आवरण कथा: क्या कागजों में उग रहे हैं जंगल?

1987 से 2015 तक के दौरान वन आवरण की कुल भूमि में 20-21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है लेकिन इसका कोई उल्लेख नहीं है कि यह वृद्धि देश के वन क्षेत्र के भीतर हुई है या बाहर
आवरण कथा: क्या कागजों में उग रहे हैं जंगल?
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आवरण कथा की पहली कड़ी में आपने पढ़ा - क्या गायब हो गए हैं 2.59 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल  । पढ़ें अगली कड़ी - 

सबसे बुरी खबर की बात नहीं हुई। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 में कुल 2.587 करोड़ हेक्टेयर रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र (राज्य सरकारों के वन विभाग के अधीन वन क्षेत्र) की कहीं बात नहीं है। रिपोर्ट में यह कहीं भी मौजूद नहीं है। इसके कवरेज का विश्लेषण भी रिपोर्ट से नदारद है। ऐसे में सवाल है कि क्या यह भूमि मौजूद भी है? कहीं इस पर अतिक्रमण तो नहीं? और क्या यह भूमि इतनी खराब हो चुकी है कि इसके जंगल की गणना ही नहीं की गई? यह भारत का वन क्षेत्र है। इसकी भूमि वनों के रूप में वर्गीकृत है। गणना से बाहर की गई भूमि पेड़ उगाने के अलावा किसी कार्य में प्रयोग नहीं की जा सकती। क्या इस पर विस्तार से रोशनी नहीं डालनी चाहिए थी? यह हमारे वनों की स्थिति की असली कहानी है। हमें इसे समझना और दुरुस्त करना होगा। मैं इस मसले को समझाती हूं।

दरअसल, रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र और वन आवरण में अंतर है। आईएसएफआर 2021 के अनुसार, देश में रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र 7.753 करोड़ हेक्टेयर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत है। लेकिन कुल वन आवरण 7.138 करोड़ हेक्टेयर है। कोई दलील दे सकता है कि 0.6 करोड़ (60 लाख) हेक्टेयर का यह अंतर महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन यह सच्चाई से परे है। यह अंतर 2.587 करोड़ हेक्टेयर तक बढ़ जाता है। यह अंतर उत्तर प्रदेश के आकार से भी बड़ा है और यहीं से लापता वन की कहानी शुरू होती है।



रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र कानूनी रूप से विभिन्न श्रेणियों में बंटा है, जैसे आरक्षित, संरक्षित और अवर्गित वन (देखें, कुल संख्या)। पिछले तीन दशकों से यह रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र मौटे तौर पर यथावत रहा है। लेकिन वन आवरण वास्तविक क्षेत्र है जहां वन मौजूद हैं। इसे एक हेक्टेयर से अधिक की सभी भूमि के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें 10 प्रतिशत से अधिक वितान घनत्व है। इसमें अति सघन जंगल, मध्यम घने जंगल और खुले जंगल हो सकते हैं। इसके अलावा “स्क्रब” अथवा झाड़ियां हैं। यह वन भूमि है जिसमें वितान घनत्व 10 प्रतिशत से कम है और गैर-वन भूमि है जो उपरोक्त किसी भी वर्ग में शामिल नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि वन विभागों के अधीन कुल रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र 7.753 करोड़ हेक्टेयर में इन विभिन्न श्रेणियों-अति सघन, मध्यम घने और खुले वन व झाड़ियां शामिल होंगी। लेकिन ऐसा है नहीं।

आईएसएफआर 2021 के अनुसार, रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र का केवल 5.166 करोड़ हेक्टेयर (वन विभाग के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र, जिसे वनों के रूप में वर्गीकृत किया गया है) में वन आवरण है। इसका अर्थ है कि हमने केवल 66 प्रतिशत रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र का आकलन किया है। शेष की गणना नहीं की गई है। आईएसएफआर 2021 में शायद गलती से केवल एक बार उल्लेख है कि यह रिकॉर्डेड फॉरेस्ट बिना वन आवरण का है। इस भूमि को “स्क्रब” के रूप में भी वर्गीकृत नहीं किया गया है।

आईएसएफआर 2021 में उल्लेख किया गया है कि लगभग 0.4 करोड़ (40 लाख) हेक्टेयर को स्क्रब के रूप में वर्गीकृत किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र के भीतर है या बाहर। इस तरह मूल्यांकन पूरी तरह से यह बताने से चूक जाता है कि वन विभाग के तहत भूमि की स्थिति क्या है, जो वन कवर में शामिल नहीं है (देखें, कुल संख्या,)। इस लापता 2.587 करोड़ हेक्टेयर वन का आकार बहुत बड़ा है। इसमें देश में वन क्षरण की तस्वीर भी पता चलती है। इसलिए धरातल पर रहने की जरूरत है। हमें वन वृद्धि की जरूरत पर सख्ती अपनानी होगी।

भूमि लेकिन जंगल नहीं?

यदि आप यह समझने के लिए गहराई में उतरते हैं कि ‘लापता’ जंगल कहां हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रमुख वन राज्यों में वन विभाग के तहत भूमि का बड़ा हिस्सा इस सूची में है। वनाच्छादित मध्य प्रदेश में 0.3 करोड़ (30 लाख) हेक्टेयर की कमी है। राज्य में रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र और वन आवरण के बीच का अंतर 32 प्रतिशत के करीब है। झारखंड में यह अंतर 50 प्रतिशत से अधिक है।

अगर यह कहा जाए कि यह अंतर उच्च हिमालय में बर्फ से ढंके क्षेत्रों में गैर जुताई वाली भूमि के कारण है, तब भी लापता वन के बड़े हिस्से और वनों पर यह लागू नहीं होता। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि यह भूमि “स्क्रब” थी, जिसमें बहुत कम या कोई वनस्पति नहीं थी, तो भी इसका लेखा-जोखा होना चाहिए था।

इसके अलावा कुछ मामलों में खासकर उत्तरपूर्वी राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय और नागालैंड में आईएसएफआर 2021 के मुताबिक, राज्य के वन विभाग के अधीन वनों से अधिक वन आवरण रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्रों में है। इन राज्यों में वन मुख्यत: सामुदायिक नियंत्रण में हैं, इसलिए ये तकनीकी रूप से वन रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र से बाहर हैं।



कैसे गायब हुआ 2.587 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र का जंगल

इतनी बड़ी अनियमितता का आईएसएफआर 2021 में कोई स्पष्टीकरण नहीं है, केवल सरसरी तौर पर उल्लेख किया गया है कि यह रिकॉर्डेड फॉरेस्ट बिना वन आवरण का है। इसमें केवल यह कहा गया है कि “अधिकांश रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र में वनस्पति का आवरण है, यद्यपि ये खाली हैं और 10 प्रतिशत से कम घनत्व वाले क्षेत्र हैं।” यह नहीं बताया गया कि इसमें 2.587 करोड़ हेक्टेयर यानी रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा शामिल है।

वन विभाग के अधीन वनों की स्थिति पर यह कमी समझ से परे है। यह तब है, जब भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) को 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दर्ज वनों की डिजिटल सीमाएं हासिल हैं। जहां डिजिटल सीमाएं उपलब्ध नहीं थीं, वहां रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्रों के लिए प्रॉक्सी के रूप में “ग्रीनवॉश” (भारतीय सर्वेक्षण की स्थलाकृतिक शीट में हरे रंग में दिखाया गया क्षेत्र) का उपयोग किया है। इसका मतलब यह होगा कि इस भूमि की स्पष्ट पहचान है और इसकी वर्तमान स्थिति का पता लगाने के लिए भू-सर्वेक्षण के साथ संयुक्त रिमोट सेंसिंग का उपयोग करना होगा।

1987 में प्रकाशित प्रथम “स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट” में किए गए मूल्यांकन में पाया गया है कि पिछले तीन दशकों से राज्य का अभिलिखित वन क्षेत्र स्थिर है और यह कुल भूमि का 23 प्रतिशत है। लेकिन इसमें बदलाव इस मूल्यांकन में आया कि कितना वन आवरण रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र के अंदर और कितना बाहर है।

1987 से 2015 तक के दौरान वन आवरण की कुल भूमि में 20-21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है लेकिन इसका कोई उल्लेख नहीं है कि यह वृद्धि देश के वन क्षेत्र के भीतर हुई है या बाहर। 2015 में इसमें बदलाव आया, जब रिपोर्ट में “रिकॉर्डेड फॉरेस्ट के बाहर वन आवरण” नामक नई श्रेणी जुड़ गई। तब रिकॉर्डेड फॉरेस्ट का आवरण क्षेत्र 15 प्रतिशत कम हो गया और वन आवरण का शेष क्षेत्र बाहर स्थानांतरित कर दिया गया। कुल मात्रा तब भी कुल भूमि के बराबर 21.6 प्रतिशत रही। इसे देखते हुए दलील दी जा सकती है कि यह लापता वन तो हमेशा लापता था। अगर यह वन आवरण कानूनन निर्धारित क्षेत्र के अधीन या बाहर है तो सैटेलाइट और ग्राउंड ट्रुथिंग मूल्यांकन से इसकी पहचान नहीं की जा सकती। इसमें अब सुधार किया गया है। लेकिन यह अब भी इस सवाल का जवाब नहीं देता कि वन भूमि की स्थिति क्या है जो हरित आवरण के उपयोग के लिए निर्दिष्ट है। वन विभाग अपनी इस एक तिहाई जमीन के लिए क्या कर रहा है? और अगर यह “स्क्रब” कहलाने के योग्य भी नहीं है, तो इसकी स्थिति क्या है?

अगर लापता वन क्षेत्र इतना विशाल नहीं होता तो इसे भुलाया जा सकता था। लेकिन लगभग 2.6 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र को नजरअंदाज कर देना संभव नहीं है। यह भूमि है जो अगर उपलब्ध होती तो उसका उपयोग पेड़ उगाने के लिए किया जाना चाहिए था।

अगर एफएसआई द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रिमोट सेंसिंग तकनीक जमीन पर उगे अलग-थलग पेड़ों की गिनती कर सकती है तो यह निश्चित रूप से इस जमीन की स्थिति का आकलन भी कर सकती है। वह पता लगा सकती है कि ये असली हैं या महज कागज पर दर्ज वन।

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