फॉरेस्ट 500 रिपोर्ट: बड़ी कंपनियों के लिए जंगलों का विनाश बड़ा मुद्दा नहीं

रिपोर्ट के अनुसार इन 350 में से करीब एक तिहाई कंपनियों के पास यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके उत्पाद वनों के विनाश को बढ़ावा न दे, कोई नीति नहीं है
फॉरेस्ट 500 रिपोर्ट: बड़ी कंपनियों के लिए जंगलों का विनाश बड़ा मुद्दा नहीं
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एक तरफ जहां दुनिया के 105 देशों ने हाल ही में वनों के बढ़ते ह्रास को रोकने के लिए ‘ग्लास्गो लीडर्स डिक्लेरेशन ऑन फॉरेस्ट्स एंड लैंड यूज’ पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन वहीं दूसरी तरफ दुनिया की कुछ सबसे प्रभावशाली कंपनियां और वित्तीय संस्थान अभी भी इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। यह जानकारी यूके स्थित स्वयंसेवी संगठन ग्लोबल कैनोपी द्वारा जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है। 

'फारेस्ट 500' नामक इस रिपोर्ट में पाम आयल, बीफ और लकड़ी जैसे उत्पादों के व्यवसाय से जुड़ी 350 सबसे प्रभावशाली कंपनियों और 150 वित्तीय संस्थानों की पहचान की है। यह विश्व की वो दिग्गज कंपनियां हैं जो वन विनाश को बढ़ावा देने वाली वस्तुओं के उत्पादन, उपयोग या व्यापार से जुड़ी हैं। वहीं जिन बैंकों और वित्तीय संस्थानों को इसमें शामिल किया गया है वो इन वस्तुओं से जुड़े व्यापार के लिए वित्त मुहैया कराते हैं। 

अपनी सम्बंधित आपूर्ति श्रंखला और निवेश में वनों के विनाश को रोकने के लिए इन कंपनियों और वित्तीय संस्थानों ने कितनी प्रतिबद्धता जताई है और उनका प्रदर्शन कैसा था,  इसके आधार पर इनका आंकलन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार इन 350 कंपनियों में से करीब एक तिहाई (117 कंपनियों) के पास यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके उत्पाद वनों के विनाश को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं, कोई नीति नहीं है।

इस रिपोर्ट में  नेस्ले, हरिता ग्रुप, यूनिलीवर पीएलसी, सिपफ, पेप्सिको, आमागगी, मार्स, कोलगेट पामोलिव, वेल्ट्रा, सदासा, शंघाई कंस्ट्रक्शन ग्रुप, टेंग्रेनशेन ग्रुप, टोटल एंटरप्राइज लिमिटेड, झेजियांग टोंगटियांक्सिंग ग्रुप ज्वाइंट-स्टॉक कंपनी लिमिटेड जैसी कंपनियां शामिल थी। यदि सिर्फ भारत की बात करें तो इस रिपोर्ट में जिन 9 कंपनियों को शामिल किया गया है जिनके मुख्यालय भारत में थे उनमें आदित्य बिड़ला ग्रुप, गोदरेज ग्रुप, इमामी लिमिटेड, एलनसन्स प्राइवेट लिमिटेड, अमूल, भारतीय इंटरनेशनल लिमिटेड, फ्यूचर ग्रुप, पतंजलि आयुर्वेद और सुगुना फूड्स शामिल थे।

इन 350 कंपनियों में से 72 फीसदी ने सभी उत्पादों की आपूर्ति श्रंखला से होने वाले वन विनाश को रोकने के लिए प्रतिबद्धता नहीं जताई है। हालांकि उन्होंने कुछ उत्पादों को इसमें शामिल जरूर किया है। वहीं जिन कंपनियों ने इसके प्रति प्रतिबद्धता जताई भी है वो उसके लक्ष्यों  को हासिल करने के लिए बहुत कम प्रयास कर रहे हैं।

वहीं प्रतिबद्धता जताने वाली कई कंपनियां खासतौर पर सोया, बीफ और चमड़े की आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी कंपनियां इस बात का सबूत देने में विफल रही हैं कि वो अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए कैसे काम कर रही हैं।   

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 28 कंपनियों ने वन विनाश को रोकने के लिए नई प्रतिबद्धता प्रकाशित की थी, हालांकि इनमें से केवल 11 कंपनियों ने उन सभी वस्तुओं और उत्पादों को इस प्रतिबद्धता में शामिल किया था जो वनों की कटाई से जुड़े थी। वहीं मूल्यांकन की गई एक भी कंपनी के पास मानवाधिकारों के मामले में व्यापक दृष्टिकोण नहीं था।

वहीं उन कंपनियों में से जिन्होंने वन विनाश सम्बन्धी एक भी प्रतिबद्धता जाहिर की थी, उनमें से करीब एक-तिहाई कंपनियां इसका पालन सुनिश्चित करने के लिए अपने स्वयं के आपूर्तिकर्ताओं की निगरानी नहीं कर रही हैं। वहीं 47 फीसदी कंपनियां वन विनाश सम्बन्धी वस्तुओं की कितनी उपयोग कर रहीं हैं उस बारे में सार्वजनिक तौर पर जानकारी साझा नहीं करती हैं।

410.4 लाख करोड़ रुपए का उधार देने वाले वित्तीय संस्थानों को भी नहीं है जंगलों की फिक्र

यदि वित्तीय संस्थानों की बात करें तो उन्होंने वन उत्पादों की आपूर्ति श्रंखला से जुड़ी कंपनियों को 410.4 लाख करोड़ रुपए का वित्त उपलब्ध कराया था। लेकिन इसके बावजूद यह वित्तीय संसथान इस बात पर बहुत कम ध्यान दे रहें हैं कि जिन कंपनियों को वो वित्त प्रदान कर रहे हैं वो वनों के विनाश के लिए जिम्मेवार नहीं हैं। 

इनमें से 93 वित्तीय संस्थानों में वनों के विनाश से जुड़ी कोई नीति नहीं है जो उनके निवेश को कवर करती है। गौरतलब है कि इन वित्तीय संस्थानों ने उन कंपनियों को 194 लाख करोड़ रुपए उधार दिए थे, जो वन विनाश को बढ़ावा देने वाली वस्तुओं के उत्पादन, उपयोग या व्यापार से जुड़े थे। 

इनमें से 23 वित्तीय संस्थान, जिनकी नीतियों में वन विनाश भी शामिल हैं, उन्होंने अपनी इन नीतियों को लागु करने की दिशा में कितनी प्रगति की है इस बारे में जानकारी साझा की थी। वहीं कुछ वित्तीय संस्थान वन विनाश से जुड़े मानवाधिकार सम्बन्धी जोखिम को पहचानते हैं।

ऐसे में जब हम जानते हैं कि यह जंगल हमारे पर्यावरण, जैव विविधता और जलवायु के दृष्टिकोण से कितने महत्वपूर्ण हैं। हमें जंगलों के बढ़ते विनाश को रोकने के लिए  गंभीरता से काम करने की जरूरत है। अब समय कॉप-26 के दौरान वृक्षों की कटाई को रोकने एवं वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए जिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे समय उसे लागु करने का है।

यह नई राजनैतिक पहल व्यापक रूप से कानूनी ढांचे का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। वनों के विनाश को रोकने के लिए जवाबदेही स्पष्ट होनी चाहिए। साथ ही इसकी अवहेलना करने पर दंड भी होना चाहिए। वित्तीय क्षेत्रों के लिए भी कड़े नियमों की जरुरत है, जिनका कड़ाई के साथ पालन किया जाना चाहिए। 

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