दुनियाभर में ड्रैगनफ्लाई और डैमसेलफ्लाई की 16 फीसदी प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह जानकारी इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है जिसमें वैश्विक स्तर पर इन शानदार रंगीन कीड़ों की सभी 6,016 प्रजातियों का आंकलन किया गया है।
गौरतलब है कि यह पहला मौका है जब संकट ग्रस्त प्रजातियों की पहचान के लिए आईयूसीएन द्वारा जारी रेड लिस्ट में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी प्रजातियों की कुल संख्या 40,084 पर पहुंच गई है। इस रेड लिस्ट में 142,577 प्रजातियां शामिल हैं।
देखा जाए तो इस नाजुक प्रजाति का होने वाला पतन दलदलों, झीलों और नदियों को होने वाले व्यापक नुकसान को भी दर्शाता है, जिसकी वजह से इन प्रजातियों पर संकट मंडराने लगा है। यह प्रजातियां इन्हीं वेटलैंडस में पनपती हैं। आईयूसीएन के अनुसार इसके लिए कहीं हद तक बिना पर्यावरण को ध्यान में रखे की जा रही कृषि और बेतरतीब तरीके से किया जा रहा शहरीकरण जिम्मेवार है।
ड्रैगनफ्लाइज को वैश्विक स्तर पर हो रहे नुकसान का खुलासा करते हुए आईयूसीएन के महानिदेशक ब्रूनो ओबेर्ले ने अपने एक बयान में कहा है कि इन प्रजातियों को हो रहा नुकसान दुनिया भर में इन प्रजातियों को पनाह देने वाली आर्द्रभूमियों की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। उनके अनुसार वैश्विक स्तर पर ये पारिस्थितिकी तंत्र जंगलों की तुलना में तीन गुना ज्यादा तेजी से गायब हो रहे हैं।
क्या विलुप्त हो रही हैं यह खूबसूरत और नाजुक प्रजातियां
उनके अनुसार भले ही यह दलदली भूमियां और वेटलैंडस देखने में मनुष्य के लिए फायदेमंद न लगें, लेकिन वास्तव में यह हमें आवश्यक सेवाएं प्रदान करती हैं। यह हमें साफ पानी और भोजन देने के साथ ही दुनिया की ज्ञात दस में से एक प्रजाति को आवास प्रदान करती हैं।
दुनिया के 1.21 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले यह वेटलैंडस कितने महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इनसे हमें हर वर्ष हर वर्ष करीब 2,758 लाख करोड़ रुपए (37.8 ट्रिलियन डॉलर) का लाभ होता है। यह लाभ बाढ़ की रोकथाम, खाद्य उत्पादन, जल गुणवत्ता में हो रहे सुधार और कार्बन भंडारण के रूप में होता है, जबकि इकोसिस्टम के रूप में यह कितने फायदेमंद हैं इनकी गणना करना आसान नहीं है।
आईयूसीएन के अनुसार दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में सभी प्रजातियों में से करीब एक चौथाई खतरे में हैं। जिसके लिए मुख्य रूप से फसलों और ताड़ के पेड़ों के लिए आद्रभूमियों और जंगलों का किया जा रहा सफाया जिम्मेवार है।
वहीं मध्य और दक्षिण अमेरिका में इन ड्रैगनफ्लाइज में आ रही गिरावट के लिए प्रमुख रूप से आवासीय और व्यावसायिक निर्माण के लिए जंगलों की कटाई जिम्मेवार है। देखा जाए तो कीटनाशकों का बढ़ता प्रयोग, जलवायु परिवर्तन और अन्य प्रदूषक दुनिया भर में प्रजातियों के लिए बढ़ता हुआ खतरा हैं, यह उत्तरी अमेरिका और यूरोप में ड्रैगनफ्लाइज के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।
इस बारे में आईयूसीएन एसएससी ड्रैगनफ्लाई विशेषज्ञ समूह की सह-अध्यक्ष डॉ वियोला क्लॉसनिट्जर ने जानकारी दी है कि यह ड्रैगनफ्लाइज मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति के अत्यधिक संवेदनशील संकेतक हैं। साथ ही यह वैश्विक मूल्यांकन इनकी गिरावट को प्रगट करता है। उनके अनुसार इन खूबसूरत कीड़ों के संरक्षण के लिए यह जरुरी है कि सरकारें, कृषि और उद्योग विकास सम्बन्धी परियोजनाओं में इन आद्रभूमियों के पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण पर भी विचार करें।