देश में चल रहे हैं 703 जमीनी विवाद, 65 लाख लोग प्रभावित: रिपोर्ट

लैंड कंफ्लिक्ट वाच की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारों ने जब से लैंड बैंक बनाना शुरू किया है, तब से जमीन को लेकर संघर्ष बढ़े हैं
ओडिशा में पास्को का विरोध करते स्थानीय लोग। फाइल फोटो: रिचर्ड महापात्रा
ओडिशा में पास्को का विरोध करते स्थानीय लोग। फाइल फोटो: रिचर्ड महापात्रा
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देश में जमीन को लेकर संघर्ष बढ़ रहे हैं। पिछले तीन साल के दौरान 703 संघर्षों की पहचान की गई है, इनसे लगभग 65 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं, ये संघर्ष 21 लाख हेक्टेयर जमीन को लेकर हो रहे हैं। इन 703 में से केवल 335 विवादों के चलते लगभग 13 लाख करोड़ रुपए का निवेश फंसा हुआ है, जो 2018-19 की देश की जीडीपी का 7.2 प्रतिशत है।

लैंड कंफ्लिक्ट वाच नाम की संस्था द्वारा 28 फरवरी को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। यह रिपोर्ट तीन साल के अध्ययन के बाद जारी की गई है। इसमें 42 शोधकर्ता शामिल हुए।

दिलचस्प बात यह है कि 703 में से 104 मामले दो दशक से भी अधिक समय से विवादों में हैं, जबकि 149 मामले एक दशक से भी अधिक समय से चल रहे हैं। इनमें से ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को लेकर जमीनी विवाद चल रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 2.8 लाख करोड़ रुपए का निवेश पावर सेक्टर से जुड़ा है और 2.7 लाख करोड़ इंडस्ट्रियल सेक्टर से जुड़ा है। हालांकि सभी 703 मामलों का पूरा विवरण उपलब्ध न होने के कारण ये आंकड़े बदल भी सकते हैं।

रिपोर्ट बताती है कि लगभग 60 फीसदी विवाद सामुदायिक (कॉमन) जमीन से जुड़े हैं, जिनकी वजह से लगभग 51 लाख प्रभावित हो रहे हैं।

भारत के कुल जिलों में से लगभग 12 फीसदी नक्सल प्रभावित हैं, लेकिन इन जिलों में कुल जमीनी विवादों में से केवल 17 फीसदी मामले जुड़े हैं, जबकि 31 फीसदी जमीन इसी क्षेत्र से है। इसके अलावा कुल प्रभावित कुल लोगों में से 15 फीसदी नक्सल प्रभावित क्षेत्र के हैं।

भारत के कुल जिलों में से 13 फीसदी जिले पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र से जुड़े हैं, लेकिन कुल जमीनी विवादों की दृष्टि से देखा जाए तो यहां से जुड़े मामलों की संख्या 26 फीसदी है। कुल प्रभावितों में से लगभग 28 फीसदी पांचवी अनूसूचित क्षेत्र से हैं।

खनन से जुड़े मामलों को लेकर जमीनी विवाद खूब होता है। इनमें से 60 फीसदी मामले पांचवीं अनूसूचित क्षेत्र से हैं।

लगभग 75 फीसदी मामले जंगल और उसके अधिकार को लेकर चल रहे हैं। जिनमें वनाधिकार कानून 2006 का उल्लंघन प्रमुख है।

निजी जमीन के अधिग्रहण को लेकर भी लगभग 37.8 प्रतिशत मामले चल रहे हैं। इन मामलों के कारण लगभग 30 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं।

सामुदायिक जमीन को लेकर लगभग 488 मामले चल रहे हैं। इनमें से 123 मामले जंगल की जमीन को लेकर हैं, जबकि 187 मामले गैर वन क्षेत्र से जुड़े हैं। लगभग 156 मामले वन क्षेत्र व गैर वन क्षेत्र से जुड़े हैँ। 22 मामलों के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। इनसे कुल 51.51 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं।

प्राइवेट जमीन के अधिग्रहण को लेकर जो विवाद चल रहे हैं। उनमें 47 मामलों में सड़क बनाने को लेकर विवाद है तो 26 मामले थर्मल पावर प्लांट से जुड़े हैं और 24 मामले सिंचाई बांध के निर्माण से संबंधित हैं।

रिपोर्ट बताती है कि कई राज्यों ने 1990 के बाद से लैंड बैंक बनाना शुरू किया। इसका मकसद यह था कि राज्य सरकारें जमीन अधिग्रहण कानून की लंबी प्रक्रिया से बचते हुए जल्द से जल्द प्राइवेट सेक्टर को जमीन सौंपना चाहती थी। राज्य सरकारों की वेबसाइट बताती हैं कि आठ राज्यों आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, ओड़िशा, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के लैंड बैंक में लगभग 26.8 लाख हेक्टेयर जमीन पड़ी है। यह जानकारी भी सितंबर 2017 तक की है। इसके बाद से इसे अपडेट नहीं किया गया। शेष राज्यों ने अपने लैंड बैंक से संबंधित जानकारी सार्वजनिक नहीं की है।

ज्यादातर विवादित मामलों में पाया गया कि जिन सामुदायिक जमीन पर समाज का अधिकार होना चाहिए, सरकारों ने उन्हें अपने अधीन कर लैंड बैंक में शामिल कर लिया। इसके बाद से वहां विरोध और संघर्ष जारी है। रिपोर्ट में इसको लेकर एक स्पष्ट नीति बनाने की सिफारिश की गई है।  

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