दस दिन पैदल चल रायपुर पहुंचे आदिवासी, कहा- अडानी को नहीं देंगे अपनी जमीन

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र के मदनपुर से लगातार लगभग 300 किलोमीटर पैदल चलते हुए आदिवासी रायपुर पहुंच गए हैं
दस दिन पैदल चल कर आदिवासी रायपुर पहुंच गए हैं। फोटो: अवधेश मलिक
दस दिन पैदल चल कर आदिवासी रायपुर पहुंच गए हैं। फोटो: अवधेश मलिक
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पर्यावरण संरक्षण व जल, जंगल, जमीन बचाने एक बार फिर से छत्तीसगढ़ के आदिवासी संघर्ष करने सड़कों पर कूद पड़े हैं। पिछले 10 दिनों से लगातार चलते हुए ये आदिवासी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचे हैं।

उनका आरोप है कि उनकी लड़ाई अवैध तरीके से अडानी द्वारा की जा रही कोयला खनन के खिलाफ है। उनकी मांग है कि उनका क्षेत्र जो कि पांचवी अनुसूचि में पड़ने वाला क्षेत्र में खनन के नाम पर जबरिया जमीन अधिग्रहण, और कोयला खदान संचालन हो रहा है इस पर तुरंत रोक लगे।

वे नारे लगाते हुए कहते हैं कि भले ही कुछ भी हो जाए वे  किसी भी हालत में अडानी को अपनी जमीन नहीं सौपेंगें।

हसदेव बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े हुए कार्यकर्ता आलोक शुक्ला बताते हैं कि हसदेव बचाओ यात्रा की शुरुआत चार अक्टूबर से मदनपुर से की गई थी। और 13 अक्टूबर को वे रायपुर पहुंच गए। राज्यपाल अनुसुईया उइके ने कल मिलने का समय दिया है।

हाल ही में वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था हसदेव अरण्य क्षेत्र व कोयला खदान के संदर्भ में प्रदर्शनकारियों में भ्रम की स्थिति और उनसे मिलकर स्थिति स्पष्ट की जाएगी।

वन मंत्री ने यह भी कहा कि लेमरू एलिफेंट रिजर्व क्षेत्र की न तो क्षेत्रफल कम किया जा रहा है न ही राज्य सरकार के शक्ति में कोयला खदानों का आबंटन और चिन्हांकन है।

इस पर आलोक शुक्ला कहते हैं कि अगर कोई भ्रम की स्थिति है तो उसे सरकार को दूर करनी चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि कैसे फर्जी ग्रामसभाओं के आधार पर पर्यावरण स्वीकृति एवं भूअधिग्रहण जैसे कार्य हो रहें हैं। क्यों लगातार मानव-हाथी द्वंद बढ़ता जा रहा है ? क्यों मौतों व नुकसान का आंकड़ा बढ़ रहा है?

आगे आलोक शुक्ला बताते हैं कि 14 अक्टूबर को हम सभी साथी बूढ़ातालाब क्षेत्र में धरना देंगें और उसके बाद एक प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल महोदया से मिलेगा।

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष रामेश्वर सिंह आर्मो कहते हैं कि हम अपने हक के लिए पिछले एक दशक से संघर्षरत हैं। 

2015 में हसदेव अरण्य की 20 ग्राम सभाओं ने खनन के विरोध में प्रस्ताव पारित किया था। 2019 में ग्राम फतेहपुर  में 75 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया लेकिन राज्य सरकार ने कोई संज्ञान नही लिया। हमारी यह लड़ाई आगे भी जारी रहेगी।

सामाजिक कार्यकर्ता देवेंद्र बघेल बताते हैं उन्होंने अपनी यात्रा वहीं से शुरु की जहां पर वर्ष 2015 में राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य के समस्त ग्राम सभाओं के लोगो को संबोधित करते हुए यह वायदा किया था कि उनकी सरकार आने के बाद मूल-निवासियों की जल- जंगल -जमीन का संरंक्षण किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ इसलिए वे इस संघर्ष में आदिवासियों के साथ है।

आदिवासी नेता सुदेश टीकम कहते हैं - हमारी लड़ाई अवैध उत्खनन, धोखाधड़ी से आदिवासियों का जमीन हड़पना, अनुसूचित क्षेत्र होने के बावजूद पेसा कानून का नहीं लागू करना, कॉरपोरेटीकरण और भ्रष्ट नौकरशाही को लेकर भी है। इसलिए जबतक हमें अपना हक नहीं मिलता हमारी लड़ाई जारी रहेगी।  

हसदेव अरण्य क्षेत्र में दस्तावेज के मुताबिक अडानी कंपनी को माइल डेवलपर एंड ऑपरेटर (एमडीओ) के तहत कोयला खनन करने की अनुमति मिली है जबकि खनन के लिए लीज राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आवंटित है।

हसदेव अरण्य क्षेत्र जो सरगुजा, कोरबा, बिलासपुर आदि जिलों में फैला हुआ है और इसमें करीब 1,70,000 हेक्टेयर में जंगल है और इसमें 23 कोयला खदान प्रस्तावित है।

एक सामाजिक संस्था छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के मुताबिक कोयला खनन के तहत हसदेव अरण्य क्षेत्र का पांच गांव सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं जबकि 15 गांव आंशिक तौर पर, लेकिन अगर ये सभी खदाने संचालित हो गई तो सबसे पहले 17 हजार हेक्टेयर का जंगल समाप्त होगा फिर धीरे-धीरे सभी जंगल समाप्त हो जाने का डर है।

छत्तीसगढ़ के पर्यावरण संरक्षण बोर्ड में काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि एनवायरमेंटल क्लीयरेंस, जमीन अधिग्रहण ये सभी एक व्यापक प्रक्रिया है और इसमें बहुत समय लगता है। कई बार तो वर्षों लग जाते हैं ऐसे में हालिया कोयला संकट को देखते हैं संभव है कि सरकार कोल बेयरिंग एक्ट इन क्षेत्रों में लागू कर दें।

खैर सीमित संसाधनों के बावजूद जिस प्रकार से आदिवासियों ने अपना दम दिखाया है उससे नहीं लगता है कि सरकार आसानी से इन क्षेत्रों से आदिवासियों को खाली करवा लेगी। संघर्ष के और उग्र रूप लेने की संभावना है, पर जो भी होगा वह फिलहाल समय के गर्त में है।

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