
महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में एक टाइगर कॉरिडोर के भीतर 80.77 हेक्टेयर वन भूमि पर कोयले का खनन किया जाएगा। भारत की शीर्ष वन्यजीव संस्था ने इस परियोजना को शर्तों के साथ मंजूरी दी है।
नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति ने 26 जून 2025 को अपनी 84वीं बैठक में इस प्रस्ताव को कई शर्तों के साथ मंजूरी दी, जिनमें वन्यजीव प्रबंधन योजना का कार्यान्वयन शामिल है।
यह परियोजना वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के लिए दुर्गापुर ओपनकास्ट माइन के रूप में प्रस्तावित है। यह क्षेत्र ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व, कन्हरगांव वन्यजीव अभयारण्य और टिपेश्वर वन्यजीव अभयारण्य को जोड़ने वाले कॉरिडोर में आता है। इसे बाघों की आवाजाही और प्रवास के लिए उपयोग किया जाता है।
इस प्रस्ताव पर पहली बार 12 मार्च 2025 को एनबीडब्ल्यूएल की 82वीं बैठक में चर्चा हुई थी। इसके बाद 7 मई को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के सचिव की अध्यक्षता में एक समीक्षा बैठक हुई, जिसमें परियोजना के पारिस्थितिक प्रभावों का आकलन किया गया।
बैठक के मिनट्स के अनुसार, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) को राज्य सरकार को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार टाइगर कॉरिडोर की पहचान के बारे में सूचित करने का निर्देश दिया गया था। अंतिम निर्णय से पहले स्थल निरीक्षण का भी आदेश दिया गया।
बैठक में यह बताया गया कि एनटीसीए ने “लीस्ट-कॉस्ट” (कम से कम लागत वाले) टाइगर कॉरिडोर की पहचान की है। वहीं महाराष्ट्र सरकार ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत अपने टाइगर कंजर्वेशन प्लान में टेलीमेट्री डेटा के आधार पर पहचाने गए कॉरिडोर को महत्व दिया है। वन महानिदेशक और विशेष सचिव ने कहा कि यह मामला केवल महाराष्ट्र राज्य तक ही सीमित है।
एनटीसीए के सदस्य सचिव ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने अपने टाइगर कंजर्वेशन प्लान में टेलीमेट्री से ट्रैक किए गए कॉरिडोर को टाइगर कॉरिडोर माना है।
एनबीडब्ल्यूएल के सदस्य एचएस सिंह ने सुझाव दिया कि राज्य में वन्यजीव मामलों में अंतिम निर्णय राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन के पास होता है, इसलिए प्रस्ताव की फिर से समीक्षा होनी चाहिए। एक अन्य सदस्य रमण सुकुमार ने कहा कि यह जरूरी है कि जमीनी स्तर पर जांच की जाए कि बाघ वास्तव में कौन-से रास्तों का उपयोग करते हैं।
उन्होंने कहा, “डिजिटल टूल्स एक अलग मार्ग दिखा सकते हैं, लेकिन जमीनी साक्ष्य और स्थानीय लोगों से बातचीत के जरिए अलग जानकारी मिल सकती है। दोनों तरीकों के बीच संतुलन जरूरी है।”
इन चिंताओं के बावजूद मंत्रालय के सचिव ने कहा कि चूंकि यह क्षेत्र “पहले से ही टूटा हुआ” है, इसलिए इस खनन परियोजना को आगे बढ़ाया जा सकता है। साथ ही एनटीसीए को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया गया कि केवल उनके द्वारा पहचाने गए “लीस्ट कॉस्ट पाथवेज” को ही टाइगर कॉरिडोर माना जाए।
चर्चा के बाद समिति ने कई शर्तों के साथ इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसमें पारिस्थितिक प्रभावों को कम करने के लिए एक समर्पित वन्यजीव प्रबंधन योजना को लागू करना शामिल है। 18.07 रुपए करोड़ की यह योजना पहले ही तैयार की जा चुकी है, जिसे भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून द्वारा किए गए अध्ययन के आधार पर बनाया गया है।
अन्य शर्तों में खनन क्षेत्रों के पास दुर्गापुर वन क्षेत्र की सीमाओं पर बाड़ लगाना, ताकि वन्यजीवों की आवाजाही सीमित हो सके और प्रोसोपिस जैसे आक्रामक पौधों को पांच वर्षों के भीतर हटाना शामिल है। इसके लिए विस्तृत योजना वन विभाग के अधिकारियों की सलाह से बनाई जाएगी और इसे चंद्रपुर के मुख्य वन संरक्षक द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।