वनों की कटाई से जलवायु में होने वाला बदलाव बचे हुए वनों को नुकसान पहुंचाता है

वनों की कटाई का अन्य जगहों पर उगने वाले जंगलों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इसके कारण क्षेत्र के हवा के तापमान और वर्षा पर असर पड़ता हैं।
वनों की कटाई से जलवायु में होने वाला बदलाव बचे हुए वनों को नुकसान पहुंचाता है
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पिछली कई शताब्दियों में उष्णकटिबंधीय इलाकों में कृषि भूमि के विस्तार के चलते कई महाद्वीपों में जंगलों को भारी नुकसान पहुंचा है। वनों को काटे जाने से प्रत्यक्ष कार्बन उत्सर्जन रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। इस सबके कारण जलवायु में बदलाव आया जिसने वहां के शेष वनों पर भी असर डाला है।  

अब एक अंतरराष्ट्रीय शोध टीम ने जलवायु मॉडल और उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग करते हुए पहली बार इस बात का खुलासा किया है कि, कैसे उष्णकटिबंधीय जंगलों की रक्षा से जलवायु संबंधी फायदे मिल सकते हैं। ये जंगल आस-पास के क्षेत्रों में कार्बन भंडारण को बढ़ाते हैं। यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन के वैज्ञानिकों की अगुवाई में किया गया है।

कई जलवायु वैज्ञानिक कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग धरती की जलवायु की नकल करने के लिए करते हैं। जैसा कि आज है और यह भविष्य में कैसा होगा  क्योंकि मानवजनित ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार जारी है।

इस तरह के मॉडल तापमान, वर्षा और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में होने वाले बदलाव का पता लगा सकते हैं। इसके लिए वन बायोमास की प्रतिक्रिया, जलवायु प्रणाली के सभी भागों के सटीक माप पर भरोसा करते हैं। जैसे कि सूरज की रोशनी जलवायु को कितना प्रभावित करती है और कितने गर्म करती है।

बदलने वाले हिस्सों की सूची लंबी है और एक हिस्सा जो अब तक बिना माप के रह गया है, वह है अमेजन और कांगो जैसे उष्णकटिबंधीय वर्षावन। जहां वनों की कटाई से क्षेत्रीय जलवायु पर इसके प्रभाव के कारण यह अतिरिक्त वनों के नुकसान के लिए जिम्मेवार है।

पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में यूसीआई पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता यू ली ने कहा कि हमने उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई से जलवायु प्रभाव को मापने के लिए पृथ्वी प्रणाली मॉडल का उपयोग किया। फिर, हमने इस जानकारी का उपयोग वन बायोमास के उपग्रह अवलोकनों के साथ किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि आस-पास के जंगल इन बदलावों का जवाब कैसे दे रहे हैं।

पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के यूसीआई प्रोफेसर जिम रैंडरसन ने कहा की यह शोध दिखाता है कि वनों की कटाई से बचने से जलवायु प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप आस-पास के क्षेत्रों में कार्बन भंडारण संबंधी फायदे मिलते हैं।

उन्होंने बताया कि अमेजन के वनों की कटाई के एक नए हिस्से के लिए, क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप पूरे अमेजन बेसिन में कुल बायोमास का अतिरिक्त 5.1 प्रतिशत अधिक नुकसान हुआ। कांगो में वनों को काटे जाने के जलवायु प्रभावों से अतिरिक्त बायोमास नुकसान लगभग 3.8 फीसदी है। उष्णकटिबंधीय वन अपने भूमिगत बायोमास में लगभग 200 पेंटाग्राम कार्बन जमा करते हैं। 2010 से वनों की कटाई हर साल उस कार्बन का लगभग 1 पेंटाग्राम हटा रही है। यहां बताते चलें कि एक पेंटाग्राम 1 ट्रिलियन किलोग्राम के बराबर होता है।

अब तक जलवायु मॉडलों ने आंकड़ों की कमी के कारण, अपने जलवायु सिमुलेशन में पेड़ों के नष्ट होने की दर पर विचार नहीं किया है। लेकिन उपग्रह के आंकड़ों को बदलते जलवायु के साथ जोड़कर, उन्होंने इस बारे में जानकारी हासिल की कि वनस्पति में संग्रहीत कार्बन जलवायु परिवर्तन के प्रति कितनी संवेदनशील है जो पेड़ के नष्ट होने और आग लगने के परिणामस्वरूप होता है।

पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के यूसीआई प्रोफेसर और  सह-अध्ययनकर्ता पाउलो ब्रैंडो ने कहा वनों की कटाई का अन्य जगहों पर उगने वाले जंगलों पर प्रभाव पड़ता है। क्योंकि इसके कारण क्षेत्र के हवा के तापमान और वर्षा पर असर पड़ता हैं। हालांकि वनों की कटाई के प्रभावों को अलग करना बहुत मुश्किल है।

टीम ने अमेजन और कांगो में वनों की कटाई से होने वाले जलवायु परिवर्तन से क्षेत्रीय कार्बन नुकसान के नए अनुमान विकसित किए। अनुमान के आधार पर उन्होंने ऐसी जानकारी प्रदान की जो वैज्ञानिकों को अपने मॉडल को ठीक करने में मदद करेगी।

रैंडरसन ने कहा यह हमें बेहतर जलवायु समाधान तैयार करने में मदद कर सकता है। इस गतिविधि के माध्यम से वास्तव में कितने बायोमास का नुकसान हो रहा है, यह जानकर, उन्होंने बताया कि नीति निर्माताओं को इस बात के लिए मजबूत तर्क दिए जा सकते हैं कि वनों की कटाई पर अंकुश लगाना क्यों जरुरी है, क्योंकि इस तरह बेहतर प्रभाव का वर्णन किया जा सकता है। यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।

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