मशहूर सर्प वैज्ञानिक रोमुलस व्हिटकर(स्नेक मैन) की पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ सांइस नाम के जर्नल में 2011 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष जून से सितंबर के बीच सर्पदंश से 45,900 से 50,900 लोगों की मौत हो जाती है। वहीं जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ फिजीशियन ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती है। मरने वाले की संख्या लगभग 50,000 हैं। जिसमें उत्तर प्रदेश पहले, आंध्र प्रदेश दूसरे और बिहार तीसरे नंबर पर आता हैं।
सर्पदंश जागरुकता के लिए काम करने वाली संगठन 'जीवन जागृति सोसाइटी' से 3 साल से जुड़े रितेश झा बताते हैं कि, "वन्यप्राणी सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 2 (36) के अनुसार जंगली जानवर का अर्थ उस हर जानवर से है, जो इस अधिनियम की अनुसूची 1 से 4 में शामिल हैं। इसमें सांप भी शामिल हैं। साथ ही प्रावधान यह भी है कि किसी भी जंगली जानवर के आघात से होने वाली मौत पर सरकार द्वारा तय राशि मुआवजे के रूप में मिलना चाहिए। इसी को देखते हुए बिहार सरकार के द्वारा मार्च 2020 में सांप काटने से मौत पर 5 लाख मुआवजे का प्रावधान का शुरुआत किया गया था, हालांकि बिहार में इससे पहले आपदा प्रबंधन विभाग के द्वारा बाढ़ के दौरान सर्पदंश का शिकार होने वाले व्यक्तियों को मुआवजा देने का प्रावधान था।"
"बिहार की तरह ही उत्तर प्रदेश में 4 लाख मुआवजे का प्रावधान है। वहीं झारखंड में ढाई लाख रुपए दिया जाता है। यह राशि मुख्य रूप से वन विभाग और आपदा विभाग के द्वारा दी जाती है। हालांकि जिस अधिनियम 1972 के तहत मुआवजा का प्रावधान है, उसी अधिनियम के तहत सांप संरक्षित वन्यजीव है और इन्हें अधिकतम सुरक्षा प्राप्त है। मतलब सांपों को मारना व कैद में रखना अपराध है। इसके बावजूद भारत के अधिकांश क्षेत्रों में सांपों को लोग देखते ही मार देते हैं।"
बिहार में सांप काटने से किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपये देने का प्रावधान है। मार्च 2020 में भाजपा विधायक संजय सरावगी के द्वारा जब बिहार विधानसभा के बजट सत्र में सांप काटने से मौत पर सरकारी मुआवजे का मुद्दा उठाया गया। तब बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने जवाब देते हुए कहा था कि पांच साल से किसी व्यक्ति ने इसके लिए दावा नहीं किया है।
बिहार के सुपौल जिला की मरौना गांव कोसी तटबंध के भीतर बसा हुआ है। जहां आए दिन सर्पदंश की घटना होती रहती है। गांव के 53 वर्षीय सुबोध मंडल के मुताबिक मरौना पंचायत में पिछले साल 5 व्यक्तियों की मृत्यु हुई हैं। जिसमें अभी तक किसी भी व्यक्ति को सर्पदंश के लिए सरकारी योजना के तहत कोई भी मदद नहीं मिली है।
मरौना उत्तर पंचायत के कुशमौल वार्ड 6 में 11 सितंबर 2020 को सांप के काटने से महेंद्र सदा की पुत्री रंजू कुमारी (12) और उसकी भांजी दुर्गा कुमारी (8) मौत हो गई थी। मुआवजे के लिए उनसे सरकारी बाबू फार्म भरवाए थे। महेंद्र बताते हैं कि लगभग दो साल बाद भी अब तक कोई मुआवजा नहीं मिला।
मोतिहारी जिला स्थित सर्पदंश निवारण सेवा सदन के डॉक्टर पंकज कुमार बताते हैं कि, "बिहार में 95% से ज्यादा लोगों को पता भी नहीं होगा कि सांप के काटने पर सरकार कोई मुआवजा राशि देती है। सरकार इसका व्यापक प्रचार भी नहीं करती। मुआवजा तब ही दिया जाता है, जब पोस्टमार्टर रिपोर्ट में लिखा हो कि मौत का कारण सर्पदंश है, लेकिन प्रशासन की ओर से पोस्टमार्टम के लिए दबाव नहीं बनाया जाता है।
लोग भी पोस्टमार्टम कराने के लिए तैयार नहीं होते। पंकज बताते है कि बिहार में गंगा किनारे वाले क्षेत्र में हिन्दू धर्म मानने वाले में सर्पदंश से हुई मृत्यु के शव को जलाया भी नहीं जाता है। उसे गंगा में बहा दिया जाता है। पोस्टमार्टम तो बहुत दूर की बात है। ऐसे में लोगों को जब जागरूक किया जाएगा कि सर्पदंश से मृत्यु होने पर मुआवजा मिलता है, तब ही लोग पोस्टमार्टम के लिए तैयार होंगे।