दूर-दराज के क्षेत्रों में भी इंसानों से सुरक्षित नहीं जैव विविधता, जानिए क्या है वजह

शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन और वैश्विक पर्यावरण में आते बदलावों के चलते दुनिया में इंसानों की पहुंच से दूर होने के बावजूद भी ऐसा कोई स्थान नहीं है, जो जैव विविधता के लिए पूरी तरह सुरक्षित
दूर-दराज के क्षेत्रों में भी इंसानों से सुरक्षित नहीं जैव विविधता, जानिए क्या है वजह
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इंसानों की पहुंच से दूर दुनिया के दूर-दराज के इलाकों को जैव विविधता के गढ़ के रूप में जाना जाता है, लेकिन देखा जाए तो यह पूरी तस्वीर नहीं है। इसे समझने के लिए वैश्विक स्तर पर शोधकर्ताओं ने मछलियों पर बढ़ते जोखिम पर एक मानचित्र तैयार किया है। यह मानचित्र दर्शाता है कि मनुष्यों की पहुंच से दूर होने के बावजूद दुनिया में ऐसा कोई स्थान नहीं है, जो जैव विविधता के लिए पूरी तरह सुरक्षित हो।

इसे समझने के लिए अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने मछलियों की 9,000 से ज्यादा प्रजातियों के वितरण और पारिस्थितिक लक्षणों का एक विशाल डेटासेट तैयार किया है। अपने इस शोध में उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकों का भी उपयोग किया है, जिसकी मदद से उन्होंने दुनियाभर में रीफ्स के इलाकों में प्रवाल और मछलियों एवं मछलियों के शिकार और शिकारियों के बीच की आपसी प्रतिक्रिया का चित्रण करने वाले हजारों नेटवर्क भी तैयार किए हैं।

साथ ही उन्होंने यह भी पता लगाया है कि किन क्षेत्रों में मछलियां किस हद तक मूंगों पर निर्भर हैं। इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जियोवानी स्ट्रोना का कहना है कि वैश्विक स्तर पर आता बदलाव प्राकृतिक समुदायों कैसे प्रभावित कर रहा है, इसे समझने के लिए जैविक अंतःक्रियाओं से उभरने वाली व्यापक जटिलता को भी ध्यान में रखना जरुरी है। साथ ही जैवविविधता में नाटकीय रूप से आती गिरावट को कैसे रोका जाए यह इस सन्दर्भ में प्रभावी रणनीतियों की पहचान में भी मददगार हो सकता है। 

प्रवाल को होते नुकसान से खतरे में हैं मछलियों की 40 फीसदी प्रजातियां

इस विश्लेषण ने पुष्टि की है कि दुनिया के सभी प्रवाल भित्ति क्षेत्र में जिस तरह से मूंगे को नुकसान पहुंच रहा है वो औसतन मछलियों की 40 फीसदी प्रजातियों को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। इससे पहले के शोध में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है।

शोधकर्ताओं को यह भी पता चला है कि मछली और मूंगे इंसानों से जितना दूर होते हैं उनके बीच की आपसी निर्भरता उतनी ज्यादा मजबूत होती जाती है। इसका यह भी मतलब है कि सुदूर क्षेत्रों में पाई जाने वाली मछलियां, प्रवाल भित्तियों की मृत्यु दर के व्यापक प्रभाव के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील हो सकती हैं।

अब शोधकर्ताओं के सामने दूसरा सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि क्या प्रत्यक्ष रूप से मानव गतिविधियों से दूर होने का जो फायदा मछलियों को मिला था उसका असर क्या इन प्रवाल भित्तियों की मृत्युदर से पैदा होने वाले जोखिम की भरपाई कर सकता है?

शोधकर्ताओं ने जोखिम का मूल्यांकन करने के लिए एक नए फ्रेमवर्क का निर्माण किया है जोकि हर तरह के इकोसिस्टम पर लागू होता है। इस बारे में शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता मार कैबेजा ने जानकारी दी है कि यह ढांचा मानव के स्थानीय प्रभावों जैसे अत्यधिक मछली पकड़ना और प्रदूषण के साथ-साथ वैश्विक प्रभावों जैसे जलवायु और पर्यावरण में आता बदलाव के कारण पारिस्थितिकी पर पड़ते प्रभाव और उससे उत्पन्न होने वाले जोखिम का साथ में अध्ययन कर सकता है। 

फ्रेमवर्क से पता चला है कि यदि पारिस्थितिक निर्भरता को ध्यान में रखते हुए देखें तो इंसान से दूरी का जो फायदा मछलियों को मिला है, वो प्रवाल भित्तियों पर मंडराते खतरे के कारण पूरी तरह खत्म हो सकता है।

जियोवानी स्ट्रोना के अनुसार स्थानीय तौर पर इंसानों और वैश्विक परिवर्तन के कारण मछलियों पर मंडराते जोखिम के जो हॉटस्पॉट हैं वो लगभग पूरी तरह से मछलियों और प्रवाल भित्तियों की आपसी निर्भरता पर मंडराते जोखिम सम्बन्धी हॉटस्पॉट के समान ही हैं। शोधकर्ताओं ने मछलियों पर मंडराते जोखिम का एक वैश्विक मानचित्र भी तैयार किया है जो दर्शाता है कि मनुष्यों से दूरी के बावजूद भी मछलियों के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है।

मार कैबेजा के अनुसार इस निष्कर्ष की वैधता और प्रासंगिकता मूंगे और मछली से कहीं आगे तक जा सकती है। यह एक ऐसी दुनिया को दर्शाता है जहां जिन दूर-दराज के इलाकों को हम जैवविविधता के लिए सुरक्षित समझते हैं, संभव है कि वो ऐसे हो जहां उनपर सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा हो। 

यह शोध हेलसिंकी विश्वविद्यालय से जुड़े जियोवानी स्ट्रोना के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के दल द्वारा किया गया है, जोकि जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है। 

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