क्या पारे के संपर्क में आने से उभयचरों की आबादी में आ रही है गिरावट? वैज्ञानिकों ने लगाया पता

उभयचरों में पारे को लेकर एक अध्ययन किया गया, जिसमें वैज्ञानिकों ने उनकी 26 तरह की आबादी से 14 प्रजातियों के 3,200 से अधिक उभयचरों का परीक्षण किया।
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, फ्रॉगी डर्ब
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उभयचरों में मिथाइलमर्करी के अब तक के पहले बड़े मूल्यांकन से पता चला है कि यह जहरीला रसायन बहुत आम है, जो उभयचरों में पाया जा रहा है और कुछ में तो यह भारी स्तर तक पहुंच गया है। उभयचरों में पारे को लेकर किए गए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उनकी 26 तरह की आबादी से 14 प्रजातियों के 3,200 से अधिक उभयचरों का परीक्षण किया।

यूएसजीएस एसोसिएट डायरेक्टर फॉर इकोसिस्टम के ऐनी किंसिंगर ने कहा, उभयचर दुनिया भर में कशेरुकियों का सबसे लुप्तप्राय समूह हैं, लेकिन इस अध्ययन तक, हम उभयचरों में पारे से होने वाले जैव बदलाव के बारे में बहुत कम जानते थे। इस अध्ययन के लिए एक ठोस आधार प्रदान करता है और प्रबंधकों को मछली और वन्यजीव संरक्षण के सामने आने वाले सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान करने में मदद करता है।

उभयचरों में मिथाइलमर्करी की मात्रा स्थान और जीवन इतिहास की विशेषताओं जैसे आहार, आकार और लिंग के अनुसार भिन्न होती है। इस अध्ययन में उभयचर मिथाइलमर्करी की मात्रा कुछ स्थानों पर बमुश्किल पता लग पता है,  अन्य स्थानों पर वन्यजीवों में काफी अधिक देखी गई।

यद्यपि उभयचरों के बीच मात्रा में बड़ा अंतर था, उच्चतम माप 33 गुना अधिक थी, यह ड्रैगनफलीज, मछलियों और पक्षियों जैसे अन्य जानवरों में दर्ज की गई भिन्नता से बहुत कम था। अध्ययनकर्ताओं ने सुझाव दिया कि उभयचरों के बीच कम अंतर इसलिए था, क्योंकि उन्होंने मुख्य रूप से आर्द्रभूमि से नमूने एकत्र किए, जबकि अन्य जानवरों के प्रकारों पर किए गए अध्ययनों ने निवास स्थान की एक बड़ी विविधता से नमूने एकत्र किए थे।

पारा जैसा प्रदूषक दुनिया भर में चिंता का विषय है, क्योंकि यह मनुष्यों और अन्य जानवरों के लिए बहुत हानिकारक है। उभयचरों की संख्या में गिरावट होने के संदेह के रूप में इसे देखा जा रहा है, हालांकि वैज्ञानिकों ने उनकी गिरावट में पारा की भूमिका, यदि कोई हो, को स्पष्ट नहीं किया है। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है

अक्सर पानी में रहने वाले रोगाणुओं द्वारा निर्मित, मिथाइलमर्करी पारा का सबसे जैविक आधार पर उपलब्ध रूप है जो कशेरुकियों के लिए अत्यधिक विषैला होता है। यह खाद्य जाल में प्रवेश कर जाता है और एक बार अंदर जाने के बाद जानवरों के लिए इससे छुटकारा पाना कठिन होता है, इसलिए यह जानवरों में जमा हो जाता है क्योंकि वे भोजन करना जारी रखते हैं, इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक जैव-संचय कहते हैं।

यूएसजीएस के शोधकर्ता और प्रमुख अध्ययनकर्ता ब्रायन टॉर्नाबीन ने कहा, इसकी विषाक्तता के बावजूद, वैज्ञानिकों को उभयचरों पर मिथाइलमर्करी के प्रभावों की केवल सीमित समझ है। इस अध्ययन के परिणामों का उपयोग उभयचरों पर मिथाइलमर्करी के संपर्क के स्वास्थ्य प्रभावों पर भविष्य के शोध को आगे बढ़ाने के लिए किया जा सकता है, जो कुछ के लिए बहुत अधिक था।

अध्ययनकर्ता और यूएसजीएस एम्फ़िबियन रिसर्च एंड मॉनिटरिंग इनिशिएटिव के प्रमुख माइकल एडम्स ने कहा कि, यह अध्ययन नए तरीके और आधारभूत आंकड़े भी प्रदान करता है जो वैज्ञानिकों और प्रबंधकों को प्रजातियों के लिए पारा से खतरों का आकलन करने में मदद कर सकता है, जिसमें खतरे के रूप में सूचीबद्ध लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम के तहत लुप्तप्राय प्रजातियां भी शामिल हैं।

अध्ययन में ड्रैगनफ्लाई लार्वा का उपयोग करके उभयचरों के लिए पारा जैव-संचय को समझने का एक तरीका भी मिला, जिसका नमूना नहीं लिया जा सकता। वैज्ञानिकों ने यह तय किया है कि इन कीड़ों में पाई जाने वाली मात्रा उभयचरों में  मिथाइलमर्करी जैव-संचय की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए एक अच्छा तरीका है।

आईयूसीएन की एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि निवास स्थान का नुकसान उभयचरों के लिए सबसे बड़ा खतरा है, लेकिन जलीय आवासों पर उनकी निर्भरता उन्हें पारे जैसे पर्यावरणीय प्रदूषकों के प्रति भी संवेदनशील बनाती है।

वैज्ञानिक अभी यह समझना शुरू ही कर रहे हैं कि कैसे दूषित पदार्थों के संपर्क में आने से उभयचरों की आबादी की गतिशीलता में योगदान होता है या कैसे दूषित पदार्थ बीमारी जैसे अन्य खतरों के साथ परस्पर क्रिया कर सकते हैं।

यह समझने का एक हिस्सा कि पारे के सम्पर्क में आने से गिरावट कैसे आती है, यह निर्धारित करना है कि संपर्क में आना कैसे बदलता है और यह अध्ययन उभयचरों में  मिथाइलमर्करी में अंतर की सबसे संपूर्ण तस्वीर प्रदान करता है।

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