जहरीले प्रदूषक और संक्रमण के मेल से वन्यजीव की आबादी में आई गिरावट: शोध

शोधकर्ताओं ने बताया कि वन्यजीवों के दूषित आवासों के जहरीले पदार्थों और संक्रमण के मेल ने बहुत अधिक संख्या में जानवरों को प्रभावित किया, जिससे वन्यजीव आबादी में गिरावट आई
Flying fox, Photo :  Wikimedia Commons
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एंथ्रोपोजेनिक बदलाव जैसे कि शहरीकरण, खेती में कीटनाशकों का उपयोग, औद्योगीकरण आदि मानवीय गतिविधियों में जहरीले प्रदूषकों का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। इनका वन्यजीवों पर किस तरह प्रभाव पड़ रहा है इसी को लेकर जॉर्जिया विश्वविद्यालय ने एक अध्ययन किया है। अध्ययन में कहा गया है कि वन्यजीवों के प्रदूषकों के संपर्क में आने से संक्रामक रोगों का फैलना प्रभावित हो सकता हैं।

ओडियम स्कूल ऑफ इकोलॉजी में पोस्टडॉक्टोरल सहयोगी सेसिलिया सेंचेज के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने के लिए एक गणितीय मॉडल बनाया है। इस मॉडल की मदद से इस बात का पता लगाया गया है कि कैसे विषाक्त पदार्थ वन्यजीव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और उन प्रभावों से वन्यजीव आबादी और मनुष्यों में बीमारी फैलने का खतरा कैसे बढ़ जाता है।

ओडुम स्कूल और कॉलेज ऑफ वेटरनरी मेडिसिन के रिचर्ड हॉल ने कहा कि संक्रामक घटकों या दूषित पदार्थों के एक साथ संपर्क में आने से वन्यजीव आबादी पर प्रभाव बढ़ सकते हैं। जब हम हाल कि परिदृश्यों को देखते है तो वन्यजीव वास्तव में इनसे फैलने वाले रोगों को बढ़ा सकते हैं। रोग फैलाने वाले वन्यजीवों से यह घरेलू जानवरों और लोगों में फैल सकते हैं।

दुनिया भर में  शहरी, औद्योगिक और कृषि विकास जैसी मानवीय गतिविधियां तेजी से बदल रही हैं। इन गतिविधियों में जहरीले प्रदूषकों का उपयोग बढ़ गया है, जिसमें भारी धातु और कीटनाशक शामिल हैं। मानव द्वारा किए जा रहे बदलाव अक्सर वन्यजीवों को आकर्षित करते हैं जैसे खेतों में काम करते समय पक्षीयों के द्वारा खाना ढूढना, असुरक्षित उर्वरकों का उपयोग जो खेतों से सीधे खाद्य स्रोतों में पहुंच जाते हैं। विषाक्त पदार्थों के समर्पक में न केवल वन्यजीव आते है, बल्कि यह लोगों में, वन्यजीवों में व्याप्त किसी भी बीमारी को फैला सकते हैं।

यह समझने के लिए कि ये सभी कारक किस तरह आपस में काम करते हैं, शोधकर्ताओं ने एक गणितीय मॉडल बनाया जो एक वायरस से संक्रमित फ्लाइंग फॉक्स, एक तरह के चमगादड़ पर आधारित था। ऑस्ट्रेलिया में फल खाने वाले चमगादड़ों की कई प्रजातियां हैं। जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। मानव गतिविधियों के कारण इनके आवासों को नुकसान हुआ है, इस लिए ये शहरी क्षेत्रों में फैल गए हैं। जो बगीचों और पार्कों में लगाए गए फल और फूलों के पेड़ों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। ये चमगादड़ पालतू जानवरों और मनुष्यों में हानिकारक वायरस फैलाने के लिए भी जाने जाते हैं। यह अध्ययन जॉर्जिया विश्वविद्यालय ने किया है।

अपने मॉडल के लिए सेंचेज और उनके सहयोगियों ने दूषित बनाम पहले के निवास के अलग-अलग अनुपात के साथ परिदृश्यों की एक श्रृंखला को देखा। उन्होंने पाया कि सभी मामलों में विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से वन्यजीवों की जीवन और उनके इधर-उधर घूमने दोनों में कमी आई है, इन पदार्थों का जानवरों और रोग फैलाने वाले वायरसों पर बहुत अलग प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए उन्होंने इसके फैलने के लिए तीन परिदृश्यों का पता लगाया। पहले में विषाक्त पदार्थों ने परजीवी को मारने जैसे तंत्र के माध्यम से रोगाणुओं के फैलने को कम कर दिया था। दूसरे में विषैले रोगाणुओं के फैलने में वृद्धि हुई, इसने रोगी के प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर दिया था। अंतिम परिदृश्य ने माना कि विषाक्त पदार्थों का रोग फैलाने पर कोई प्रभाव नहीं था।

प्रत्येक परिदृश्य के लिए उन्होंने 50 हजार जानवरों की आबादी के साथ शुरुआत की, जिनमें से 100 संक्रमित थे और इस मॉडल का उपयोग 50 वर्षों के बराबर किया गया। उन्होंने तब परिणामी वन्यजीव आबादी, संक्रमण का स्तर और मनुष्यों में फैलाने के खतरे के बारे में जानकारी इकट्ठा की।

यह एक अप्रत्याशित खोज रही जब वन्यजीवों के रहने का स्थान थोड़ा कम दूषित था, तो पूरी आबादी पहले जैसी थी और यहां तक की उनकी संख्या में बढ़ोतरी भी हुई। सेंचेज ने बताया कि इस स्थिति में दूषित आवास रोगाणुओं के लिए एक जाल के रूप में कार्य कर सकता है। बीमार जानवर जो उन स्थानों पर चले जाते हैं, वे दूषित और संक्रमण दोनों के प्रभाव के कारण वहां मर सकते हैं।

सेंचेज ने कहा हमने पाया कि अगर जहरीले अथवा दूषित निवास स्थान उनके इधर-उधर जाने की क्षमता को कम करके उन्हीं क्षेत्रों में जानवरों को रहने में मदद करते हैं, जिसके कारण बीमार पशु पुराने निवास स्थान पर नहीं लौटते है, इस तरह वहां रहने वाली पूरी आबादी में संक्रमण फैलने में कमी आ सकती है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि वन्यजीवों के अधिक दूषित आवासों के जहरीले पदार्थों और संक्रमण के मेल ने बहुत अधिक संख्या में जानवरों को प्रभावित किया, जिससे वन्यजीव आबादी में गिरावट आई। दूषित आवास के प्रतिशत में वृद्धि होने से इनके दूसरी जगहों पर फैलने के खतरे को बढ़ाया है, जो लगभग आधे परिदृश्य के दूषित होने पर यह लगातार बढ़ता रहा।  

हॉल ने कहा जब वन्यजीव ऐसे क्षेत्रों में आते हैं, जहां बहुत सारे घरेलू जानवर और मनुष्य होते हैं, तब प्रजातियों के एक दूसरे में रोगों को फैलाने की क्षमता बढ़ जाती है। ऐसे क्षेत्रों में सुधार किया जा सकता है जो विषाक्त अथवा दूषित हों। इसलिए यदि हम रोगों के फैलने के खतरों को कम करना चाहते हैं और वन्यजीवों पर इसका बुरे प्रभाव को कम करना चाहते हैं, तो यह वास्तव में इन प्रजातियों के लिए पुराने आवासों को बहाल करने के महत्व को बल देता है।

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