गिद्धों को बिजली के करंट से बचाने का देहरादून मॉडल

देहरादून की शीतला नदी के पास से गुजर रही बिजली की तारों में करंट लगने से पक्षियों की मौत के साथ-साथ बिजली विभाग को भी लाखों का नुकसान हो रहा था
लांघा रोड पर बिजली की लाइन पर बैठा  स्टेपी ईगल। फोटो : सन्नी जोशी
लांघा रोड पर बिजली की लाइन पर बैठा स्टेपी ईगल। फोटो : सन्नी जोशी
Published on
Summary
  • उत्तराखंड में गिद्धों की सुरक्षा के लिए एक नई पहल की गई है

  • देहरादून की शीतला नदी के पास बिजली के खंभों को इंसुलेट कर पक्षियों की मौतों को रोका गया।

  • इस प्रयास में वन विभाग और यूपीसीएल ने मिलकर काम किया, जिससे पक्षियों की जान बची

  • बिजली विभाग को आर्थिक नुकसान से बचाया गया

  • यह मॉडल अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है

देहरादून की बरसाती नदी शीतला नदी बीते कई दशकों से मृत पशुओं के शव निस्तारण का ठिकाना है। इरशाद अली, रोज की तरह अपने काम के सिलसिले में यहां पहुंचे हैं। एक मृत पशु का शव बंद वाहन में लाया गया है। वह अपने काम के बारे में गर्व से बताते हैं, “पीढ़ियों से हम ये काम करते आ रहे हैं। जिला पंचायत से शव निस्तारण के लिए ये जगह मिली है। हमारे पास 200 से ज्यादा गांव हैं और रोजाना 8-10 पशु शव यहां लाए जाते हैं। हम उनकी खाल निकालते हैं। जिसके बाद पशु-पक्षी भोजन करते हैं। भरपेट भोजन मिलने की वजह से यहां बहुत सारे पक्षी आते हैं”।

करीब 8 साल पहले नदी के किनारे बिजली की हाईटेंशन पावर लाइन डाली गई थी। जिसके लिए पेड़ भी काटे गए। डाउन टू अर्थ से बातचीत में इरशाद कहते हैं, “जब से बिजली के ये खंभे यहां लगे हैं, पक्षी बैठने के लिए इस पावर लाइन का इस्तेमाल करने लगे। जब वे उड़ने के लिए पंख फैलाते तो कई बार करंट से उनकी मौत हो जाती। हमें रोज ही 4-5 पक्षी मरे या घायल दिख जाते थे। सर्दियों में प्रवासी पक्षियों के आने के साथ ये संख्या बढ़ भी जाती”। इरशाद के साथ मौजूद अन्य ग्रामीण भी इसकी पुष्टि करते हैं।

जैव-विविधता हॉटस्पॉट बना डेथस्पॉट

लांघा रोड, जैव-विविधता के लिहाज से बेहद समृद्ध शिवालिक की पहाड़ियों के नजदीक है। यहां से करीब 250 किलोमीटर से अधिक दूरी पर रामनगर में कार्बेट नेशनल पार्क से उड़कर आए एक सफेद गिद्ध ने शिवालिक की पहाड़ियों में अपना बसेरा बनाया और भोजन के लिए इसी क्षेत्र का इस्तेमाल करने लगा।

 नवंबर 2023 उत्तराखंड वन विभाग ने वन्यजीव संरक्षण के लिए कार्य कर रही संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के साथ मिलकर इस गिद्ध की सेटेलाइट टैगिंग की थी। इस सेटेलाइट टेलिमेट्री स्टडी का उद्देश्य राज्य में गिद्धों के संरक्षण के प्रयास को बढ़ावा देना है। इस साल ही राजाजी टाइगर रिजर्व की चीला रेंज से एक और सफेद गिद्ध की सेटेलाइट टैगिंग की गई और वह भी भोजन के लिए इसी क्षेत्र का इस्तेमाल कर रहा है। 

करंट लगने के कारण गिद्ध मारे जाते थे। फोटो: सन्नी सिंह
करंट लगने के कारण गिद्ध मारे जाते थे। फोटो: सन्नी सिंह

सेटेलाइट टैग किए गए गिद्ध की लोकेशन दिखाते हुए वन्यजीव विशेषज्ञ सनी जोशी कहते हैं, “सेटेलाइट टेलिमेट्री डेटा से पता चलता है कि वो इजिप्शियन वल्चर इस जगह को काफी पसंद करता है। शिवालिक की पहाड़ियों में घोंसला बनाने के बाद वह भोजन के लिए लगातार इसी जगह का इस्तेमाल कर रहा है।”

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के रैप्टर कंजर्वेशन प्रोग्राम में बतौर सीनियर प्रोजेक्ट ऑफिसर कार्यरत जोशी कहते हैं, हमारे लिए ये जानकारी बेहद रोचक थी।

वह कहते हैं, “हम वर्ष 2022 से लांघा रोड की इस साइट का अध्ययन कर रहे हैं। रामनगर से उड़कर आए गिद्ध के यहां बसेरा बनाने के बाद हमने हर 15 दिन पर पावर लाइन के साथ-साथ करीब 2-3 किलोमीटर पैदल चलकर कर बिजली के करंट लगने से होने वाली मौतों की निगरानी शुरू की।” 

सर्दियों में यहां पक्षियों का जमावड़ा अधिक होने से मौतें बढ़ जाती हैं। जोशी के मुताबिक भारतीय वन्यजीव अधिनियम में शेड्यूल-1 में दर्ज और आईयूसीएन की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त प्रजातियों के तौर पर दर्ज करीब 30 पक्षी पिछली दो सर्दियों में इन खंभों के नीचे मृत पाए गए।

संस्था के अध्ययन के मुताबिक लांघा रोड के इस क्षेत्र में 20 से अधिक शिकारी पक्षी प्रजातियों की मौजूदगी दर्ज की गई हैं। साथ ही यह वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त तीन प्रजातियों हिमालयन गिद्ध, सफेद इजिप्शियन गिद्ध और स्टेपी ईगल का घर भी है।

आसान समाधान

एक क्षेत्र विशेष में पक्षियों की लगातार मौतों को अब तक कोई खास तरजीह नहीं दी गई थी। वन विभाग के साथ जंगली जानवरों को रेस्क्यू करने का कार्य कर रहे आदिल मिर्जा कहते हैं, “शीतला नदी के खुले इलाके में शिकारी पक्षियों को मृत पशु आसानी से दिख जाते। अपना पेट भरने के बाद पक्षी बिजली के खंभों पर बैठते और जब उड़ने के लिए अपने पंख खोलते तो तारों से टकराकर करंट की चपेट में आ जाते।”

 लेकिन जरूरत समाधान की थी। उत्तराखंड वन विभाग, उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल), जिला पंचायत, चर्मकार समुदाय और डब्ल्यूडबल्यूएफ इंडिया के सदस्यों की एक समिति गठित की गई।

सहसपुर में कालसी वन प्रभाग के तत्कालीन डीएफओ (सेवानिवृत्त) केएन भारती कहते हैं, “पक्षियों की मौत की छिटपुट सूचना तो मिलती थी लेकिन जब सेटेलाइट टैग किया हुआ गिद्ध यहां आया तो समस्या की गंभीरता का अंदाजा हुआ और सभी पक्षों ने मिलजुलकर प्रयास शुरू किया”।

वह बताते हैं, “मृत पशुओं के शव चिन्हित जगह की बजाय नदी किनारे आसान रास्ते पर फेंक दिए जाते थे। उन्हें बिजली के खंभों से दूर चिन्हित जगह पर शव फेंकने के लिए जागरुक किया गया ताकि भोजन की तलाश में आए पक्षी एक ही जगह इकट्ठा हों। इसी क्षेत्र में यूपीसीएल ने हाई वोल्टेज़ पावर लाइन को इंसुलेट करने की जिम्मेदारी ली”।

अप्रैल 2025 में यूपीसीएल ने शीतला नदी किनारे गुजर रही 33 केवी पावर लाइन को सुरक्षित बनाने के लिए चिन्हित खंभों के दोनों ओर करीब 500-500 मीटर तक इंसुलेशन कराया। सहसपुर में यूपीसीएल के उपखंड अधिकारी विकास भारती बताते हैं, “यह पावर लाइन रुद्रपुर बिजलीघर तक बिजली पहुंचाती है। पहले जब भी कोई पक्षी तार से टकराकर करंट लगने से मरता था तो हमारी लाइन ट्रिप हो जाती।”

भारती के मुताबिक पक्षियों की मौत के साथ-साथ बिजली विभाग को भी लाखों का नुकसान हो रहा था। वे इसका गणित समझाते हैं, “रुद्रपुर में हमारा 5 मेगावोल्ट-एम्पियर का ट्रांसफॉर्मर है। मान लीजिए किसी समय उस पूरे क्षेत्र का लोड 3 मेगावाट है, और पावर 15 मिनट के लिए बंद हो जाती है, तो एक ट्रिपिंग में करीब 750 यूनिट का नुकसान होता। अगर इसे 7.80 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से जोड़ें तो लगभग 5,500 रुपए का नुकसान एक बार में हो जाता था। रोजाना  8- 10 बार ट्रिपिंग होती थी। महीने और साल के हिसाब से देखें तो यूपीसीएल को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा था।”

भारती कहते हैं कि बिजली के तारों को इंसुलेट करने पर करीब 60 लाख रुपए खर्च हुए, इसके बाद पिछले छह महीनों में ऐसी एक भी ट्रिपिंग नहीं हुई। इससे यूपीसीएल को राहत मिली है और पक्षियों को जीवन।

वहीं, पक्षियों को करंट से  रोजाना ही झुलसते-मरते देखने वाले इरशाद अली भी खुशी जताते हैं, “जब से बिजली विभाग ने तार बदलवाए हैं, करंट लगने से कोई भी पक्षी नहीं मरा। हम भी पशुओं के शवों को एक ही जगह निस्तारित करते हैं।”

डब्ल्यूडब्यूएफ इंडिया के मुताबिक देश में गिद्धों को करंट से बचाने का यह अपनी तरह का पहला ऐसा प्रयास है और इसे उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के साथ अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है, जहां करंट से पक्षियों की मौतें हो रही हैं। 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in