कैग ने पकड़ी राजस्थान के वन एवं पर्यावरण विभाग की खामियां

वन्यजीव एवं पर्यावरण संबंधी अपराधों में राजस्थान का नंबर दूसरा है, बावजूद इसके सरकार गंभीर नहीं है
Photo: Supriya singh
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भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक संस्था यानी कैग की रिपोर्ट में राजस्थान के वन्यजीव संरक्षण एवं वनों से संबंधित कई खामियां सामने आई हैं। कैग ने राजस्थान के पर्यावरण विभाग के 2013-14 से 2017-18 के बीच के दौरान किए गए कार्यों की ऑडिट किया है।

कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान वन्यजीव एवं पर्यावरण संबंधित अपराधों के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2018 के अनुसार तमिलनाडू (14536) के बाद राजस्थान में सबसे ज्यादा (9784) अपराध पर्यावरण से संबंधित हुए हैं। 2016 में यह 1381, 2017 में 10,122 थे। देशभर में होने वाले पर्यावरण संबंधित अपराधों में 27.8% राजस्थान में होते हैं। 2019-20 में राजस्थान में कुल 9751 वन संबंधी अपराध हुए हैं।

ऐसे अपराधों को रोकने के लिए नवंबर 2014 में भारत सरकार ने सभी राज्यों को वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल यूनिट्स की स्थापना की सलाह दी थी। ताकि पर्यावरण और वन्य जीवों से संबंधित अपराधों की जांच में जल्दी लाई जा सके और अपराधों पर लगाम लगे। वन विभाग ने सितंबर 2018 में राज्य सरकार को इंटर एजेंसी कॉर्डिनेशन कमेटी और वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल यूनिट्स के लिए प्रपोजल दिए। जो अभी तक पेंडिंग है।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि वाइल्ड लाइफ अपराधों को रोकने के लिए तुरंत राज्य स्तरीय इंटर एजेंसी कॉर्डिनेटर कमेटी और वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल यूनिट्स की स्थापना की जानी चाहिए।

खत्म हो रही वन्य प्रजातियां

कैग रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 2013 से 2017 के बीच 14 वन्य प्रजातियों की संख्या 3.97% से 96.07% तक घटी है। वहीं, पांच प्रजातियों की संख्या 12.18% से 58.56% तक बढ़ी है। कैग ने जंगली जानवरों की संख्या घटने के कारण वन विभाग से मांगे, लेकिन विभाग की तरफ से कोई जवाब अभी तक नहीं दिया गया है।इससे स्पष्ट है कि वन विभाग जंगली जानवरों पर मंडराते अस्तित्व के खतरे के प्रति गंभीर नहीं है।

वन भूमि पर अतिक्रमण और अवैध खनन

2013-14 से 2017-18 तक वन विभाग की 358.25 वर्ग किमी भूमि पर अतिक्रमण है। विभाग के पास 36,975 केस वन भूमि पर अतिक्रमण के दर्ज हैं। वहीं, 81.91 वर्ग किमी वन भूमि पर कब्जे के 6369 मामले मार्च 2018 तक पेंडिंग है। रिपोर्ट के अनुसार 2013 से 2018 तक वन भूमि पर अवैध खनन के 15,883 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें से 8004 मामले जुर्माने के बाद निपटाए गए। वन विभाग की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 में वन भूमि पर खनन के 1030 मामले दर्ज हुए हैं।

मार्च 2018 तक 81.91 स्क्वायर किमी भूमि पर अतिक्रमण के 6,369 केस, 7879 केस अवैध खनन और 4446 केस चारागाह की जमीन पर अतिक्रमण के हैं जो वन विभाग के पास पेंडिंग हैं।

राज्य सरकार के पास वर्किंग प्लान नहीं

कैग की रिपोर्ट में राजस्थान सरकार पर अगले 10 साल के लिए वर्किंग प्लान कोई काम नहीं करने की बात कही गई है। भारत सरकार द्वारा बनाए गए इन प्लान के लिए राज्य सरकार ने बजट ही नहीं दिया। कैग की ओर से जांचे गए 14 फोरेस्ट डिवीजन में से सिर्फ एक ने माना कि उन्होंने वर्किंग प्लान लागू किए हैं। बजट की कमी के कारण कई ऑफिसों में काम नहीं हो पा रहे। वर्किंग प्लास में बताए गए कामों को पूरा करने के लिए विभाग के पास पैसा ही नहीं है।

मोर को बचाने के लिए प्लान नहीं

कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय पक्षी मोर की मौत की कई खबरों को बावजूद उन्हें बचाने के लिए वन विभाग ने कोई एक्शन प्लान नहीं बनाया है। मार्च 2014 में मोरों की मौत पर एक संगठन ने वन विभाग में शिकायत की। इसके बाद विभाग ने संबंधित 11 डिविजनों से मोरों की मौत पर रिपोर्ट मांगी। इनमें से किसी भी डिविजन ने मोरों की मौत पर कोई रिपोर्ट नहीं भेजी। चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ने भी कोई फॉलोअप नहीं किया। जुलाई 2016 में राज्य सरकार ने एक एक्शन प्लान बनाया कि जयपुर जिले में मोरों के प्राकृतिक को चिन्हित किया जाएगा और वन विभाग उसकी सुरक्षा करेगा। ऑडिट में सामने आया कि जयपुर जिले में इस तरह की कोई भी जगह ना तो चिन्हित की गई है और ना ही वन विभाग की ओर से उसे मोरों के लिए सुरक्षित जगह घोषित किया है। इतना ही नहीं मोरों को बचाने के लिए अलग से कोई फंड की व्यवस्था नहीं है।

वनों में आग की घटनाएं

2013-17 के बीच प्रदेश के जंगलों में आग लगने की 544 घटनाएं हुईं। पिछले चार सालों में 2017 में सबसे ज्यादा घटनाएं सामने आईं। कैग द्वारा जांचे गए 20 डिवीजनों में 183 घटनाएं हुई और इससे 18.88 लाख रुपए की वन संपत्ति का नुकसान हुआ। वन विभाग के 11 डिविजनों में आग संबंधित क्षेत्रों की पहचान ही नहीं की गई है। 15 डिविजनों में आग पर काबू पाने के लिए उपकरण ही नहीं हैं और 19 डिविजनों में फायर वॉचमैन की पोस्टिंग ही नहीं की गई है।

विकास कार्यों के लिए वन भूमि ली, पैसा दिया नहीं

साल 2013-18 के बीच वन विभाग ने 51.52 स्क्वायर किमी वन भूमि गैर वन भूमि में तब्दील किया। बीकानेर और गंगानगर में भी हाइवे निर्माण के लिए वन विभाग ने सड़क निर्माण विभाग को 0.14 स्क्वायर किमी भूमि दी। स्वीकृति लेते समय सड़क बनाने वाली कंपनी ने हाइवे के दोनों तरफ पेड़ लगाने, मीडियन बनाने और उसके 18 साल तक मेंटिनेंस की गारंटी ली। इसके लिए कंपनी को 26.52 करोड़ रुपए का भुगतान करना था। लेकिन ऑडिट में सामने आया कि मार्च 2018 तक कंपनी ने यह राशि चुकाई ही नहीं है।

गैर वन भूमि पर कब्जा

अप्रैल 1999 से 2018 तक वन विभाग को 5974.54 वर्ग किमी गैर-वन भूमि मिली, लेकिन बीते 19 साल में विभाग सिर्फ 1218.71 (20.40%) भूमि पर ही कब्जा कर पाया है। इसके अलावा बजट की कमी के कारण वन भूमि चिन्हित करने के लिए लगाए जाने वाले पिलर स्थापित नहीं किए जा सके।

इको सेंसिटिव जोन घोषित नहीं

साल 2011 में केन्द्र सरकार ने इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने की गाइड लाइन निकाली थीं, लेकिन राजस्थान में सात साल बाद भी अधूरे कागजों के कारण इको सेंसिटिव जोन के कुल 25 में से 21 प्रपोजल नोटिफाई ही नहीं हो पाए। इसके कारण विभाग द्वारा तय किए गए टारगेट पूरे नहीं हो सके। इको सेंसिटिव जोन भी सरकार ने नोटिफाई नहीं किए हैं। विभाग ने अधूरे प्रपोजल भेजे।

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