संतोष पाठक
अगले महीने स्वाधीनता दिवस की वर्षगांठ 15 अगस्त को उत्तर प्रदेश सरकार एक बार फिर पौधरोपण का विश्व रिकॉर्ड बनाने की तैयारी में है। लेकिन, इस बार सरकार में शामिल भाजपा के विधायक जवाहर लाल राजपूत ने बुधवार को विधानसभा में इस पौधरोपण की पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल उठाए हैं। यह पहली बार है, जब सत्ता का ही कोई प्रतिनिधि सरकारी सिस्टम को भरी विधानसभा में चुनौती दे रहा था। गरौठा विधायक के सवालों पर वन मंत्री दारा सिंह को जवाब देना पड़ा। लेकिन, वह अपने जवाब में पौधरोपण का वर्ल्ड रिकॉर्ड सरकार की सालाना रस्म अदायगी जैसे सिस्टम को ठीक करने में कंजूसी करते दिखे हैं।
मसलन, सरकार पौधारोपण करने के बाद उसे संरिक्षित रखने में हुई खामियों को मान तो रही है, लेकिन इससे सबक लेकर सुधार को कोई ठोस रुख अख्तिहार करने को तैयार नहीं है। दरअसल, देशभर में सरकार पौधरोपण का लक्ष्य देकर बड़ा अभियान चलाती है। उत्तर प्रदेश में बीते दस साल से पौधरोपण को लेकर बड़े अभियान चलाए गए। कुछ सालों से तो एक साथ करोड़ों पौधे रोपकर गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने और फिर अपने ही उस रिकॉर्ड को तोडक़र दूसरा रिकॉर्ड बनाने की जद्दोजहद दिखाई दे रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार इस साल 15 अगस्त को 22 करोड़ पौधे एक साथ लगाएगी। सभी जिलाधिकारियों को इसका लक्ष्य भी दे दिया गया है। लेकिन सरकार पिछले रोपे गए पौधों की भौतिक रिपोर्ट को देखना ही नहीं चाहती है कि वह पौधे जीवित बचे हैं या नहीं। सपा सरकार में अखिलेश यादव ने बुन्देलखण्ड के हमीरपुर स्थित मौदहा बांध पर पौधरोपण कर रिकॉर्ड बनाने की शुरूआत की थी। उस समय उन्होंने आठ घंटे में 10.15 लाख पौध रोपकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। इसके बाद अगस्त 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच घंटे में 5 करोड़ पौधे रोपकर दोबारा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर गिनीज बुक में नाम दर्ज करा लिया।
अब सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार 22 करोड़ पौधे रोपकर उसी रिकॉर्ड को तोडऩे जा रही है। लेकिन सरकार यह नहीं जानना चाहती है कि पिछले रोपे गए पौधों की वर्तमान हालत क्या है। वह जीवित हैं या मृत। सरकार को पिछला रिकॉर्ड तोडऩा है इसलिए उसका सिस्टम भी आंकड़ों की बाजीगरी में जुट गया है। पौधारोपण के इन्हीं कागजी आंकड़ों पर गरौठा विधानसभा के विधायक जवाहर लाल राजपूत ने विधानसभा में वन मंत्री दारासिंह के जवाब पर असंतुष्टि जताते हुए पौधरोपण और वृक्षों को स्थानांतरित नहीं कर पाने पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि पौधरोपण का विश्व रिकॉर्ड बनाने के लिए करोड़ों रुपए एक दिन में फूंक देते हैं, लेकिन रोपे गए पौधों को संरक्षित रखने और उनकी गिनती करने पर कोई ध्यान ही नहीं है। यही हाल वृक्ष स्थानांतरण का भी है।
विकास के नाम पर हरे वृक्षों के कटान पर विधायक जवाहर राजपूत कहते हैं, 'जिस देश के वैज्ञानिक चांद पर जाकर झंडा गाड़ रहे हैं उस देश में हम हरे पेड़ को उखाडक़र दूसरी जगह सुरक्षित नहीं गाड़ पा रहे हैं। दूसरे देश यह आसानी से कर रहे। हम ऐसे ही पेड़ कटवाते रहे तो इसके परिणाम भयानक होंगे। जलवायु परिवर्तन इन्ही लापरवाहियों का ही तो नतीजा है। बुन्देलखण्ड वैसे ही पानी को प्यासा है और यहां के वृक्ष कटान और पहाड़ों को खत्म किए जाने से यहां बारिश होना बंद हो गई है।'
विधायक ने विधानसभा में पौधरोपण पर भी गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकार हर साल पौधरोपण का लक्ष्य देकर वल्र्ड रिकॉर्ड बनाती है, लेकिन जो पौध लगाई जाती है वह लगाए गए स्थानों पर मिलती ही नहीं है। उचित रखरखाव की व्यवस्था के चलते पौधरोपण अभियान करोड़ों खर्च करने के बाद भी विफल हो रहे हैं और इसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं होता। उन्होंने सदन में पूछा कि पौध लगाने से क्या फायदा है जब उसके सुरक्षित रखे जाने का कोई प्लान नहीं है। भाजपा विधायक ने कहा कि 'पहले कितना पौधरोपण किया गया और वर्तमान में कितने पौधे मौके पर जीवित बचे हैं । पेड़ और पहाड़ दोनों नष्ट किए जा रहे हैं। इसे रोकना होगा। वर्ना, वल्र्ड रिकार्ड बनाने से पर्यावरण और प्रकृति को बचाने में हम कभी सफल नहीं होंगे। '
सदन में उठे सवालों पर उत्तर प्रदेश के वन मंत्री दारा सिंह का कहना था, हम जो पौधरोपण कर रहे हैं उनकी निगरानी जिओ टैगिंग से कर रहे हैं। इस पर और विस्तृत सुधार के लिए सरकार भी प्रयास कर रही है। मंत्री ने कहा कि क्लाइमेट चेंज से पूरी दुनिया चिंतित है। सरकार भी है। इस चिंता का हल भी पौधरोपण ही है।
बांदा के सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर दीक्षित द्वारा सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना के मुताबिक पिछले दस साल में 3 सौ करोड़ पौधे अकेले बुन्देलखण्ड के सात जिलों में लगाई गई है. प्रत्येक जिले में कुल जमीन का 33 प्रतिशत रकवा ही वन क्षेत्र के लिए है, लेकिन यदि पौधरोपण के आंकड़ों को देखें तो पूरा बुन्देलखण्ड ही अब तक जंगल में तब्दील हो जाना चाहिए। वन विभाग के अधिकारी पौधरोपण पर होने वाले खर्च पर गोलमोल जवाब रखते हैं, लेकिन एक पौधरोपण पर 30 से35 रुपये की अनुमानित लागत की पुष्टि जरूर करते हैं. आशीष सागर कहते हैं, आरटीआई में एक पौध पर 35 रुपये तक का अनुमानित खर्च बताया गया है. मसलन पिछली अखिलेश यादव सरकार के 5 करोड़ के रिकॉर्ड पर ही 135 करोड़ खर्च हो चुके हैं. अब यदि इस बार BJP सरकार भी उत्तर प्रदेश में 22 करोड़ पौधरोपण पर इतना ही खर्च करेगी तो सरकार के करीब 8 सौ करोड़ इस पर खर्च हो जाएंगे. बेशक सरकार अपना रिकॉर्ड तोड़ने इतना पैसा फूंकने को उतावली हो ,लेकिन ये पौधे कितने दिन जिंदा रहेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017 के अनुसार उत्तर प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का मात्र 6.09 प्रतिशत वनावरण तथा 3.09 प्रतिशत क्षेत्र वृक्षावरण कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 9.18 के मात्र प्रतिशत क्षेत्र (22,121 वर्ग कि॰मी॰ भू-भाग) में ही वनावरण एवं वृक्षाच्छादन है। अधिक से अधिक वृक्षारोपण कराये जाने के लक्ष्य की प्राप्ति एवं प्रदेश के वनावरण एवं वृक्षाच्छादन में वृद्धि हेतु अंतर्विभागीय समन्वय के रूप में कार्य किया जाना होगा।