जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए एशियाई वन विविधता बेहद जरूरी: अध्ययन

एशिया के उष्णकटिबंधीय वन पहले की तुलना में जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीले हो सकते हैं, बशर्ते कि उनकी विविधता बरकरार रखी जाए
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, व्याचेस्लाव आर्गेनबर्ग
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एक अध्ययन में कहा गया है कि जंगल जलवायु परिवर्तन को रोकने में अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि पेड़ों में विविधता जंगल के महत्व को और भी बढ़ा देती है।

सिडनी विश्वविद्यालय की डॉ. रेबेका हैमिल्टन के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया है कि 19,000 साल के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया में शुष्क सवाना की अधिकता के बजाय, अलग-अलग तरह के ढके और खुले जंगल थे।

अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि एशिया के उष्णकटिबंधीय वन पहले की तुलना में जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीले हो सकते हैं, बशर्ते कि उनकी विविधता बरकरार रखी जाए। वे आगे बताते हैं कि पूरे क्षेत्र में रहने वाले लोगों और जानवरों के पास पहले की तुलना में अधिक विविध प्राकृतिक संसाधन रहे होंगे। यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।

सिडनी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ जियोसाइंसेज के डॉ. हैमिल्टन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन में तेजी आने के साथ, वैज्ञानिक और पारिस्थितिकी विज्ञानी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इसका दक्षिण पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि लचीलेपन की सुविधा प्रदान करने वाले वनों को बनाए रखना क्षेत्र के लिए एक अहम संरक्षण उद्देश्य होना चाहिए। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि मौसम के अनुसार शुष्क वनों के प्रकारों के साथ-साथ 1000 मीटर से ऊपर के जंगलों, जिन्हें 'पर्वतीय वन' भी कहा जाता है, इनकी सुरक्षा को प्राथमिकता देना एशिया के वर्षावनों के भविष्य के 'सवनीकरण' को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।

सावनीकरण से तात्पर्य एक ऐसे परिदृश्य से है जो आमतौर पर एक वन क्षेत्र, के सवाना पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव से है, जिसमें आम तौर पर खुले जंगली मैदान शामिल होते हैं। यह परिवर्तन आम तौर पर जलवायु परिवर्तन, मानवीय हस्तक्षेप या प्राकृतिक पारिस्थितिक बदलाव के कारण होता है।

शोधकर्ताओं ने सवाना मॉडल का परीक्षण करने के लिए उष्णकटिबंधीय दक्षिण पूर्व एशिया में 59 पुरापर्यावरण स्थलों के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया, जिसमें लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमम या अंतिम ग्लैशियल के दौरान पूरे क्षेत्र में एक बड़े, समान घास के मैदान का विस्तार माना गया था।

उन्होंने पाया कि झीलों में संरक्षित पराग कणों के रिकॉर्ड से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान घास के मैदानों के विस्तार के साथ-साथ जंगल भी मौजूद थे, जिनका पता अन्य जैव रासायनिक संकेतों से चलता है।

डॉ. हैमिल्टन ने कहा, हमने इस विचार को सामने रखा कि इन विसंगतियों को सुलझाया जा सकता है, यदि लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमम की ठंडी जलवायु के दौरान, पर्वतीय वन, जो 1000 मीटर से ऊपर उगते हैं, और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में विस्तारित हुए, जबकि तराई क्षेत्रों में मौसमी शुष्क वनों की ओर स्थानांतरण हुआ, जिनमें प्राकृतिक रूप से घास के मैदान हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा उन्हें उम्मीद है कि कई पुरापारिस्थितिकी रिकॉर्डों की तुलना करने के लिए विकसित सांख्यिकीय तरीके अन्य पिछले पारिस्थितिक परिवर्तनों के क्षेत्रीय परीक्षण के लिए उपयोगी होंगे।

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