जंगल में पड़े किसी जानवर का शव, यह दृश्य कई लोगों को विचलित कर सकता है। लेकिन आंखों के लिए दुखदायी यह दृश्य अपने आसपास के प्राकृतिक वातावरण को खुशहाल बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है। किसी जानवर का यह शव न केवल अन्य मांसाहारी जीवो को भोजन प्रदान करता है, बल्कि इसके साथ ही आस-पास उगने वाले पौधों के विकास में भी योगदान करता है। जोकि अनेक शाकाहारी जीवों और उनके शिकारियों को आकर्षित करता है।
यह अध्ययन इस कहावत को चरितार्थ करता है "जीवित हाथी लाख का और मरा सवा लाख का" जिसका अर्थ हुआ कि जीवित हाथी की उपयोगिता उसके मरने के बाद भी बनी रहती है और वह अनेकों रूप से प्रकृति में अपना योगदान देती है। यह अध्ययन जर्मन सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोडायवर्सिटी रिसर्च और ग्रोनिंगन विश्वविद्यालय द्वारा सम्मिलित रूप से किया गया है। जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल प्लोस-वन में प्रकाशित हुआ है। इसको देखते हुए शोधकर्ताओं ने इन संरक्षित क्षेत्रों में मरने वाले जानवरों और उनके शवों को वहां से हटाने सम्बन्धी नियमों में ढील देने की सिफारिश की है।
मृत जीवों के करीब होती है पौधों में वृद्धि
इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने मध्य यूरोप के सबसे बड़े वेटलैंड क्षेत्रों में से एक डच नेचर रिज़र्व ओस्टेवार्डर्सप्लासेन को चुना था। जिसमें उन्होंने लाल हिरण के मृत शरीर और स्थानीय जैव विविधता पर पड़ने वाले उसके प्रभावों का अध्ययन किया है।
अध्ययन के लिए उन्होंने सबसे पहले उस जगह पर मृत शरीर के बिना और उसके साथ जीवों की उपस्थिति को अलग-अलग रिकॉर्ड किया। साथ ही आस-पास के क्षेत्र में पौधों की संख्या में हो रही वृद्धि को भी दर्ज किया था। जिसमे उन्होंने पाया कि इससे न केवल मखियां और अन्य कीड़ों को लाभ हुआ, बल्कि लम्बी अवधि के दौरान पौधों के विकास पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला।
वैज्ञानिकों ने पाया कि इसके कारण अन्य स्थानों की तुलना में शव के करीब कार्ड्यूस क्रिस्पस जैसे पौधे पांच गुना अधिक बड़े हो गए। जिसके चलते शाकाहारी कीटों और उनके शिकारियों की संख्या में चार गुना वृद्धि दर्ज की गयी।
इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ रोएल वैन विंकल ने बताया कि "हालांकि यह कोई नयी बात नहीं है कि जानवरों के मृत शरीर, बचा खुचा मांस खाने वाले जीवों के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। "लेकिन मुझे उम्मीद नहीं थी कि वो स्थानीय स्तर पर, पूरी खाद्य श्रृंखला पर इतना अधिक प्रभाव डालतें हैं। जोकि पांच महीने के बाद भी जारी रहता है। जैसा कि ओस्टेवार्डर्सप्लासेन में देखने को मिला जहां की मिटटी पोषक तत्वों से भरपूर है।"
इस शोध से प्राप्त नतीजों से पशुओं के मृत शरीर और वातावरण के बारे में नई जानकारियां पता चली हैं, जो अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रोनिंगन के प्रोफेसर क्रिस स्मिट ने कहा कि "अब यह काफी हद तक स्वीकार किया जाता है कि जंगल में पड़े सूखे पेड़, कई प्रजातियों के लिए लाभदायक होते हैं।
हालांकि आज भी वातावरण में मृत पड़े जीवो को घृणित दृष्टि से देखा जाता है। और प्रकृति में उसके महत्त्व को नजरअंदाज कर दिया जाता है|” उम्मीद है कि यह नया अध्ययन उनके प्रति समाज के नजरिये को बदलने में कामयाब होगा और हम प्रकृति में उसके महत्त्व को कहीं बेहतर तरीके से समझ सकेंगे।