क्या बिना संघर्ष के नहीं रह सकते बाघ और मनुष्य?

भारत जैसे घनी आबादी वाले देश इनका बिना संघर्ष के साथ रहना कितना संभव है? दोनों को हानि पहुचाये बिना कैसे धरती के संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है
क्या बिना संघर्ष के नहीं रह सकते बाघ और मनुष्य?
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बिहार के पश्चिमी चम्पारण के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बाघ के हमलों की घटनाएं अमूमन नहीं होती हैं, लेकिन हाल ही में बाघ टी -104 ने 10 लोगों की जान ली। यह बाघ आदमखोर हो गया था और पशुओं के होते हुए भी इंसानों का शिकार करने लगा था। इस कारण बिहार के वन विभाग को इसे गोली मार कर वहां के लोगों को बचाना पड़ा।  

इसी तरह 2018 में बाघिन टी-1 अवनि  को  13 लोगों की हत्या के बाद गोली मरी गई थी।  भारत में 2009 से अब तक 17 आदमखोर बाघों को मानव सुरक्षा को देखते हुआ मारा जा चुका है ।  

10 अक्टूबर को एक आदमखोर तेंदुए को भी श्रीनगर की ऊरी में मारा गया। अनुमान लगाया जा रहा है कि इसी तेंदुए ने हाल-फिलहाल में 2 बच्चों को मारा था और रविवार को एक महिला पर भी हमला किया था।  

2019 में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने अपने एसओपी में से 'आदमखोर ' शब्द हटा कर 'मानव जीवन के लिए खतरनाक' से बदल दिया। 

सवाल यह है कि आखिर ऐसी घटनाओं की वजह क्या है? क्या बाघ और मनुष्य बिना संघर्ष के नहीं रह सकते?

भारत जैसे घनी आबादी वाले देश इनका बिना संघर्ष के साथ रहना कितना संभव है? दोनों को नुकसान पहुंचाए बिना कैसे धरती के संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है।  

भारत में हर साल मानव-पशु संघर्ष के कारण सैकड़ों लोग और जानवर मारे जाते हैं। पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, 2018-2020 के बीच बाघों के साथ संघर्ष में 125 मनुष्यों की मृत्यु हुई। 

भारत में बाघों की आबादी लगभग 2,967 है । हमारे देश की आबादी भी लगभग 138 करोड़ लोगों की है। मानव आबादी के मामले में हम दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं। ऐसे में यह मुमकिन नहीं है कि मानव और पशु के बीच कभी कोई टकराव न हो। इस स्थिति में दोनों को ही नुकसान पहुंचता है, लेकिन क्या इसका कोई उपाए है? 

मेटास्ट्रिंग फाउंडेशन के सीईओ हुए बायोडायवर्सिटी कोलैबोरेटिव के कोऑर्डिनेटर रवि चेल्लम का कहना है कि हमारे जैसे घनी आबादी वाले देश में, जहा बाघों की संख्या भी विश्व में सर्वाधिक है, वह हर साल हजारों ऐसे मामले आ सकते हैं क्योंकि ज़्यादातर बाघ संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं। मगर ऐसा इसलिए नहीं होते क्योंकि बाध भी इंसानी आबादी वाले क्षेत्रों में नहीं जाना चाहते।  

"'संघर्ष' की परिसभाषा भी हर व्यक्ति के लिए अलग होती है।  किसी के लिए मात्र बाघ देख जाना ही संघर्ष है,वहीं जो लोग जंगल के आस पास रहते हैं उन के लिए संघर्ष का मतलब होता है कि बाघ के कारण उन के पालतू जानवर जैसे भेद-बकरिओं और गायों का शुक्र होना, या इंसानों पर हमला।," वह कहते हैं।   

"जब यह साबित हो जाता है की बाघ या बाघिन आदमखोर हो गए हैं वह इंसानो की जान को आगे रख उस जानवर वो वहां से किसी भी हाल मैं हटाया जाना चाहिए। हर समय यह संभव नहीं होता की उस जानवर को ढेर सारे संसाधन और वन विभाग के कर्मचारियों को तैनात कर कई दिन तक पकड़ने का प्रयास किआ जाये जब वह जानवर हर दिन नया हमला कर रहा हो। ऐसे में उसे वहां से हटाने का जो कानूनी तरीका हो, वह करना चाहिये ," वह आगे कहते हैं ।   

कई बार जब एक बाघ जैसा  वन्यजीव इंसान पर हमला करता है तो आस पास के लोग भी बदले की भावना से गुस्से में आकर उसे मारने की कोशिश करते हैं जिसकी वजह से कई विलुप्तप्राय जानवरों की आबादी और कम हो जाती है। इसी पर काम करते हुए भारत सरकार ने मुआवज़ा भी तय किया है। 

वर्तमान में मानव-वन्यजीव संघर्ष में यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती या, या वह इस कदर घायल हो जाता है कि वह विकलांग हो जाता है तो उसे पांच लाख  रुपए का मुआवज़ा दिया जाता है।  गंभीर चोट के लिए 2 लाख रुपए दिए जाते हैं और मामूली चोटों के इलाज के लिए 25,000 रुपये 

बिहार जैसे मामलों में, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट राज्य के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन को सेक्शन 11 के तहत यह अधिकार देता है कि यदि सूची 1 में आने वाला बाघ या तेंदुआ आदमखोर हो जाता है, या इतना अक्षम या रोगग्रस्त कि ठीक होने से परे हो जाता है, तो वह उसे मरने का लिखित आदेश दे सकते हैं। पर यह आदेश तभी दिया जा सकता है जब उस जानवर को पकड़ने के सारे उपाए विफल रहे हों। 

पर क्या जानवरों को आदमखोर घोषित कर मार डालना सही है? 

अलोक हिसारवाला गुप्ता, गोवा के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनिमल राइट्स के जानवरो के अधिकारों पर काम करने वाला वकील, कहते हैं , "हम जानवर को जानवर होने की सजा देते हैं उसे आदमखोर घोषित कर के। बाघ अमूमन इंसानों के करीब जाना पसंद नहीं करते हैं, पर यदि खाने की कमी या जंगलों के अतिक्रमण के कारण यदि बाघ किसी इंसान को मार डालता है तो इस का मतलब हमेशा यह नहीं होता की वह आदमखोर है। साथ ही यह पता लगाने का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है की एक कोई विशेष बाघ है जो आदमखोर हो गया हो , हम हमेशा अनुमान ही लगते हैं। हमें मरने की जगह मनवा-बाघ संघर्ष का स्थाई निवारण सोचने की ज़रुरत है।  

वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड फॉर नेचर का मानना है की मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए, हमें भविष्य में अपने सह-अस्तित्व को बेहतर बनाने के लिए लोगों और वन्यजीवों के बीच संबंधों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।

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