मध्य प्रदेश में भूमि रिकॉर्ड में गड़बड़ी, दलितों-आदिवासियों की जमीन दूसरों के नाम

मध्य प्रदेश में जमीन के कंप्यूटरीकरण से आदिवासियों व दलितों की जमीन पर प्रभावशाली लोगों का कब्जा और उनका नाम दर्ज हो गया है
सागर जिले के केवलारी कलां गांव के गणेश चढ़ार जिनकी 2.47 एकड़ जमीन अभी तक कंप्यूटरीकृत नहीं हुई
सागर जिले के केवलारी कलां गांव के गणेश चढ़ार जिनकी 2.47 एकड़ जमीन अभी तक कंप्यूटरीकृत नहीं हुई
Published on

सतीश भारतीय

"मेरी जमीन पर 60 वर्षों से मेरा कब्जा है लेकिन नामांतरण दूसरी पंचायत के नौ लोगों का हो गया है। मैं इस नामांतरण की शिकायत तहसीलदार, कलेक्टर और सीएम हेल्पलाइन नम्बर पर कर चुका हूं, मगर सुनवाई नहीं हुई।” 

मध्य प्रदेश के सागर जिले के बसा गांव में रहने वाले वीरसींग गोंड उन आदिवासियों की सूची में शामिल हैं जिनकी पूंजी पर सेंधमारी हुई है। दरअसल उनकी 40 एकड़ (16.19 हेक्टेयर) जमीन किसी अन्य के नाम दर्ज हो गई है। सागर जिले में ऐसे दर्जनों किस्से हैं जो बताते हैं कि मध्य प्रदेश में हुए जमीन कंप्यूटरीकरण मुहिम में कई ग्रामवासियों की जमीनों का नामांतरण किया गया। इससे असली मालिक की जमीन पर अनुचित व्यक्ति का मालिकाना हक और कब्जा हो गया है। 

जब लैंड कंफ्लिक्ट वाच (एलसीडब्ल्यू) ने इस मामले की तफ्तीश के लिए सागर जिले का दौरा किया, तब कंप्यूटरीकृत हुई जमीनों में गलत नामांतरण के कुछ दस्तावेज सामने आए। इस प्रकरण से परिचित समाजसेवकों और ग्रामीण स्तर के अधिकारियों ने आरोप लगाया कि इस जमीन के हेर-फेर में कई आदिवासी और दलितों की जमीन कब्जाई गई है। 

अगस्त 2008 में भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम (डीआईएलआरएमपी) के जरिए राष्ट्रीय स्तर पर भू-अभिलेखों के सुधार की पहल की। लेकिन इससे पहले 1999-2000 में एमपी सरकार ने पहले से चल रही केंद्र प्रायोजित स्कीम कंप्यूटराइजेशन ऑफ लैंड रिकॉर्ड (सीएलआर) के तहत राज्य में 55 हजार से अधिक गांवों के भू अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण किया। इससे स्पष्ट है कि कंप्यूटराइजेशन के मामले में मध्य प्रदेश शुरुआत से ही अन्य राज्यों से आगे था। सीएलआर योजना के अंतर्गत सागर जिले में भी जमीनों के रिकॉर्ड ऑनलाइन किए गए। इसमें सागर जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर स्थित केसली तहसील भी शामिल है। केसली में 100 एकड़ से अधिक जमीन का हेर-फेर पाया गया। जमीनी कार्यकर्ताओं व मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो यह फेरबदल करीब 1,000 एकड़ तक का हो सकता है। 

राजस्व रिकॉर्ड्स में फर्जी  नामांतरण कराने वालों पर कठोर कार्यवाही हेतु सागर कलेक्टर को दिया आवेदन पत्र

एलसीडब्ल्यू के हाथ लगे दो दस्तावेजों में से एक पटवारी द्वारा तहसीलदार को लिखा गया प्रतिवेदन और न्यायालय उपखंड अधिकारी द्वारा दिया गया राजस्व आदेश अनुवृत्ति पत्र है। दोनों पत्रों में दी गई सूचियों के अनुसार, केसली में कुल 30 लोगों की 126.56 एकड़ (51.21 हेक्टेयर) जमीन में नामांतरण का प्रकरण सामने आया। इनमें 20 प्रभावित गांव वालों की जमीनों में फर्जी नाम दर्ज हैं। वहीं 10 लोगों की जमीनों के रिकॉर्ड  में सुधार किया गया है। एलसीडब्ल्यू ने जब केसली के तीन गांव का दौरा किया तो पाया कि जिन रिकॉर्ड्स में पहले आदिवासी और दलित भू-स्वामियों का नाम होता था, वहां अब स्थानीय व बाहरी प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम हैं। देश में आदिवासियों व दलितों की जमीनों पर कब्जा व विस्थापन की समस्या को सरकार और अदालतों ने भी स्वीकार किया है। जनजातीय कार्य मंत्रालय के अनुसार, मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या में 21.1 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है। वहीं राज्य सरकार के मुताबिक राज्य में 15.40 प्रतिशत अनुसूचित जातियां हैं। 

गैरकानूनी नामांतरण

केसली तहसील में पटवारी रहे शैलेन्द्र सिंह के वर्ष 2018 के प्रतिवेदन (जो एलसीडब्ल्यू के पास है) के मुताबिक, पूर्व पटवारियों ने जमीन के अभिलेखों में अनुचित नाम दर्ज किए। पटवारी शैलेन्द्र की सूची में 23 लोगों का नाम है जिनकी कुल 82.06 एकड़ जमीन (33.21 हेक्टेयर) में हुए गलत नामांतरण का विवरण है। इसमें अधिकतर आदिवासी और दलितों की जमीनें शामिल हैं। 

शैलेन्द्र अपने इस पत्र में खसरों में हुए नामांतरण का ब्यौरा देते हुए कहते हैं, “खसरों का मिलान किया गया जिसमें विसंगतियां पाई गईं। इसकी बारीकी से जांच की गई है। बिना पीठासीन अधिकारी (तहसीलदार) के आदेश के कंप्यूटर अभिलेख में खसरों की दुरुस्ती की गई।” नियमानुसार पीठासीन अधिकारी के आदेश पर ही जमीन नामांतरण किया जा सकता है। ऐसे में यह जमीन नामांतरण गैरकानूनी है। इस बात की पुष्टि पटवारी शैलेन्द्र करते हुए कहते हैं कि ये मामले धारा 420 (भारतीय दंड संहिता) के अंतर्गत धोखाधड़ी और बेईमानी के हैं।   

पटवारी की रिपोर्ट के अनुसार, नाहरमाऊ गांव के मुलु गोंड की 7.11 एकड़ (2.88 हेक्टेयर) जमीन सेमरा गांव के विकास (उपनाम रिपोर्ट में मौजूद नहीं) के नाम हुई। इसी तरह मेहगुवां गांव की नर्मदा गोंड की 3.16 एकड़ (1.28 हेक्टेयर) जमीन रामनाथ (उपनाम रिपोर्ट में मौजूद नहीं) के नाम हो गई। ऐसे 21 लोगों के और उदाहरण इस रिपोर्ट में दर्ज हैं।

लेकिन, यह नामांतरण कैसे हुए? इस पर शैलेन्द्र सिंह बताते हैं, “पहले एनआईसी सॉफ्टवेयर चलता था जिसमें किसी भी कंप्यूटर ऑपरेटर को हल्का अधिकार दे दिए जाते थे। पटवारी या उसकी आईडी लेकर कोई भी कंप्यूटर ऑपरेटर (जूनियर डाटा एंट्री ऑपरेटर) काम कर सकता था।” उनका कहना है कि कलेक्टर के आदेश से कार्रवाई हुई और “शायद” 16 के रिकाॅर्ड्स में सुधार हुए। लेकिन एलसीडब्ल्यू ने जब खसरों की ऑनलाइन जांच की तब 23 में से 14 लोगों की जमीन का गलत रिकॉर्ड ज्यों का त्यों पाया। 

जमीन नामांतरण का दूसरा उदाहरण सागर के आरटीआई (सूचना के अधिकार) और जमीन मामले के विशेषज्ञ धनीराम गुप्ता द्वारा एकत्रित किए गए दस्तावेज हैं। इन दस्तावेजों में से एक न्यायालय उपखंड अधिकारी द्वारा दिया गया राजस्व आदेश अनुवृत्ति पत्र है। राजस्व पत्र के अनुसार, नवंबर 2019 में केसली तहसीलदार ने एक जनसुनवाई में “भूमि पर अधिकारियों/कर्मचारियों की सांठगांठ से रिकॉर्ड में फेरबदल की शिकायत के परिपेक्ष में जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।” इस जनसुनवाई में पांच ग्रामों– सेमरा, ईदलपुर, झिरिया, खैरी और केवलारी कलां – के कुल 17 शिकायतकर्ता मौजूद थे। 

“पांच गांवों के 17 लोगों की जमीनों को शिकायतकर्ता के आग्रह पर तत्कालीन सागर कलेक्टर, प्रीति मैथिल ने 2019 में इन्हीं पात्र लोगों के नाम दर्ज करवा दिया। लेकिन 100 प्रतिशत यह भूमि अब भी अवैध लोगों के कब्जे में हैं”

धनीराम गुप्ता, सूचना अधिकार कार्यकर्ता व जमीन के मामलों के जानकार

इस नाजायज जमीन नामांतरण को लेकर धनीराम गुप्ता का दावा है, “इन 17 लोगों की जमीनों को इनके (शिकायतकर्ता) आग्रह पर तत्कालीन सागर कलेक्टर, प्रीति मैथिल ने 2019 में इन्हीं पात्र लोगों के नाम दर्ज करवा दिया। लेकिन 100 प्रतिशत यह भूमि अब भी अवैध लोगों के कब्जे में हैं।” 

इस बात की सत्यता की पुष्टि के लिए हमने ग्राम ईदलपुर निवासी मिट्ठू अहिरवार से बातचीत की। उनकी 2 एकड़ (0.81 हेक्टेयर) जमीन 2016-17 उन्हीं के नाम दर्ज थी, पर 2017-18 में रामनाथ (उपनाम रिपोर्ट में मौजूद नहीं) के नाम दर्ज कर दी गई। उसके बाद कलेक्टर के आदेश पर 2019-20 में मिट्ठू का नाम वापस उल्लेखित किया गया।  लेकिन जब दलित मिट्ठू से हमने यह पूछा कि क्या उनकी जमीन उनको वापस मिली? तब इसके जवाब में वह कहते हैं कि, “हां, जमीन पर मेरा नाम तो दर्ज हो गया, पर कब्जा अब भी रामनाथ का है। उससे जब हम जमीन मांगते हैं, तब वह कहता है, हाथ-पैर
काट देंगे।” 

सुधार का संघर्ष

जहां कुछ लोगों की गलत जमीन नामांतरण में सुधार हुआ तो वहीं कई ग्रामीण ऐसे हैं, जो अब भी जमीन अपने नाम वापस करवाने का संघर्ष कर रहे हैं। सेंटर फॉर लैंड गवर्नेंस के असोसिएट डायरेक्टर व लैंड एक्सपर्ट प्रणव रंजन चौधरी बताते हैं, “देश में हर जगह जमीन कम्प्यूटरीकरण अलग-अलग हो रहा, जिसमें कहीं सरकार सरकारी कर्मचारियों से करवा रही तो कहीं किसी दूसरी कम्पनी को ठेका दे रही है। ऐसे में जमीन विवरण में गलत टाइपिंग, स्पेलिंग, से राज्य स्तर पर जमीन नामांतरण किया जा रहा है।”  उनके अनुसार, यह स्पष्ट नहीं कि देश के अनुमानित 32 करोड़ लैंड रिकॉर्ड में यह किस पैमाने पर हो रहा है। वह कहते हैं, “जमीन कम्प्यूटरीकरण प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए। जिसकी जमीन का कम्प्यूटरीकरण हुआ है, उसे उसकी प्रतिलिपि दी जानी चाहिए, ताकि पता चल सके उसकी जमीन का नामांतरण तो नहीं हुआ।” 

“मेरी 40 एकड़ जमीन किसी अन्य के नाम दर्ज हो गई है। इस पर मेरा 60 वर्षों से कब्जा था। मैं नामांतरण की शिकायत तहसीलदार, कलेक्टर और सीएम हेल्पलाइन नम्बर पर कर चुका हूं, मगर सुनवाई नहीं हुई”

― वीरसींग गोंड, बसा गांव, सागर, मध्य प्रदेश

कम्प्यूटरीकरण का इंतजार  

भारत सरकार की ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, चार राज्यों और तीन केन्द्र शासित प्रदेशों में लैंड कंप्यूटराइजेशन रिकॉर्ड (एलसीआर) 100 प्रतिशत हो चुका है। इन राज्यों में एक मध्य प्रदेश भी शामिल है। राज्य भू-राजस्व संहिता 1959 के तहत वर्ष 2000 में जिन आदिवासी और दलितों के पास कृषि के लिए जमीन नहीं थी, उन्हें सरकारी जमीन के पट्टे कृषि हेतु दिए गए लेकिन उनकी जमीन का ब्यौरा अभी तक कंप्यूटीकृत नहीं किया गया है। केसली में केवलारी कलां के गणेश चढ़ार को भी इसी स्कीम के तहत 2.47 एकड़ (1 हेक्टेयर) जमीन का पट्टा दिया गया था। गणेश दलित समुदाय से हैं। वह बताते हैं, “मैंने जमीन कंप्यूटरीकृत करवाने के लिए पटवारी को 2,000 रुपए रिश्वत दी। सीएम हेल्पलाइन नम्बर से मदद मांगी। तब भी जमीन कंप्यूटरीकृत नहीं हुई। इस वजह से हमें किसान क्रेडिट कार्ड योजना का लाभ कभी नहीं मिला।” 

विचारणीय है कि कंप्यूटरीकरण से हुए अवैध नामांतरण और जमीन कंप्यूटरीकृत करवाने के लिए पीड़ित लोग आवाज भी उठा रहे हैं। लेकिन प्रशासन और सरकार पुख्ता कार्रवाई नहीं कर रही है। जब इस संवाददाता ने कंप्यूटरीकरण और अवैध नामांतरण के मामले को लेकर केसली तहसील में तहसीलदार से बात करनी चाही तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर बात करने से मना कर दिया। जब इसी मामले को संवाददाता ने जिला कलेक्टर दीपक आर्य के समक्ष रखा, तब उन्होंने यह कहकर चुप्पी साध ली, “मुझे इस मामले में कुछ जानकारी नहीं हैं।” हालांकि, कुछ दिन पहले जमीन नामांतरण सम्बन्धी स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट में कलेक्टर का बयान सामने आया। इसमें उन्होंने कहा, “नामांतरण की लिखित शिकायत आएगी तो जांच की जाएगी और जो दोषी होंगे उन पर कार्रवाई होगी।” 

(लेखक लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉच, जो भारत में भूमि संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधन का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं का एक स्वतंत्र नेटवर्क है, में इंटर्न हैं)

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in