कलसा नाला डायवर्जन परियोजना को मंजूरी से इनकार; विवादास्पद गोवा पावर लाइन को सशर्त हरी झंडी

इन दोनों परियोजनाओं के कारण गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों के बीच कई वर्षों से टकराव चल रहा है
कलसा नाला डायवर्जन परियोजना की योजना काली और सह्याद्री टाइगर रिजर्व के 10.68 हेक्टेयर वन क्षेत्र पर बनाई गई है। फोटो: आईस्टॉक
कलसा नाला डायवर्जन परियोजना की योजना काली और सह्याद्री टाइगर रिजर्व के 10.68 हेक्टेयर वन क्षेत्र पर बनाई गई है। फोटो: आईस्टॉक
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केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में हुई बैठक में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनडब्ल्यूबी) ने महादयी परियोजना से संबंधित सुप्रीम कोर्ट में गोवा सरकार द्वारा चल रही कानूनी चुनौतियों का हवाला देते हुए कलसा नाला डायवर्सन परियोजना के लिए वन्यजीव मंजूरी देने से इनकार कर दिया है।

इसके अलावा बोर्ड की स्थायी समिति की 79वीं बैठक में गोवा-तमनार 400 केवी बिजली ट्रांसमिशन लाइन को मंजूरी देने का भी फैसला किया गया, जिसमें कर्नाटक की पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील 435 एकड़ वन भूमि का उपयोग शामिल है।

इस निर्णय से विवाद पैदा होने की संभावना है, क्योंकि पर्यावरणविद और कर्नाटक की राज्य सरकार इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि परियोजना के कार्यान्वयन से वन क्षेत्र व्यापक तौर पर प्रभावित होगा।

कलसा नाला डायवर्सन परियोजना, जिसका उद्देश्य कर्नाटक के सूखाग्रस्त क्षेत्रों की पेयजल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए महादयी नदी से पानी को मोड़ना है, को कई कानूनी और पर्यावरणीय बाधाओं का सामना करना पड़ा है।

29 दिसंबर, 2022 को केंद्रीय जल आयोग ने एक संशोधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को मंजूरी दी थी, जिसमें कलसा नाला डायवर्सन के लिए 1.78 हजार मिलियन क्यूबिक (टीएमसी) फुट निर्धारित किया गया था।

परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए कर्नाटक सरकार ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसमें बेलगाम जिले के खानपुरा तालुक के सात गांवों में वन भूमि का उपयोग आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए  राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनटीसीए) की मंजूरी का अनुरोध किया गया, जिसमें एक जैकवेल, पंप हाउस, विद्युत सबस्टेशन और पाइपलाइन शामिल है।

प्रस्ताव में काली और सह्याद्री टाइगर रिजर्व से 10.68 हेक्टेयर वन का उपयोग शामिल था।हालांकि कर्नाटक राज्य वन्यजीव बोर्ड ने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी और इसे केंद्र को भेज दिया था, लेकिन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने चिंता व्यक्त की।

सिफारिशों को नकारना व कानूनी अड़चनें 

एनडब्ल्यूबी ने महादयी परियोजना क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम भेजी थी, जिसके परिणामस्वरूप कई सिफारिशें हुईं, जो अभी भी औपचारिक प्रतिक्रिया के लिए लंबित हैं।

एनडब्ल्यूबी द्वारा मंजूरी देने से इनकार करने का मुख्य कारण गोवा सरकार द्वारा महादयी परियोजना को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में चल रही कानूनी लड़ाई और एनटीसीए की ओर से कोई निश्चित रुख न होना है।

महादयी परियोजना में कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र से होकर बहने वाली महादयी नदी की कलसा और बंडुरी धाराओं पर बैराज बनाना शामिल है। इस परियोजना की परिकल्पना 1980 के दशक में की गई थी, लेकिन तीन राज्यों के बीच नदी विवाद के कारण इसे नौकरशाही की बाधाओं का सामना करना पड़ा।

इस बीच कर्नाटक वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के अनुसार मामले को एनडब्ल्यूबी की अगली बैठक तक के लिए टाल दिया गया है, जिससे परियोजना में और देरी हो रही है, जो लंबे समय से कर्नाटक और गोवा के बीच विवाद का विषय रही है।

गोवा-तमनार बिजली लाइन के लिए पारिस्थितिकी संबंधी चिंताएं

एनडब्ल्यूबी द्वारा गोवा-तमनार 400 केवी बिजली ट्रांसमिशन लाइन के लिए सशर्त वन्यजीव स्वीकृति दिए जाने से पर्यावरणविद नाराज हैं। बिजली लाइन कर्नाटक के पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। 

प्रस्तावित बिजली लाइन, जो धारवाड़ में नरेंद्र को गोवा से जोड़ेगी दांडेली हाथी गलियारा, भीमगढ़ अभयारण्य इको-माइक्रो जोन, काली टाइगर रिजर्व इको-माइक्रो जोन और दांडेली अभयारण्यों सहित महत्वपूर्ण वन्यजीव आवासों से होकर गुजरेगी। 

इस मार्ग में वन भूमि का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाएगा, जिससे इसके पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं। गोवा सरकार ने इस परियोजना के लिए भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य के भीतर 27 हेक्टेयर वन के उपयोग के लिए स्वीकृति मांगी थी, और अब इसे मंजूरी दे दी गई है। 

सशर्त स्वीकृति 

हालांकि, एनडब्ल्यूबी  ने एक शर्त लगाई है कि जब तक परियोजना के प्रस्ताव को कर्नाटक के वन्यजीव बोर्ड से अनुशंसा नहीं मिल जाती, तब तक कर्नाटक की ओर से कोई काम शुरू नहीं होना चाहिए। 

यह परियोजना अपनी शुरुआत से ही विवादास्पद रही है। 2019 में, गोवा तमनार ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट लिमिटेड ने कर्नाटक सरकार को बिजली लाइन के लिए वन भूमि का उपयोग करने की अनुमति मांगते हुए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। 

केनरा सर्कल में मुख्य वन संरक्षक द्वारा किए गए एक साइट निरीक्षण ने पश्चिमी घाट के घने जंगल और बाघों के आवासों पर परियोजना के संभावित विनाशकारी प्रभाव को उजागर किया और इसे अस्वीकार करने की सिफारिश की। 

साल 2021 में प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने भी परियोजना के खिलाफ सलाह दी। पर्यावरण पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन गोवा फाउंडेशन ने इस परियोजना को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 

न्यायालय ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को प्रस्ताव की समीक्षा करने का निर्देश दिया। सीईसी ने सिफारिश की कि पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिए मौजूदा 220 केवी लाइन का उपयोग किया जाए, और आगे बढ़ने से पहले कर्नाटक सरकार से परामर्श करने का आग्रह किया।

 इन सिफारिशों के बावजूद एनडब्ल्यूबी ने सशर्त स्वीकृति के साथ आगे बढ़ना शुरू कर दिया है। गोवा-तमनार परियोजना के लिए सशर्त स्वीकृति की तीखी आलोचना हो रही है, खासकर कर्नाटक स्थित पर्यावरणविदों और राजनीतिक नेता इसकी आलोचना कर रहे हैं।

वन्यजीव संरक्षण गिरिधर कुलकर्णी ने एनडब्ल्यूबी के फैसले की निंदा करते हुए इसे 'दबाव की रणनीति' और लाफार्ज मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन बताया, जिसमें पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा पर जोर दिया गया है।

कुलकर्णी ने तर्क दिया, "परियोजना को आगे बढ़ने देने का एनडब्ल्यूबी का फैसला, यहां तक ​​कि सशर्त भी, कर्नाटक के पारिस्थितिकी हितों को कमजोर करता है और एक खतरनाक मिसाल कायम करता है। कर्नाटक के राजनेताओं को आगामी राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में दलगत मतभेदों को दूर रखना चाहिए और योजना के खिलाफ एकजुट होना चाहिए।"

इससे पहले, कर्नाटक के वन मंत्री ईश्वर खंड्रे ने राज्य के अधिकारियों को गोवा-तमनार प्रस्ताव को खारिज करने का निर्देश दिया था, जिससे परियोजना के प्रति राज्य के दृढ़ विरोध का पता चलता है।

हाल के घटनाक्रम से कर्नाटक और गोवा के बीच तनाव फिर से बढ़ने की संभावना है, जिसके चलते आगे कानूनी लड़ाई की संभावना भी बन गई है, क्योंकि दोनों राज्य अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

जैसे-जैसे विवाद गहराता जा रहा है, कलसा नाला डायवर्सन और गोवा-तमनार परियोजनाओं पर एनडब्ल्यूबी के निर्णय पर्यावरण संरक्षण और विकास की जरूरतों के बीच जटिल अंतर्संबंध पर सवाल खड़े कर रहे हैं, जिसका कर्नाटक के वनों और वन्यजीवों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

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