क्या गिद्धों की संख्या बढ़ाने में मददगार साबित होगा गोरखपुर का गिद्ध केंद्र?

उत्तर प्रदेश में 1990 की तुलना में इस क्षेत्र में केवल 5 प्रतिशत गिद्ध रह गए हैं
गोरखपुर में गिद्धों के संरक्षण के लिए एक केंद्र बनाया जा रहा है। फोटो: सतेंद्र सार्थक
गोरखपुर में गिद्धों के संरक्षण के लिए एक केंद्र बनाया जा रहा है। फोटो: सतेंद्र सार्थक
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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर वन प्रभाग के भारीवैसी में वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र का निर्माण किया जा रहा है। यह राज गिद्ध (लाल सिर वाले गिद्धों) के संरक्षण एवं प्रजनन के लिए स्थापित दुनिया का पहला केन्द्र होगा।

केन्द्र के लिए बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी और प्रदेश सरकार के बीच 15 वर्ष का समझौता हुआ है। योजना के लिए 15 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत है। प्रथम किश्त के रूप में 80 लाख और दूसरे किश्त के रूप में 1.05 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं।

सितंबर में पहले शनिवार को अंतराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 3 सितंबर को शनिवार है। इसी दिन जटायु गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उद्घाटन कर सकते हैं।

जटायु (गिद्ध) संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र का शिलान्यास 7 अक्टूबर 2020 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही किया था, कार्यक्रम में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री दारा सिंह चौहान सहित स्थानीय जनप्रतिनिधि उपस्थित थे।

देश में 9 गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र हैं, जिनमें से 3 का संचालन प्रत्यक्ष तौर पर बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी के द्वारा किया जाता है। इन केन्द्रों में गिद्धों की 3 प्रजातियों व्हाइट बैक्ड, लॉन्ग बिल्ड, स्लेंडर बिल्ड का संरक्षण किया जा रहा है।

गोरखपुर वन प्रभाग के कैम्पियरगंज में स्थापित गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र में रेड हेडेड का संरक्षण किया जाएगा। निर्माण कार्य अभी प्रारंभिक चरण में है। ढाँचागत निर्माण के बाद तकनीकी पहलू पर काम किया जाना है।

जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र में अक्टूबर में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट या उत्तर प्रदेश के किसी अन्य हिस्से से राज गिद्ध के एक जोड़े को केन्द्र में लाया जाएगा। उनकी देखभाल में यदि कोई समस्या नहीं आती है तो धीरे-धीरे उनकी संख्या को बढ़ाया जाएगा।

गोरखपुर के डीएफओ ने बताया कि “अगले 5 वर्षों तक केन्द्र में 25 गिद्ध (12 नर और 13 मादा) रखने की योजना है। अगले 10 वर्षों में गिद्धों की संख्या दोगुना (50) करने के बाद इन्हें फिर खुले पर्यावरण में छोड़ दिया जाएगा।”

गिद्ध काफी धीमी गति से प्रजनन करते हैं। यह एक वर्ष में औसतन एक ही अंडा देते हैं जिसके जीवित रहने की संभावना 60 प्रतिशत ही रहती है।

केन्द्र के साइंटिफिक ऑफिसर डॉक्टर दुर्गेश नंदन के बताया “मेरी नियुक्ति हो गई है, लेकिन निर्माण कार्य अधूरा होने के कारण अभी मैं चिड़ियाघर में अपनी सेवायें दे रहा हूं। राज गिद्ध बेहद दुर्लभ प्रजाति के हैं और प्रजनन क्रिया के अलावा यह अकेले ही रहना पसंद करते हैं। जंगल के पास होने के कारण संरक्षण केन्द्र के लिए यह जगह ज़्यादा उपयुक्त है। दुनिया में राज गिद्धों के लिए संरक्षण और प्रजनन के लिए स्थापित होने वाला यह पहला केन्द्र है।”

उत्तर प्रदेश वन विभाग के अनुसार 2012 में उत्तर प्रदेश में गिद्धों की संख्या को लेकर गणना की गई थी। तब प्रदेश में 2070 गिद्ध पाये गये थे, 2017 तक इनकी संख्या घटकर 1,350 रह गई थी। गोरखपुर डीएफ़ओ और योजना के नोडल अधिकारी विकास यादव ने बताया, “2018-19 में बाम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ने महाराजगंज, सिद्धार्थनगर और गोरखपुर में गिद्धों को लेकर एक सर्वे किया था। सर्वे में सामने आया कि 1990 की तुलना में इस क्षेत्र में केवल 5 प्रतिशत गिद्ध रह गये हैं।”

गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र भारीवैसी में कार्य योजना के अनुसार व्यस्क गिद्धों के प्रजनन के लिए पहले वर्ष 2 ब्रीडिंग एवियरी, दो होल्डिंग या डिस्प्ले एवियरी, अवयस्क गिद्धों को रखने के लिए 2 नर्सरी एवियरी, एक फ़ूड सेक्शन, गिद्धों के इलाज के लिए दो हॉस्पिटल एवियरी और उपचार पूर्ण होने के बाद गिद्धों को रिकवरी के लिए रिकवरी एवियरी का निर्माण करवाया जा रहा है। 

बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी की ओर से संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र के तकनीकी विशेषज्ञ डॉक्टर रोहन ने बताया "इसके अलावा केन्द्र से 5 किलोमीटर दूर क्वारेंटाइन सेंटर बनाया जाएगा जिसमें बाद में लाये गये गिद्धों को 45 दिनों के लिए क्वारेंटीन किया जाएगा। सभी एवियरी गिद्धों की सुविधा को केन्द्र में तैयार करवाये जा रहे हैं।”

2 हेक्टेयर क्षेत्रफल में निर्मित हो रहे इस केन्द्र के संचालन के लिए 8 अधिकारियों/ कर्मचारियों को नियुक्त किया जा चुका है। इसमें एक साइंटिफिक ऑफ़िसर, एक कंप्यूटर ऑपरेटर, एक ड्राइवर, एक बॉयोलॉजिस्ट, 2 वल्चर कीपर और 2 चौकीदार शामिल हैं।

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर के गिद्धों के विशेषज्ञ रिंकिता गुरव ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह एक अच्छा प्रयास है। इस तरह के प्रयास पहले भी हुए हैं, जो सफल भी रहे हैं, लेकिन इसके लिए एक प्रतिबद्धता और प्रबंधन की जरूरत है, जो लंबे समय तक चलती है। 

वहीं एक पक्षी विज्ञानी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि यह लक्ष्य महत्वाकांक्षी है और उसे हासिल भी किया जा सकता है कि दस साल में गिद्धों की संख्या 50 तक पहुंचाने के लिए जोड़ों की संख्या बढ़ानी चाहिए। 

गुरव ने गिद्धों के प्रजनन चक्र के बारे में बताती हैं, “गिद्ध धीमी गति से प्रजनन करने वाले पक्षी हैं। वे युवा होते हैं और पांच साल बाद ही प्रजनन शुरू करते हैं। मादा गिद्ध प्रजनन के मौसम में प्रति वर्ष केवल एक अंडा देती हैं। प्रजनन का मौसम अक्टूबर से अप्रैल तक छह महीने तक रहता है।”

गुरव ने कहा कि गिद्ध एकांगी पक्षी होते, जो जीवन के लिए जोड़ी बनाते हैं। यह उनके प्रजनन को प्रभावित करता है। प्रजनन काल के दौरान अनुकूल खाद्य आपूर्ति और जलवायु परिस्थितियाँ भी प्रजनन की सफलता को निर्धारित करती हैं। यही वजह है कि कैप्टिव (बंद जगह में) प्रजनन के लिए प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। 

https://youtu.be/qcB4K64dB44

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