कोविड-19 एक ऐसी महामारी जिसने पूरी मानव जाति को हिला दिया है। इसने एक बार फिर लोगों को प्रकृति और अपने बीच के रिश्तों के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है और यह दिखा दिया है कि हम आपस में किस तरह से जुड़े हैं।
हम अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए तेजी से इन जंगलों पर अतिक्रमण कर उनका विनाश कर रहे हैं। देखा जाए तो जंगलों का तेजी से होता विनाश और वन्यजीवों के साथ हमारा अनुचित व्यवहार इस तरह की बीमारियों के खतरे को और बढ़ा रहा है।
देखा जाए तो हर साल औसतन करीब 2 वायरस अपने प्राकृतिक वातावरण को छोड़ इंसानों में फैल रहे हैं। हालांकि स्वास्थ्य को केवल इन जूनोटिक बीमारियों से ही खतरा नहीं है। जलवायु परिवर्तन, साफ हवा, पानी, कुपोषण, खाद्य सुरक्षा जैसे खतरे भी मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं, जो कहीं न कहीं इन वनों से जुड़े हैं। हाल ही में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा जारी नई रिपोर्ट में ”द वाईटालिटी ऑफ फारेस्टस” भी स्वास्थ्य और जंगल के बीच के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला है।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में फैलने वाली हर तीन में से एक नई बीमारी भूमि उपयोग और जंगलों के विनाश से जुड़ी है। देखा जाए तो यह संक्रामक बीमारियां गरीब और कमजोर देशों में मृत्यु का प्रमुख कारण है। साथ ही पांच वर्ष से छोटे बच्चों की मृत्यु के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेवार है। उदहारण के लिए इबोला को ही ले लीजिए जिसके प्रसार के लिए अन्य कारकों की तुलना में वन विनाश को 60 फीसदी जिम्मेवार माना गया है।
गौरतलब है कि हमारे अनछुए जंगल वन्य जीवों की अलग-अलग प्रजातियों के लिए आवास को बांट देते हैं जिससे एक दूसरी प्रजातियों में संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा नहीं रहता। लेकिन जिस तरह से इन वनों का विनाश हो रहा है उसने इन प्रजातियों को सीमित क्षेत्र में केंद्रित कर दिया है जिसकी वजह से इन संक्रामक बीमारियों के पैदा और प्रसार का खतरा बढ़ गया है।
अनुमान है कि 75 फीसदी संक्रामक बीमारियां जूनोटिक यानी जंगली जीवों से इंसानों में फैली हैं। जिसके अब तक 250 करोड़ मामले सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं यह हर साल होने वाली करीब 27 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार है। इन बीमारियों का करीब 44 फीसदी बोझ कमजोर देशों पर पड़ रहा है।
इसी तरह जलवायु परिवर्तन के मामले में भी जंगलों की अहम भूमिका है। जिस तरह से इनका विनाश हो रहा है उससे जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान का खतरा कर बढ़ता जा रहा है। नतीजन बाढ़ तूफान जैसी आपदाएं कहीं ज्यादा सक्रिय होती जा रही हैं। इन जलवायु आपदाओं के चलते मच्छर और टिक्स जैसे जीवों से फैलने वाले संक्रामक रोगों का खतरा भी बढ़ रहा है।
वातावरण में बढ़ता सीओ2, खाद्य पदार्थों में घटते पोषण के लिए है जिम्मेवार
वहीं जैसे-जैसे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) बढ़ रही है उसके चलते खाद्य पदार्थों में पोषण की कमी आ रही है। जो सीधे तौर पर हमारे स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। ऐसे में हमारे जंगल जलवायु परिवर्तन के असर को सीमित कर हमारे स्वास्थ्य को भी बचाए रखने में मदद करते हैं और इसका मुकाबला करने के लिए अनुकूल माहौल तैयार करते हैं।
अनुमान है की हर साल करीब 31 लाख बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं। वहीं जो बच्चे अपने जन्म के पहले 1,000 दिन कुपोषण के बावजूद बचे रह जाते हैं उन्हें भी जीवन भर स्वास्थ्य, सामाजिक और वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दूसरी तरफ जिन बच्चों को पर्याप्त पोषण मिलता हैं उनका न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी दुरुस्त रहता है।
इसी तरह हर साल करीब 4.1 करोड़ लोग हृदय रोग, कैंसर, सांस की बीमारियों, मधुमेह और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भेंट चढ़ जाते हैं। यह वो गैर संक्रामक रोग हैं जो दुनिया भर में बड़ी तेजी से अपने पैर पसार रहे हैं, जिसका करीब 77 फीसदी बोझ निम्न और माध्यम आय वाले देशों पर पड़ रहा है।
देखा जाए तो पेड़ों और जंगलों के संपर्क में आने से इनका खतरा काफी कम हो जाता है। प्राकृतिक वातावरण इंसान में कोर्टिसोल, प्रोजेस्टेरोन और एड्रेनालाईन जैसे तनाव सम्बन्धी हार्मोन को कम कर देता है, जिससे इन बीमारियों का खतरा घट जाता है।
यदि वायु प्रदूषण से जुड़े आंकड़ों को देखें तो इसके चलते हर साल करीब 80 लाख लोगों की जान जा रही है। इनमें से अधिकांश जानें ह्रदय रोग, कैंसर, सांस और फेफड़ों सम्बन्धी बीमारियों के कारण जा रही हैं।
इसी तरह जल प्रदूषण भी बड़ी संख्या में लोगों की जान ले रहा है। देखा जाए तो हमारे जंगल, वायु और पानी से हानिकारक प्रदूषकों को छानकर संक्रामक और गैर संक्रामक रोगों के खतरे को कम करते हैं।
दुनिया भर में बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए नदियों के आसपास जंगलों का संरक्षण और बहाली अत्यंत महत्वपूर्ण है। शोध से भी पता चला है कि नदियों किनारे ऊपरी इलाकों में मौजूद पेड़ डायरिया के प्रसार को कम कर देते हैं।
गौरतलब है कि डायरिया बच्चों में मृत्यु का दूसरा और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण का प्रमुख कारण है। शोध के मुताबिक अपस्ट्रीम में पेड़ों की 30 फीसदी वृद्धि डायरिया की संभावना में 4 फीसदी की कमी से जुड़ी है।
इतना ही नहीं दुनिया भर में जंगल लोगों को आपदाओं से भी बचाते हैं। यदि 1996 से 2015 के बीच के आंकड़ों को देखें तो करीब 13 लाख मौतों के लिए सीधे तौर पर प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, लू, जंगल की आग आदि जिम्मेवार थी। अनुमान है कि गर्मी का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है।
आंकड़े दर्शाते हैं कि 1983 से 2016 के बीच करीब 170 करोड़ लोग भीषण गर्मी और लू से प्रभावित हुए थे। ऐसे में इस बढ़ते हीटस्ट्रोक के खतरे से निपटने के लिए जंगलों के संरक्षण और बहाली की जरुरत है जो गर्मी के कारण होने वाले सांस सम्बन्धी बीमारियों और ह्रदय रोग के खतरों को कम कर सकता है।