साल 2022 में करीब 66 लाख हेक्टेयर में फैले जंगल बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ गए। यदि काटे गए वनों के कुल क्षेत्र को देखें तो वो स्विट्जरलैंड के आकार के डेढ़ गुना से भी बड़ा है।
आंकड़ों के मुताबिक हर मिनट दुनिया भर में करीब 13 हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए जाते हैं और यह तब है जब दुनिया भर के 144 नेताओं ने ग्लासगो में हुए कॉप-26 सम्मलेन के दौरान 2030 तक इन जंगलों को बचाने की प्रतिज्ञा ली थी।
यह जानकारी दुनिया भर के पर्यावरण संगठनों के गठबंधन द्वारा जारी नई रिपोर्ट "2023 फारेस्ट डिक्लेरेशन असेसमेंट: ऑफ ट्रैक एंड फॉलिंग बिहाइंड" में सामने आई है। रिपोर्ट में इस बात का मूल्यांकन किया गया है कि देश, कंपनियां और निवेशक 2030 तक वनों की कटाई को समाप्त करने और 35 करोड़ हेक्टेयर क्षतिग्रस्त भूमि की बहाली के अपने वादों को पूरा करने के लिए कितना बेहतर कर रहे हैं।
हालांकि इस रिपोर्ट में कुछ और ही तस्वीर सामने आई है, पता चला है कि 2022 के दौरान दुनिया भर में जंगलों की सुरक्षा और बहाली के लिए किए जा रहे प्रयासों की गति सुस्त पड़ गई है और कुछ मामलों में तो स्थिति पहले से ज्यादा बदतर हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक 2021 की तुलना में देखें तो 2022 के दौरान वैश्विक स्तर पर चार फीसदी ज्यादा तेजी से वनों को सफाया किया गया है। इसके चलते साल में करीब 66 लाख जंगल खत्म हो गए।
दुनिया वनों के इस होते विनाश को रोकने और 2030 के लिए तय लक्ष्यों को हासिल करने से 21 फीसदी पीछे है। ऐसा ही कुछ उष्णकटिबंधीय जंगलों के मामले में भी देखने को मिला है जो दुनिया के सबसे घने और अछूते वन हैं। रिपोर्ट से पता चला है कि 2022 में करीब 41 लाख हेक्टेयर में फैले उष्णकटिबंधीय जंगलों को काटा गया है। इसकी वजह से इन जंगलों के लिए जो लक्ष्य तय किए गए हैं उससे हम 33 फीसदी पीछे रह गए हैं।
रिपोर्ट से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जंगलों के विनाश के लिए कृषि, जिसमें पशुपालन, सोया, ताड़ के तेल का उत्पादन और छोटी जोत वाली खेती प्रमुख रूप से जिम्मेवार है। इनके साथ-साथ सड़कों का बिछता जाल, पेड़ों की व्यावसायिक रूप से होती कटाई भी इनकों गंभीर नुकसान पहुंचा रही है।
पटरी पर लौटने के लिए वन विनाश को 28 फीसदी तक कम करने की है जरूरत
2022 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वन हानि को रोकने के प्रयास विफल रहे हैं। उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र में जंगलों को होते नुकसान में आठ फीसदी की वृद्धि हुई है, जिसमें ब्राजील और बोलीविया को सबसे ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ा है। वहीं दूसरी ओर, उष्णकटिबंधीय एशियाई देशों में, बेसलाइन की तुलना में वनों की कटाई में 18 फीसदी की कमी आई है, और मलेशिया और इंडोनेशिया ने 2022 के लिए तय अपने अंतरिम लक्ष्यों को हासिल कर लिया है।
कुल मिलकर देखें तो 2022 के दौरान सबसे पुरातन उष्णकटिबंधीय जंगलों को भारी नुकसान हुआ है, बेसलाइन की तुलना में उनके नुकसान में छह फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। दुर्भाग्य से, तीन उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्रों - उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, उष्णकटिबंधीय एशिया और उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका एवं कैरेबियन में से कोई भी क्षेत्र इन बहुमूल्य जंगलों को होते नुकसान को खत्म करने की राह पर नहीं है।
इससे पहले सितम्बर 2022 में अमेजोनियन नेटवर्क ऑफ जियोरेफरेंस्ड सोशल-एनवायरनमेंटल इंफॉर्मेशन (आरएआईएसजी) और द कोऑर्डिनेटर ऑफ द इंडिजिनियस आर्गेनाईजेशन ऑफ द अमेजन बेसिन (कोइका) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट “अमेज़ोनिया अगेंस्ट द क्लॉक” से पता चला है कि अमेजन के जंगलों का 26 फीसदी हिस्सा बढ़ते इंसानी लालच की भेंट चढ़ चुका है, जो अब करीब-करीब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां से उसकी बहाली के सभी रास्ते लगभग बंद हो चुके हैं। पता चला है कि अमेज़न का यह हिस्सा बड़े पैमाने पर वन विनाश और गिरावट का सामना कर रहा है।
इस रिपोर्ट की मानें तो अमेजन का 66 फीसदी हिस्सा किसी न किसी रूप में दबाव का सामना कर रहा है। यदि अमेजन में होते वन विनाश की वजह की बात करें तो 1985 से कृषि क्षेत्र बढ़कर तीन गुना हो गए हैं। देखा जाए तो अमेजन में 84 फीसदी वनों के विनाश के लिए कृषि ही जिम्मेवार है। इतना ही नहीं संरक्षित और मूल निवासियों के आधीन क्षेत्र भी इस समस्या से पूरी तरह मुक्त नहीं हैं।
ऐसे में यदि हमें इन लक्ष्यों की राह में वापस पटरी पर लौटना है तो 2023 तक दुनिया में होती जंगलों की इस कटाई को 27.8 फीसदी तक कम करने की जरूरत है। इस बारे में फॉरेस्ट डिक्लेरेशन असेसमेंट के प्रमुख लेखक और क्लाइमेट फोकस के वरिष्ठ सलाहकार एरिन मैट्सन का कहना है कि, "दुनिया भर के जंगल खतरे में हैं। यह सभी वादे काटे जा रहे जंगलों को बचाने, और वनों संरक्षण को वित्त मुहैया कराने के लिए किए गए हैं। लेकिन प्रगति का अवसर साल-दर-साल हमसे दूर होता जा रहा है।"
उनका आगे कहना है कि, "2021 में, जंगलों के होते विनाश को खत्म करने की राह में हम पहले ही पिछड़ रहे थे। 2022 में पकड़ बनाने का मौका था, लेकिन नेता एक बार फिर पीछे रह गए हैं।" उनके मुताबिक हम 2030 तक वन विनाश को रोकने की इस राह में लड़खड़ाते नहीं रह सकते। अब यह स्पष्ट है कि जंगलों की होती इस कटाई को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव की आवश्यकता होगी और इसमें पूरे समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी।
ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच द्वारा 2022 में जारी आंकड़ों से पता चला है कि जंगलों में लगने वाली आग से हर मिनट करीब 16 फुटबॉल मैदानों के बराबर जंगल स्वाहा हो रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार 2021 में वैश्विक स्तर पर करीब 93 लाख हेक्टेयर में फैले जंगल आग की भेंट चढ़ गए थे। नए आंकड़ों ने पुष्टि की है जंगल में लगती आग 20 साल पहले की तुलना में दोगुने ज्यादा वनक्षेत्र को नष्ट कर रही हैं।
हमें इस मुद्दे की गंभीरता को समझना होगा, यह जंगल और इनका अमूल्य पारिस्थितिकी तंत्र न केवल जैवविविधता के दृष्टिकोण से बल्कि इंसानों के अस्तित्व के लिए भी बेहद जरूरी हैं। यह जैवविविधता को बनाए रखें के साथ-साथ, जलवायु में आते बदलावों और बढ़ते प्रदूषण से हमारी रक्षा करते हैं। साथ ही आर्थिक रूप से भी हमारे लिए फायदेमंद हैं।
इतना ही नहीं यह सांस्कृतिक रूप से भी हमारे लिए बेहद अहम हैं। वहीं यदि तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखना है तो इन जंगलों को बरकरार रखना बेहद जरूरी है।