ईबर्ड के मुताबिक तमिलनाडु में नीलगिरी के मोयार बांध में लाल सिर वाले गिद्धों की संख्या एक है तथा अनैकट्टी एफआरएच, में सफेद पूंछ वाले गिद्धों की संख्या पांच, नीलगिरी के शोलूर रोड में एक भारतीय गिद्ध देखा गया। आईयूसीएन ने इन प्रजातियों को गंभीर खतरे के रूप में जगह दी है।
वहीं दक्षिण भारत में गिद्धों की सटीक संख्या की जानकारी के लिए इनकी गणना की जा रही है, गणना वाले राज्यों में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक शामिल हैं।
तमिलनाडु वन विभाग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, गणना 30 टीमों द्वारा आयोजित की जा रही है, जिसमें प्रत्येक टीम में पांच सदस्य हैं, जिनमें वन विभाग के दो, वन्यजीव जीव विज्ञान का अध्ययन करने वाले दो छात्र और एक स्वयंसेवक शामिल हैं।
इस गणना का मकसद, दक्षिण भारतीय राज्यों में पहाड़ियों की चोटी पर चढ़ना और उड़ रहे गिद्धों का सटीक अध्ययन करना है। इन राज्यों के पहाड़ियों को गिद्धों की गणना के लिए इसलिए चुना गया है क्योंकि वहां से मैदानी इलाकों को स्पष्ट तरीके से देखा जा सकता है, जो गिद्धों की संख्या के साथ-साथ विभिन्न प्रजातियों की गणना करने में मदद करेगा।
तमिलनाडु वन विभाग के अनुसार, टीम ने इजिप्टियन या मिस्र के गिद्धों के अलावा लाल सिर वाले, लंबी चोंच वाले और सफेद पूंछ वाले गिद्धों की पहचान की है। ऊटी में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान प्रस्तुत एक शोध पत्र के अनुसार 2018 में तमिलनाडु की तुलना में केरल और कर्नाटक में गिद्धों की संख्या कम पाई जाने की बात सामने आई।
अध्ययन से यह भी पता चला है कि गिद्धों ने अपने घोंसले के स्थानों को मदुमलाई टाइगर रिजर्व (एमटीआर) के घने जंगलों वाले इलाकों में स्थानांतरित कर दिया है, लेकिन घोंसले की संख्या में कोई बड़ी कमी नहीं आई है।
एमटीआर के एक स्वयंसेवक शिवकुमार ने बताया, हमने पाया कि गिद्धों ने अपना घोंसला सिरियूर से गुडालपट्टी में स्थानांतरित कर लिया है, लेकिन ऐसा लगता है कि संख्या में कोई भारी गिरावट नहीं आई है।
गिद्ध एक प्रहरी प्रजाति के रूप में कार्य करते हैं, जो ऐसे जानवर हैं जो निवास स्थान के खतरों का अधिक सामना कर रहे हैं। गिद्ध किसी भी विषाक्त पदार्थ का सेवन कर सकते हैं जो मरे हुए जानवरों या शव में हो सकता है। यदि ये विषाक्त पदार्थ विशेष रूप से खतरनाक होते हैं, तो इसे खाने वाले गिद्ध प्रजनन करने, बीमार होने या इनकी जान भी जा सकती है। इस तरह, गिद्धों में गिरावट पर्यावरण में प्रदूषकों को उजागर कर सकती है जो मनुष्यों सहित कई अन्य प्रजातियों के लिए हानिकारक हो सकती है।
उदाहरण के लिए, पालतू पशुओं में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली दवा डाईक्लोफेनाक गिद्धों को भी मार सकती है। डिक्लोफेनाक जलीय जंतुओं, पौधों और स्तनधारियों के लिए भी एक गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। कुछ दक्षिण एशियाई देशों में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था क्योंकि संरक्षणवादियों ने जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाया था कि गिद्धों की आबादी कम होने का मुख्य कारण डिक्लोफेनाक था।
इसको आगे बढ़ाते हुए, वन विभाग द्वारा इस बात की जानकारी दी गई है कि, वह राज्य भर के किसानों के लिए एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने की भी योजना बना रहा है ताकि उन्हें गायों, बकरियों और कुत्तों सहित घरेलू पशुओं के लिए कुछ पशु चिकित्सा दवाओं के गलत उपयोग के बारे में जागरूक किया जा सके। क्योंकि गिद्ध इन घरेलू जानवरों के शवों को खाएंगे, तो उन्हें खतरानाक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
सर्वेक्षण की अगुवाई कर रहे तमिलनाडु वन विभाग ने गिद्धों की संख्या को लेकर तीन सप्ताह में परिणामों की घोषणा करने की बात कही है।