केंद्र ने की 62 नए हाथी गलियारों की पहचान, देश में अब तक 150 की हो चुकी है पुष्टि

देश के पूर्वी मध्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा 52 गलियारे हैं। वहीं राज्यों के लिहाज से पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या सबसे ज्यादा 26 है
Elephant corridors can be described as a strip of land that enables elephant movement between two or more friendly habitats. Photo: iStock
Elephant corridors can be described as a strip of land that enables elephant movement between two or more friendly habitats. Photo: iStock
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केंद्र सरकार द्वारा एलीफैंट कॉरिडोर यानी हाथी गलियारों पर जारी एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि देश के 15 राज्यों में जहां हाथी प्राकृतिक परिवेश में रह रहे हैं वहां हाथी गलियारों में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि ये गलियारे उन रास्तों की तरह हैं जो हाथियों को दो या दो से अधिक अनुकूल आवासों के बीच आवाजाही की इजाजत देते हैं।

इनसे जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो 2010 में भारत सरकार ने 88 गलियारों की पहचान की थी। वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 150 पर पहुंच गई है। बता दें की देश में हाथियों की आबादी 30,000 से अधिक है। सरकार ने राज्य सरकारों से मिली जानकारी के आधार पर इन गलियारों की पहचान की है और फिर जमीनी स्तर पर जांच के बाद इनकी पुष्टि की है। 

रिपोर्ट के मुताबिक यदि राज्यों के लिहाज से देखें तो पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक हाथी गलियारे हैं, जिनकी कुल संख्या 26 है। साथ ही देश में पहचाने गए कुल हाथी गलियारों का 17 फीसदी हैं। इसी तरह देश के पूर्वी मध्य क्षेत्र में सबसे अधिक 52 गलियारे हैं, जो कुल गलियारों का करीब 35 फीसदी है।

इसके बाद उत्तर पूर्व क्षेत्र आता है, जो 48 गलियारों के साथ देश में कुल गलियारों में 32 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है। वहीं दक्षिणी भारत में 32 या 21 फीसदी गलियारे हैं, जबकि उत्तरी भारत में सबसे कम 18 गलियारे हैं, जो देश में कुल गलियारों का महज 12 फीसदी हैं।

40 फीसदी तक बढ़ गया है गलियारों का उपयोग

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि अधिकांश गलियारे राज्यों की सीमा के भीतर ही हैं। साथ ही इन गलियारों का उपयोग 40 फीसदी तक बढ़ गया है। हालांकि यह भी पता चला है कि करीब 19 फीसदी कोर्रिडोर्स यानी कुल 29 के उपयोग में कमी देखी गई है। इनमें से 10 गलियारे क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और उन्हें फिर से दुरुस्त करने की आवश्यकता है, जिससे इन रास्तों पर हाथियों की आवाजाही दोबारा बहाल हो सके।

इन गलियारों के उपयोग में आती कमी का कारण यह है कि हाथियों के आवास सिकुड़ते और छिटकते जा रहे हैं। साथ ही यह नष्ट भी हो रहे हैं। हाथी गलियारों में वृद्धि यह भी दर्शाती है कि हाथियों ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र, छत्तीसगढ़ के आसपास और कर्नाटक की सीमा से लगे दक्षिणी महाराष्ट्र में अपने आवास क्षेत्रों का विस्तार किया है। इसी तरह मध्य प्रदेश में खासकर संजय टाइगर रिजर्व और बांधवगढ़ में भी हाथियों की उपस्थिति बढ़ी है। इन क्षेत्रों के अलावा हाथियों ने उत्तरी आंध्र प्रदेश में भी अपनी सीमाओं का विस्तार किया है, जहां वे ओडिशा से आवाजाही करते हैं।

रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि इन राज्यों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे उन स्थानों को संरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करें जहां हाथी रहते हैं और उनके लिए सर्वोत्तम मार्गों का पता लगाने के लिए आंकड़ों का उपयोग करें। इसके अतिरिक्त, पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में जहां हाथियों की आबादी अपेक्षाकृत कम हैं, वहां उनकी आवाजाही और गतिविधियों के बारे में पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं है।

गौरतलब है कि ओडिशा में हाथी गलियारों को अधिसूचित करने के कोर्ट के आदेश का पालन न करने पर एनजीटी ने नाराजगी व्यक्त की थी। इसके लिए कोर्ट ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक और ओडिशा के मुख्य वन्यजीव वार्डन को फटकार भी लगाई थी।

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