मिलने वाले संकेत हैं जो लाखों वर्षों के क्रम में इकट्ठा होते हैं। उदाहरण के लिए, होलोसीन युग का गोल्डन स्पाइक ग्रीनलैंड स्थित एक 1,492 मीटर गहरी आइस-कोर में संरक्षित है। इसी तरह, डायनासोर का युग कहे जानेवाले क्रीटेशस काल का गोल्डन स्पाइक इरिडियम धातु है जो उस उल्कापिंड का अवशेष है जिसे डायनासोरों की विलुप्ति के लिए जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि डायनासोरों की विलुप्ति का यह सिद्धांत विवादों के घेरे में है। अगली कड़ी पढ़ें - नए युग में धरती: वर्तमान और भूतकाल 

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