उत्तर प्रदेश के एकमात्र नेशनल पार्क दुधवा में आपसी संघर्ष के दौरान एक युवा गैंडे की मौत हो गई। भीमसेन नाम के इस गैंडे की उम्र 15 वर्ष थी। भीमसेन की मौत से गैंडा पुनर्वास योजना को झटका लगा है। पिछले छह वर्ष में अलग-अलग कारणों से यह पांचवें गैंडे की मौत है।
शुक्रवार 22 फरवरी की शाम सोनारीपुर रेंज के स्टाफ ने राईनो एरिया फेस-1 के सोलर फेन्स के पास एक गैंडे का शव पड़ा देखा। नर गैंडे के शव पर कई गंभीर चोट के निशान थे।
हालांकि उसके सभी अंग और सींग सुरक्षित पाए गए। सोनारीपुर रेंज के स्टाफ ने दुधवा के उपनिदेशक को इसकी सूचना दी। 5 डॉक्टरों की टीम ने शनिवार को गैंडे का पोस्टमार्टम किया। गैंडे के शरीर पर 3 सेंटीमीटर से लेकर 35.5 सेंटीमीटर तक लंबे और 1 सेंटीमीटर से 14 सेंटीमीटर गहरे कुल 21 चोट के निशान पाए गए।
पोस्टमार्टम के प्रारंभिक निष्कर्ष के अनुसार, मृतक नर गैंडे की मौत आपसी संघर्ष के कारण हुई थी। संघर्ष में उस का निचला जबड़ा भी टूट गया था।
1984 में टाइगर रिजर्व में गैंडों के पुनर्वास के महा अभियान को शुरू किया गया था। तब असम से लाकर 5 गैंडों को बसाया गया था। अब यहां 33 गैंडों का कुनबा रह रहा है।
11 जनवरी 2014 को सर्दी के चलते 45 दिन के नवजात गैंडे की मृत्यु हो गई थी। इसका शव जंगल में गश्त के दौरान मिला था। 2 जुलाई 2015 को एक 6 वर्षीय गैंडे का शव मिला था। उसकी मौत प्रणय युद्ध के दौरान हुई थी।
1 दिसंबर 2016 का दिन दुधवा के लिए दुख भरी सूचना लेकर आया था। इस दिन 49 साल के गैंडे की मौत हुई थी। बांके नाम के इस गैंडे से ही दुधवा में गैंडा पुनर्वास योजना की शुरुआत की गई थी। दुधवा के अधिकांश गैंडे बांके की ही संतान है। 4 मार्च 2017 को राइनो प्रोजेक्ट एरिया में एक बाघ ने हमला कर 20 वर्ष के सहदेव नाम के गैंडे को मार डाला था।
दुधवा के डिप्टी डायरेक्टर महावीर कौजलगी ने बताया की राइनो प्रोजेक्ट पूरी सफलता के साथ संचालित हो रहा है। भीमसेन की मौत आपसी लड़ाई के चलते हुई थी। जानवरों में वर्चस्व के लिए अक्सर इस तरह के युद्ध होते रहते हैं। बाकी गैंडों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त उपाय किए गए हैं।