डाउन टू अर्थ विश्लेषण: क्या जंगली जानवरों को खाना छोड़ दे इंसान?

जंगली वनस्पतियों और जीवों का नियंत्रित दोहन यह सुनिश्चित करेगा कि वन्य प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डाले बिना भी मनुष्यों की आजीविका और आहार संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है
इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा / सीएसई
इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा / सीएसई
Published on

इंटरगवर्नमेंटल साइंस पॉलिसी प्लैटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड ईकोसिस्टम सर्विसेस (आईपीबीईएस) का नवीनतम वैज्ञानिक निष्कर्ष बताता है कि वन्य प्रजातियों का नियंत्रित उपयोग उनके दीर्घकालिक संरक्षण के लिए मददगार साबित हो सकता है। जंगली वनस्पतियों और जीवों का नियंत्रित दोहन यह सुनिश्चित करेगा कि वन्य प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डाले बिना भी मनुष्यों की आजीविका और आहार संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। लेकिन क्या सरकारें इस नियंत्रित उपयोग को सुनिश्चित करने में सक्षम हैं? नई दिल्ली से शुचिता झा, हिमांशु नितनवरे, विभा वार्ष्णेय, नामीबिया से अबसलोम शिग्वेदा, जिम्बाब्वे से सिरिल जेंडा, तंजानिया से पीटर इल्यास और रवांडा से क्रिस्टोफी हितायेजु का विश्लेषण-

चार वर्षों के अध्ययन के बाद जब आईपीबीईएस ने 8 जुलाई को “वन्य प्रजातियों के नियंत्रित उपयोग” पर अपनी आकलन रिपोर्ट का सार पेश किया, तो पता लग गया था कि यह पशु अधिकार समूहों को उत्तेजित करने जा रहा है। आईपीबीईएस जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर अध्ययन करने वाला एक अंतर सरकारी विज्ञान-नीति मंच है, जिसका नौवां पूर्ण सत्र जर्मनी के बॉन में संपन्न हुआ।

इस सत्र में आकलन रिपोर्ट का सार पेश किया गया जिसे दुनियाभर के 300 सामाजिक और प्राकृतिक वैज्ञानिकों ने 6,200 से अधिक वैज्ञानिक और स्वदेशी अध्ययनों के आधार पर तैयार किया है। यह वन्य प्रजातियों से होने वाले लाभ और उनके नियंत्रित उपयोग पर अब तक का सबसे विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में अरबों लोग भोजन, ऊर्जा, दवा और आय के अन्य संसाधनों के लिए लगभग 50,000 से अधिक प्रकार के वन्य प्रजातियों पर निर्भर हैं। मोटे तौर पर इन प्रजातियों में से 33,000 प्रकार के पौधे व कवक, 7,500 प्रकार की मछलियां व जलीय अकशेरूकीय और 9,000 तरह के उभयचर, कीड़े, सरीसृप, पक्षी व स्तनधारियों की प्रजातियां हैं। इनमें से 10,000 से अधिक प्रजातियां सीधे मानव भोजन के लिए उपयोग की जाती हैं। इसलिए दुनियाभर में खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने, वैश्विक पोषण में सुधार करने, लंबी अवधि में जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए वन्य प्रजातियों का नियंत्रित उपयोग बहुत जरूरी है। दुनिया की लगभग 70 प्रतिशत गरीब आबादी गुजारा करने के लिए सीधे तौर पर वन्य प्रजातियों पर निर्भर हैं। कई मामलों में ये वन्य प्रजातियां सांस्कृतिक पहचान की भी प्रतीक होती हैं।

आईपीबीईएस-9 की रिपोर्ट में कहा गया है कि वन्य प्रजातियों के नियंत्रित उपयोग से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी। यह एसडीजी1 और एसडीजी2 के 80 प्रतिशत लक्ष्यों को हासिल करने में मदद कर सकता है, जिनका मुख्य लक्ष्य गरीबी और भुखमरी मिटाना है। इसके अलावा यह 15 अन्य सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी अपना योगदान दे सकता है, जिसमें असमानता को कम करना, सस्ती स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच प्रदान करना, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य और सबका कल्याण सुनिश्चित करना शामिल है।

इस सारांश रिपोर्ट के विमोचन पर फ्रांसीसी वैज्ञानिक जीन-मार्क फ्रोमेंतां ने वन्यजीव प्रजातियों के नियंत्रित उपयोग का अर्थ समझाते हुए कहा, “कई बार यह कहा जा चुका है कि हमें मछली पकड़ना बंद कर देना चाहिए। अगर हम ऐसा करते हैं तो इसका मतलब यह होगा कि हम हर साल 80 मिलियन टन मछली का उपभोग करना बंद कर देंगे। इन मछलियों को पकड़ने का कार्य मछली पालन करने वाले छोटे-छोटे समुदाय करते हैं। अगर उनके पास मछली या मछली से मिलने वाला प्रोटीन नहीं होगा तो इसका मतलब है कि उन्हें अपनी प्रोटीन की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक जंगलों को काटना होगा या फिर सोया व कुछ अन्य नई फसलों को लगाना होगा। इसलिए यहां बेहतर, स्पष्ट और स्थायी समाधान मछली पकड़ना ही हो सकता है।”

वन्य प्रजातियों का नियंत्रित उपयोग कोई नई अवधारणा नहीं है। “फ्रंटियर्स इन कंजर्वेशन साइंस, 2022” का एक अध्ययन कहता है कि यह विचार लगभग 17वीं शताब्दी का है, लेकिन 1960 के दशक के बाद से ही इस पर संगठित रूप से कानून बनने शुरू हुए। स्विट्जरलैंड की गैर-लाभकारी अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानून अनुसंधान केंद्र की 2005 की एक रिपोर्ट, “पूर्वी अफ्रीका में वन्यजीव संसाधनों का नियंत्रित प्रबंधन” के अनुसार, वन्यजीव संधियां अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानून के सबसे पुराने संदर्भ प्रस्तुत करती हैं जिनके मूल में वन्य प्रजातियों का संरक्षण है।



मानव-केंद्रित दृष्टिकोण?

कई संरक्षणवादियों ने आईपीबीईएस के इस नए दृष्टिकोण को मानव-केंद्रित और पिछले आकलनों से विपरीत बोलकर खारिज कर दिया है। आईपीबीईएस का आकलन 2019 की एक विस्तृत रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि मनुष्यों ने प्राकृतिक दुनिया को इतना बदल दिया है कि लगभग 10 लाख पौधों और जीवों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा है। एक साल बाद संयुक्त राष्ट्र की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया कि जैव विविधता के विनाशकारी पतन से निपटने के लिए 2010 में जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता की गई थी, उन पर अधिकतर देशों ने बहुत कम काम किया है।

जर्मनी की जीव संरक्षण संस्था प्रो वाइल्डलाइफ की सह-संस्थापक डेनएला फ्रेयर नेचर पत्रिका में लिखती हैं, “वन्य प्रजातियों के शोषण से प्रकृति को होने वाले नुकसान को बेहद कम करके आंका जाता है, जबकि इससे होने वाले लाभों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है।” शोधकर्ताओं ने वन्यजीव शोषण को जूनोटिक (पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाले) रोगों का प्राथमिक कारण न मानने के निर्णय पर भी सवाल उठाया है। डाउन टू अर्थ के एक ईमेल का जवाब देते हुए पशु संरक्षण की गैर-लाभकारी संस्था पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) कहती है, “अगर हम खुद को एक और महामारी से बचाना चाहते हैं, तो हमें वन्यजीवों को अकेला छोड़ देना चाहिए।” इस संगठन के सदस्यों का कहना है कि फैशन उत्पादों के लिए अजगर, स्टिंग रे और मगरमच्छ की खाल के प्रयोग से भी मनुष्यों में खतरनाक वायरस फैलने का खतरा बढ़ जाता है। पेटा लिखता है, “अमेरिका की रोग नियंत्रण और रोकथाम संस्था ने चेतावनी दी है कि हाल ही में लोगों को प्रभावित करने वाले लगभग 75 प्रतिशत संक्रामक रोग पहले जानवरों से शुरू हुए।”

भविष्य की रूपरेखा

कुछ महीनों में पूरी रिपोर्ट आने के बाद इस बहस के तेज होने की संभावना है क्योंकि इस रिपोर्ट के निष्कर्षों से कई अंतरराष्ट्रीय नीतियों के प्रभावित होने की उम्मीद है। इससे भविष्य में वन्य प्रजातियों के संरक्षण के प्रयासों की नींव भी रखी जाएगी। यह आकलन कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेंजर्ड स्पीसीज ऑफ वाइल्ड फ्लोरा एंड फौना (सीआईटीईएस) के अनुरोध पर किया गया था। सीआईटीईएस मुख्यत: एक संधि है, जो विभिन्न उपायों के द्वारा यह सुनिश्चित करता है कि पौधों और जानवरों के होने वाले वैश्विक व्यापार से जंगल में उनके अस्तित्व पर कोई खतरा न हो। नवंबर, 2022 में पनामा में होने जा रहे सीआईटीईएस कॉन्फ्रेंस में संरक्षण नीतियों में होने जा रहे संशोधन की मूल्यांकन रिपोर्ट को पेश किया जाएगा।

यह मूल्यांकन रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग, रामसर वेटलैंड्स कन्वेंशन और यूएन कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) की नीतिगत घोषणाओं को भी प्रभावित करेगी, जो इस वर्ष के अंत में होना निर्धारित है। विशेषज्ञों का मानना है कि सीआईटीईएस सम्मेलन के परिणाम वैश्विक जैव विविधता ढांचे के मसौदे को तैयार करने में भी एक प्रमुख भूमिका निभाएंगे, जिसे सीबीडी द्वारा तैयार किया जा रहा है। इससे आने वाले दशकों में जैविक संसाधनों के संरक्षण के लिए एक वैज्ञानिक आधार तैयार करने में मदद मिलेगी।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in