दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को लेकर वन विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। जैसे-जैसे मामले की तारीख नजदीक आती जा रही है, वन विभाग के हाथ पांव फूलते जा रहे हैं। दरअसल, अदालत के एक आदेश के चलते वन विभाग को दक्षिण दिल्ली के सेंट्रल रिज में मात्र एक माह के भीतर 1.40 लाख पौधे लगाने हैं, लेकिन वन विभाग अब तक तय नहीं कर पाया है कि इसे कैसे शुरू किया जाए।
दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस नजमी वजीरी की अदालत 11 मार्च 2019 को एक दवा कंपनी पर 80 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था। साथ ही निर्देश दिए थे कि यह राशि राजधानी दिल्ली में हरित क्षेत्र का दायरा बढ़ाने पर खर्च की जाए। अदालत ने कहा था कि कंपनी दक्षिण दिल्ली स्थित सेंट्रल रिज में 1 लाख 40 हजार देशी पौधे लगाएगी। कंपनी को इन पौधों की देखभाल बारिश का सीजन खत्म होने तक करनी होगी। साथ ही, पौधों में सीवर का शोधित (ट्रीटेड) पानी ही दिया जाएगा। अदालत की अवमानना मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने यह फैसला सुनाया है।
जस्टिस नजमी वजीरी ने उप वन संरक्षक (दक्षिण दिल्ली) से कहा था कि इस आदेश को लागू करने की जिम्मेवारी उनकी होगी। साथ ही, अदालत ने एडवोकेट एमए नियाजी और एडवोकेट सुमीत पुष्करणा को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया है, जो पौधारोपण और उनकी देखरेख की निगरानी करेंगे। वन विभाग और कोर्ट कमिश्नर हर पखवाड़े क्षेत्र का दौरा करेंगे और दौरे के एक सप्ताह के भीतर फोटो के साथ अपनी रिपोर्ट अदालत को देंगे।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होनी है, जिसमें वन विभाग को अपनी रिपोर्ट अदालत को देनी है। लेकिन अब तक वन विभाग इस दिशा में कुछ ठोस नहीं कर पाया है।
पूरा मामला बेहद रोचक है। यूएसए की एक कंपनी मेर्क शार्प एंड डोमे कॉरपोरेशन ने याचिका दायर कर चैन्नई की कंपनी नूत्रा स्पेशलिटीज प्राइवेट लिमिटेड (जो अब वेंकटनारायणा एक्टिव इनग्रिडिएंटस प्राइवेट लिमिटेड के नाम से कारोबार कर रही है) के एमडी अभय कुमार दीपक पर अदालत की अवमानना का आरोप लगाया और कहा कि उनकी एक दवा को भारत में बेचे जाने को लेकर 5 मई 2016 को अदालत के हस्तक्षेप के बाद दोनों कंपनियों के बीच समझौता हुआ था, लेकिन अभय की कंपनी समझौते की शर्तों की पालना नहीं कर रही है।
दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद अदालत ने कहा कि अभय कुमार दीपक एक पढ़े लिखे व्यक्ति हैं, उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे उन्हें कानून, कानूनी प्रक्रिया और अदालत के आदेशों की जानकारी नहीं थी। कंपनी का सालाना कारोबार 100 करोड़ रुपए से अधिक है, जो दवाएं बनाने का बिजनेस करती है और कई सालों से एक्सपोर्ट भी करती है। वकीलों और पढ़े लिखे प्रबंधकों से सलाह भी ले सकती है। इसलिए अभय कुमार को दो सप्ताह के भीतर बिना शर्त माफी मांगनी होगी और समझौते की शर्तों की पालना का वचन देना होगा।
साथ ही, अदालत ने कंपनी पर 80 लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए कहा कि यह पैसा सार्वजनिक हित पर खर्च किया जाएगा। इसके बाद अदालत ने कहा कि पिछले चार साल के दौरान दिल्ली में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है और हवा की गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। स्थिति आपातकाल तक पहुंच गई है। हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए जरूरी हो गया है कि राजधानी में हरित क्षेत्र का दायरा बढ़ाया जाए, इसलिए कंपनी का यह पैसा हरित क्षेत्र का दायरा बढ़ाने पर खर्च किया जाएगा।
अदालत ने कहा कि दिल्ली में सेंट्रल रिज का क्षेत्रफल 2135 एकड़ है और वन विभाग के पास 935 एकड़ क्षेत्र है, इसलिए इस रिज में पेड़ लगाकर हरित क्षेत्र का दायरा बढ़ाया जा सकता है। सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि दिल्ली में विलायती कीकर एक बड़ा मुद्दा है, जिसका कोई फायदा नहीं है, बल्कि यह कार्बन अवशोषित भी नहीं करता है। वहीं, दिल्ली में हरित क्षेत्र के नाम पर जगह-जगह झाड़ियां उगी हुई है। हालांकि वन विभाग ने कहा कि उन्होंने झाड़ियां हटाने और विलायती कीकर की छंटाई करने का निर्णय लिया है।
अदालत ने कहा कि कंपनी की जुर्माना राशि से सेंट्रल रिज में 1.40 लाख पेड़ लगाए जाएं और ये पेड़ देशी होने चाहिए। यहां तक कि अदालत ने यह भी बताया कि कौन-कौन से पड़े लगाए जाएंगे। इनमें गूलर, पिलखन, बरगद, अमलतास, पुत्रनजीवा, सागवान, काला सिरिस, कठहल, अर्नी, रोहिडा, पलाश, कदंबा, जामुन, आम, महुआ, बड़, सेफद सिरिस, अंजीर, बिसतेंदु, मेडसिंगी शामिल हैं।
अदालत ने वन विभाग को निर्देश दिए कि वह कंपनी को बताए कि ये 1.40 लाख पौधे कहां लगेंगे। साथ ही, यह बताए कि इन पौधों के लिए पानी कहां से आएगा, खासकर यह ध्यान रखा जाए कि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का पानी ही इस्तेमाल किया जाए। कंपनी से ऐसे छोटे-छोटे बांध बनवाएं जाएं, ताकि बारिश के मौसम का इन पौधों को फायदा मिले। वन विभाग बकायदा एक एक्शन प्लान बना कर इन पौधों की रक्षा करे। हर पेड़ पर नंबर डाला जाए। अदालत ने कहा कि वन विभाग की जिम्मेवारी होगी कि पौधे एक निश्चित ऊंचाई तक पहुंचें और जीवित रहें।
अदालत ने स्पष्ट किया कि कंपनी केवल पौधे लगाने तक सीमित नहीं रह सकती। कंपनी को कम से कम बारिश का मौसम खत्म होने तक इन सभी पौधों की देखभाल करनी होगी।