प्रकृति नहीं, इंसान की देन है बॉयलर चिकन

हमने बॉयलर चिकन के जीन को बदलकर उनके चयापचय को नियंत्रित करने वाले रिसेप्टर को म्यूटेट कर दिया है
Photo: Flickr
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क्या आपको पता है कि आपके पसंदीदा बॉयलर चिकन के शरीर का आकार, हड्डियों की बनावट और आनुवांशिकी उसके पूर्वज मुर्गों या जंगली मुर्गों से मेल नहीं खाते? यह जानने के बाद आपका अगला सवाल हो सकता है, इसका मुझ पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? ब्रिटेन में लीसेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस सवाल पर वर्षों तक गहराई से शोध किया। दिसंबर, 2018 में जब उन्होंने अपने निष्कर्षों के बारे में लिखा, तो दुनिया एक ऐसी वास्तविकता से रूबरू हुई जिसकी आशंका हमें लंबे समय से थी। उनका निष्कर्ष था, “बॉयलर चिकन पूरी तरह से मानव निर्मित है।” शोधकर्ताओं में से एक एलिसन फोस्टर ने कहा, “मुर्गों को पालतू बनाए जाने के बाद से उनकी कई अजीब और सुंदर नस्लें आई हैं लेकिन बॉयलर शायद इनका सबसे चरम रूप है।”

यह अध्ययन बॉयलर चिकन की शारीरिक संरचना का पता लगाने के लिए नहीं था। इसके पीछे की मुख्य वजह एंथ्रोपोसीन नामक एक नए मानव युग के आगमन की पड़ताल करना था। हमारी धरती पर मौजूदा वक्त में 2,300 करोड़ बॉयलर चिकन मानवों का भोजन बनने के लिए तैयार हैं। इस तरह ये चिकन भूमि पर पाए जाने वाले कशेरुकी यानी रीढ़ की हड्डी वाले जीवों की सबसे बड़ी प्रजाति है।

शोधकर्ता ऐसी चीज की तलाश कर रहे थे, जिसमें मानव हस्तक्षेप के भारी संकेत हों। इसका उपयोग वैज्ञानिक रूप से यह इंगित करने के लिए किया जाएगा कि मनुष्यों ने पृथ्वी पर जीवन और पर्यावरण को कैसे प्रभावित किया है। यह बदले में नए मानव युग की घोषणा करने के लिए एक संकेतक के रूप में उपयोग किया जाएगा। शोधकर्ताओं ने कहा, “आधुनिक चिकन अब अपने पूर्वजों से इतना बदल गया है कि इसकी विशिष्ट हड्डियां निस्संदेह उस समय के जीवाश्म संकेत बन जाएंगी जब मनुष्य ने ग्रह पर शासन किया था।”

रोमन काल के मुर्गों के साथ बॉयलर चिकन की हड्डियों की तुलना करना इस शोध में शामिल था। शोधकर्ताओं ने दोनों मुर्गों की हड्डियों में शायद ही कोई समानता पाई। बॉयलर चिकन अपने मध्यकालीन रिश्तेदार की तुलना में दो गुना बड़ा है। इसका कंकाल तो बड़ा होता ही है, साथ ही हड्डियों की रासायनिक बनावट भी अलग होती है। इसके अलावा इनमें आनुवंशिक विविधता की भी काफी कमी है। बॉयलर चिकन के वैज्ञानिक मूल्यांकन से पता चला कि उनका आहार भी लगभग समान होता है। ये सब सिर्फ एक उद्देश्य से पाले जाते हैं और वह है मानव उपभोग के लिए मांस उपलब्ध कराना।

शोधकर्ताओं का निष्कर्ष था, “आधुनिक चिकन के वर्तमान रूप के लिए केवल और केवल मानव हस्तक्षेप जिम्मेदार है। हमने उनके जीन को बदलकर उनके चयापचय को नियंत्रित करने वाले रिसेप्टर (ग्राही) को म्यूटेट (परिवर्तित होना) कर दिया है जिसके कारण वे हमेशा भूखे रहते हैं। इस कारण वे ज्यादा से ज्यादा खाते हैं और उनके आकार में वृद्धि होती है। इतना ही नहीं, उनका पूरा जीवन चक्र मानव प्रौद्योगिकी द्वारा नियंत्रित होता है। उदाहरण के लिए, मुर्गियां जिस कारखाने में अपने अंडों से निकलती हैं, वहां का तापमान और आर्द्रता कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं। पहले ही दिन से उन्हें बिजली की रोशनी में रखा जाता है ताकि उनके भोजन के घंटे बढ़ाए जा सकें। उन्हें मारा भी मशीनों की ही मदद से जाता है। इससे एक घंटे में हजारों मुर्गों का मांस तैयार हो जाता है।”

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