उत्तराखंड के 180 वर्ग किमी क्षेत्र में उगा जंगल, नहीं मिलेगी खेती की इजाजत

यूसैक की रिपोर्ट के मुताबिक, हर जिले में 10 से 15 वर्ग किमी कृषि भूमि पर जंगल उग चुका है, जिसे डीम्ड फॉरेस्ट कहा जाता है
उत्तराखंड के जिला पौड़ी के अंतर्गत सतपुली इलाके में कृषि भूमि पर उगे चीड़ के पेड़, जिन्हें डीम्ड फॉरेस्ट की श्रेणी में शामिल किया गया है। फोटो: मनमीत सिंह
उत्तराखंड के जिला पौड़ी के अंतर्गत सतपुली इलाके में कृषि भूमि पर उगे चीड़ के पेड़, जिन्हें डीम्ड फॉरेस्ट की श्रेणी में शामिल किया गया है। फोटो: मनमीत सिंह
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उत्तराखंड में जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और कृषि भूमि का दायरा लगातार घट रहा है। सालों पहले अपने गांवों से पलायन कर चुके लोगों के सीढ़ी दार खेतों में अब चीड़ का जंगल उग आया है। वन विभाग के नये नियमों के तहत अब, जंगल उगने से आने वाले समय में कृषि भूमि का दुबारा उपयोग करना उस परिवार के लिये मुश्किल हो जायेगा, जो सालों बाद अपने घर वापस आने की सोचेगा। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) की टीम ने पिछले एक साल में राज्य का विभिन्न गांवों का दौरा कर शोध किया। शोध में सामने आया उत्तराखंड के हर जिले में औसतन 10 से 15 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है, जहां पहले खेती होती थी, लेकिन अब वहां चीड़ का जंगल बन चुका है। उत्तराखंड में 13 जिले हैं, इस तरह लगभग 180 वर्ग किमी क्षेत्र ऐसा है, जहां कभी खेती होती थी, वहां जंगल उग आया है। यूसैक बुधवार को अपनी रिपोर्ट जारी करेगा।

असल में, वन विभाग के साथ ही नेशनल ग्रीन टिब्यूनल का आदेश है कि जिस जमीन पर कोई पेड़ उग जाये तो उसे काटने के लिये जंगलात की परमिशन की जरूरत होती है। वहीं, अगर ये पेड़ 40 साल पुराने हो जायें तो उस जमीन पर उसका हक माना जाता है। उसके बाद उन पेड़ों को काट कर कृषि भूमि में बदला नहीं जा सकता। उत्तराखंड में इस समय टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी और चमोली में गई ऐसे गांव है, जहां के लोग सालों पहले महानगरों  में रोजगार की तलाश में पलायन कर चुके हैं। पलायन के बाद उनके घरों में ताले पड़ गये और खेत भी छोड़ दिये गये। अब इन खेतों में चीड़ का जंगल उग आया है। जो लगातार अपना क्षेत्रफल बढ़ा रहा है। 

यूसैक के निदेशक प्रो एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि, उत्तराखंड के कई गांवों में जो खेत हैं, वो एक हजार साल से भी पुराने है। पुरखों ने इन खेतों को बड़ी मेहनत से काट कर सीढ़ीदार बनाया और उसमें खेती की। लेकिन उन्हीं खेतों को मौजूदा पीढ़ियों ने छोड़ दिया है। जिससे वहां पर जंगल उग आया है। एनजीटी के गाइडलाइन के अनुसार इस को ‘डीम्ड फॉरेस्ट’ कहते हैं।  अगर जल्द ही बचे हुये खेतों की तरफ परिवारों ने रुख नहीं किया तो ये विरासत में मिले खेत उनके हाथों से दूर हो जायेंगे। हम अपने शोध के माध्यम से ऐसे परिवारों को अलर्ट करना चाहते हैं कि वो अपने खेतों की सूध लें। नहीं तो आने वाले वक्त में वो उनका उपयोग नहीं कर पायेंगे। 

वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र ने हमसें ‘डीम्ड फारेस्ट’ को परिभाषित करने को कहा था। हमने परिभाषिक कर केंद्र को भेज दिया है। जिस खेत या खाली जमीन पर जंगल उग आयेगा, वो डीम्ड फारेस्ट की कैटेगरी में आयेगा। 

14.74 प्रतिशत घटी है कृषि भूमि 
यूसैक के सैटेलाइट मानचित्रों के अनुसार, राज्य का कुल क्षेत्रफल 53483 वर्ग किमी है, जिसमें बीस प्रतिशत 10947 वर्ग किमी यानी बीस प्रतिशत क्षेत्रफल कृषि भूमि है। जबकि 23315 वर्ग किमी यानी 47 प्रतिशत वन क्षेत्र है। इसमें 14.74 वर्गकिमी क्षेत्र फल वन कृषि भूमि घटी है और यहीं पर डीम्ड फारेस्ट उगा है। जो लगातार बढ़ रहा है। 

इस समय राज्य में इतना है विभिन्न फसलों का क्षेत्रफल

गेंहू   358528.9 हेक्टेयर (क्षेत्र)  834751.4 मी.टन उत्पादन
चावल (जायद) 15213.04 हेक्टेयर (क्षेत्र)  50203 मी टन उत्पादन
चावल (खरीफ) 207414.4 हेक्टेयर (क्षेत्र) 423400.17 मी टन उत्पादन
झंगोरा टिहरी 20561 हेक्टेयर (क्षेत्र)  ---
मंडुवा   अल्मोड़ा 34671.72 हेक्टेयर (क्षेत्र)  ---
मंडुवा टिहरी 24118.16 हेक्टेयर  

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